पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मुस्लिम मतदाताओं का समाजवादी पार्टी के प्रति रुझान मायावती के लिए खतरे की घंटी है. परंपरागत रूप से यही इलाका बीएसपी का मजबूत गढ़ रहा है. पिछले विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी की लहर के बावजूद बीएसपी ने यहां समाजवादी पार्टी के बराबर सीटें जीती थी. अगर इन 73 सीटों पर बीएसपी पिछड़ जाती है तो आगे की लडाई उसके लिए बेहद मुश्किल हो जाएगी. पूरे उत्तर प्रदेश में 18 फीसदी मुसलमान हैं जब की पश्चिमी उत्तर प्रदेश में उनकी आबादी 26 फीसदी के करीब है.
हालत यह है कि मुजफ्फरनगर की बुढाना जैसी तमाम सीटों पर जहां समाजवादी पार्टी ने हिंदू उम्मीदवार उतारा है ओर बीएसपी की तरफ से मुस्लिम प्रत्याशी मैदान में है- वहां पर भी ज्यादातर मुसलमान समाजवादी पार्टी को ही वोट दे रहे हैं. बुढाना में मुस्तकिम अपने बूथ पर जाकर वोट करने वाले करने वाले पहले मतदाता थे. वह खुलेआम बताते हैं कि उन्होंने समाजवादी पार्टी को वोट दिया. यह पूछने पर कि उन्हें हाथी के बजाय साइकिल ज्यादा पसंद क्यों आया वह मुस्कुराते हुए जवाब देते हैं. – हाथी घर में नहीं आ सकता साइकिल आ सकती है.
तमाम दावों के बावजूद जाट मतदाता बीजेपी से अपनी नाराजगी छिपा नहीं रहा है .जबकि लोकसभा चुनाव में जाट मतदाताओं का पूरा समर्थन बीजेपी को हासिल था वो इस बार असंभव है. शनिवार को जिन 73 सीटों पर मतदान हुआ, उनमें ज्यादातर सीटें ऐसी हैं जहां जाट हार जीत में अहम भूमिका निभाते हैं. ज्यादातर सीटों पर जाट वोट बैंक राष्ट्रीय लोकदल और बीजेपी के बीच बंटता हुआ दिखा. ग्रामीण इलाकों में और खास तौर पर उम्रदराज जाट वोटर बीजेपी को सबक सिखाने के लिए राष्ट्रीय लोक दल को वोट कर रहे हैं. वहीं शहरी जाट और युवा लोग अभी भी बीजेपी को ज्यादा पसंद कर रहे हैं. गांव में राष्ट्रीय लोक दल को वोट देने वाले कई जाट मतदाता खुलेआम यह कहते हैं कि उन्हें इस बात से मतलब नहीं है कि उनका उम्मीदवार जीतेगा या हारेगा उन्हें सिर्फ बीजेपी को हराने से मतलब है.
बीजेपी से जाट वोटरों की नाराजगी की बड़ी वजह आरक्षण का ना मिलना भी है. पश्चिमी उत्तर प्रदेश के इन इलाकों में हरियाणा की छाप साफ दिखती है. याद रहे हरियाणा में जाट आरक्षण आंदोलन के दौरान 21 जाटों का मरना लोग भूले नहीं हैं. जाटों को लगता है कि मुजफ्फरनगर दंगे के बाद लोकसभा चुनाव में उनका इस्तेमाल तो किया लेकिन बदले में उन्हें कुछ नहीं मिला. मुजफ्फरनगर शामली रोड पर खरड गांव के एक बुजुर्ग जितेंद्र मलिक कहते हैं कि नरेंद्र मोदी पाकिस्तान के प्रधानमंत्री को तो जन्मदिन की मुबारकबाद देते हैं लेकिन जाटों के सबसे बड़े नेता चौधरी चरण सिंह के जन्मदिन पर एक ट्वीट करना भी उन्हें याद नहीं रहता.