गद्दारों का भारत
Ali Aadil Khan Editor-in-Chief Top News Group
सम्रज्य्वादी अँगरेज़ हुकूमत के ज़ुल्म , बर्बरियत और पूँजीवाद के ख़िलाफ़ आज़ादी की तहरीक चलाने वाले या आवाज़ बुलंद करने वाले भारतीय स्वतंत्रता संग्रामियों को क्या कहा गया था , ग़द्दार और उनको काला पानी जैसी सज़ाएँ दी गयी थीं ।क्या वो गद्दार थे या अपने अधिकारों की लड़ाई लड़ने वाले देश वासी थे ??
वर्त्तमान सरकार की रुचि देश के विकास और प्रगतिशील कामों में कम और इतिहास के पुनर्लेखन में ज़्यादा है , इसका अंदाजा देश की जनता को खुद लगान पड़ेगा , आज जिस सरकार को मुल्क चलाते लगभग ६ वर्ष होने को है लेकिन अभी भी सरकार हर नाकामी को पूर्व सरकार के सर मंढने से नहीं चूक रही है। हालांकि पूर्व सरकार की भी कमियां ही रही होंगी जिसकी वजह से गधे के सर से सींग की तरह ग़ायब हुई है ।
लेकिन यह कितना उचित है और कब तक भरम की राजनीती के सहारे सत्ता को भोगने के लालच में जनता को जंग , भुकमरी , मंहगाई , बेरोज़गारी ,कारोबारी मंदी , साम्प्रदायिकता और नफ़रत परोसी जायेगी । आजकल गृहमंत्री अपनी अक्सर मीटिंगों में इतिहास के पुनर्लेखन की बात कर रहे हैं . और वो यह कह रहे हैं की हम कब तक अंग्रेज़ों के लिखे इतिहास को कोसते रहेंगे .
बात अमित शाह की एक हद तक सही है की अंग्रेज़ों ने भारत से अपनी हुकूमत को जाते देख इतिहास को बदलने में काफी फेरबदल की थी लेकिन इतिहास को बदलने के पीछे उनकी मंशा divide and rule की थी , और उन्होंने हिन्दुओं – मुस्लिम को किस तरह बांटा जा सकता है इस पर काम किया था और इसके लिए इतिहास को बदला था ।
बल्कि मुसलमानो के खिलाफ सिक्खों को भी भड़काने में कसर नहीं छोड़ी थी ।और वो काफी हद तक इसमें कामयाब भी रहे ।लेकिन आज शाह की मंशा को समझना भी ज़रूरी है , उनका कहना है “क्या हमारे देश के इतिहासकार 200 व्यक्तित्व और 25 साम्राज्यों को इतिहास का हिस्सा नहीं बना सकते? हम कब तक दूसरों को कोसते रहेंगे?”
उन्होंने कहा, “हम अपनी दृष्टि से अपना इतिहास लिखें। हमें कौन ऐसा करने से रोक रहा है?” बिलकुल शाह साहब आपको कोई कुछ भी करने से भला रोक कैसे सकता है , ऐसे लोगों को सबक़ सिखाने के लिए आपने UAPA जैसे क़ानून बना तो लिए हैं उनको और मज़बूत कर दिया है आपने , आपकी हर चाल आपकी कामयाबी की दलील बनता जारहा है । मगर याद रहे
मिले ख़ाक में अहले शां कैसे कैसे
हुए नामवर बे निशां कैसे कैसे
ज़मीन खा गयी आसमान कैसे कैसे
अजल (death)ही ने छोड़ा न किसरा न दारा
इसी से सिकंदर फ़ातेह (Alexender Great) भी हारा
हर एक लेके हसरत से क्या क्या नहारा
पड़ा रह गया सब यूँही ठाट सारा
जगह जी लगाने की दुनिया नहीं है
ये इबरत की जा है तमाशा नहीं है
तुझे पहले बचपन ने बरसों खिलाया
जवानी ने फिर तुझको मजनू बनाया
बुढ़ापे ने फिर आके क्या क्या सताया
अजल (death) तेरा करदेगी बिलकुल सफाया
जगह जी लगाने की दुनिया नहीं है
यह इबरत की जा है तमाशा नहीं है
अब मुझे नहीं पता शाह साहब इसको कितना समझे होंगे और क्या मतलब निकालेंगे ।लेकिन मेरे पाठक तो समझ ही रहे हैं कि देश में नफ़रत के खिलाफ , डर और साम्प्रदायिकता के ख़िलाफ़ , दलित , माइनॉरिटी , आदिवासी , किसान और मज़दूर के दमन के ख़िलाफ़ ,स्टेट टेररिज्म के ख़िलाफ़ लिखने और बोलने वालों के ख़िलाफ़ , देश से नफ़रत करने वालों के और देश की एकता अखंडता और सम्प्रभुता को धूमिल करने वालों के ख़िलाफ़ हम हमेशा मुखर होकर लिखते रहे हैं ,और लिखते रहेंगे , चाहे सरकार जिसकी आये । यह हमारा पत्रकार की हैसियत से फ़र्ज़ है और यही पत्रकारिता का तक़ाज़ा भी है ।
देश में पनपने वाले भ्रष्टाचार और आतंक के ख़िलाफ़ नाकाम रही सरकारों के लिए किसी एक समुदाय या वर्ग या जाती को ज़िम्मेदार ठहरना हरगिज़ उचित नहीं है ।क्योंकि सरकार जब जिस क़ानून का पालन करवाना चाहे करा लेती है ।देश से माता (चेचक ) , पोलियो ,टी बी और कई घातक बीमारियों का सफाया भी सरकार की कोशिशों का नतीजा है , इसी तरह भ्रष्टाचार , आतंकवाद , बेरोज़गारी ,खाद्य पदार्थों की बढ़ती मंहगाई जैसी बीमारियों का भी खात्मा सरकार की संजीदा (गंभीर ) कोशिशों से हो सकता है , मगर उसके लिए सरकार का निष्पक्ष होना और ईमानदारी से इन्साफ करना शर्त है ।
मगर अफ़सोस की बात यह है की आज देशभक्ति और राष्ट्रवाद की परिभाषा बिलकुल बदल गयी है , आज देश , मानवता (इंसानियत) , संविधान या लोकतंत्र के हित की बात करने वाले को नहीं बल्कि सरकार और पार्टी तथा व्यक्ति विशेष की अंधभक्ति को राष्ट्रवादवाद और देशभक्ति कहा जाने लगा है जो किसी भी देश के लिए बहुत घातक है ।
आज देश में हर वो शख्स जो मोदी सरकार की ग़लत नीतियों के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने की हिम्मत करता है या लिखता वही गद्दार या देश द्रोह कहलाया जाता है , जबकि देश में यदि वोट शेयर की बात करें तो बीजेपी को इस बार भी 37 .36 % ही वोट मिला है , ऐसे में बाक़ी 62 .64 % देश का ग़द्दार होसकता है क्या ? और 37 . 36 % में भी 50 % ही सरकार की नीतियों से सहमत बताये जाते हैं ऐसे में बाक़ी 80 % जनता को गद्दार ठहरना कितना उचित है आप ही बताएं और यह इलज़ाम देना की जो सरकार की नीतियों से सहमत नहीं है वो देश द्रोह है यह कितना उचित है आप ही फैसला करें ।
उपरोक्त आंकड़े के हिसाब से तो भारत गद्दारों का देश कहलायेगा । सरकार किसकी बानी कैसे बानी ये अलग चर्चा है , किन्तु सरकार की नीतियों और देश के मौजूदा हालत से सहमत न होना उसपर चर्चा करना देश द्रोह है ये कैसे हो सकता है .
Vote share of parties लोकसभा 2019
BJP (37.36%)
INC (19.49%)
AITC (4.07%)
BSP (3.63%)
SP (2.55%)
YSRCP (2.53%)
DMK (2.26%)
SS (2.10%)
TDP (2.04%)
CPI(M) (1.75%)
Other (22.22%)