देश के हर कोने में आज इस नगर निगम चुनाव की चर्चा हो रही है.
ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम चुनाव में मोदी-शाह क्यों झोंक रहे हैं बीजेपी की पूरी ताक़त?
हैदराबाद नगर निगम के चुनाव में ओवैसी ने 51 प्रत्याशियों को टिकट दिया है। इसमें से 46 प्रत्याशी मुस्लिम कैंडिडेट्स हैं, जिन्हें अलग-अलग सीट पर दावेदारी करने उतारा गया है।
तेलंगाना राज्य जहाँ भारतीय जनता पार्टी के पास 119 में से केवल दो विधायक हैं और जहाँ 17 लोकसभा सीट में केवल 4 सांसद हैं, वहाँ एक नगर निगम चुनाव में बीजेपी ने अपनी पूरी ताक़त झोंक दी है.
टीआरएस, बीजेपी और कांग्रेस से मुकाबला
मुस्लिम बहुल इलाकों से लेकर हिंदू वोटरों की सीट तक AIMIM का मुकाबला तेलंगाना राष्ट्र समिति, कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी से है। बीजेपी ने इन चुनावों में अपनी पूरी ताकत झोंक रखी है और पार्टी के तमाम नेता हैदराबाद में प्रचार करने में जुटे हैं। हालांकि बीजेपी को चुनौती देते हुए ओवैसी ने कहा है कि भारतीय जनता पार्टी ने इस इलाके के लिए कुछ नहीं किया है और ये लोग सिर्फ झूठ का प्रचार कर सकते हैं।
2016 में आए थे ऐसे रिजल्ट
बता दें कि 2016 में हुए हैदराबाद म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन के चुनाव में तेलंगाना राष्ट्र समिति के 99 प्रत्याशी अलग-अलग वॉर्ड में विजयी हुए थे। इसके अलावा ओवैसी की पार्टी ने 60 प्रत्याशियों को उतारा था, जिसमें से उन्होंने 44 पर विजय हासिल की थी। इन चुनावों में बीजेपी को 3 और कांग्रेस को दो सीटों पर जीत मिली थी।
ये चुनाव ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम के हैं. इस नगर निगम का सालाना बजट लगभग साढ़े पाँच हजार करोड़ का है और आबादी लगभग 82 लाख लोगों की है.
कश्मीर में जमीन खरीद सकते हैं हैदराबाद के लोग: योगी
कश्मीर से 370 के अंत का जिक्र करते हुए योगी ने कहा कि पीएम नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह की लीडरशिप में अब कश्मीर से अनुच्छेद 370 का विशेष दर्जा खत्म हो गया है। हम लोगों ने हैदराबाद के लोगों को यह स्वतंत्रता दे दी है कि वो आसानी से जाकर जम्मू-कश्मीर में जमीन खरीद सकते हैं।
योगी ने हैदराबाद का नाम बदलने की राजनीती को भी हवा दी जिसपर AIMIM नेता असदुद्दीन ओवैसी जवाब देते हुए कहा, “बीजेपी के जितने लीडर है, चीफ मिनिस्टर है वो ये कह रहे हैं कि हैदराबाद का नाम बदल दिया जाएगा. मैं यहां कि आवाम से ये सवाल कर रहा हूं, क्या आप चाहते हैं कि हैदराबाद का नाम बदला जाए? क्या आप हैदराबादा का नाम भागनगर रखना चाहते हैं. अगर आप हैदराबाद के नाम को हैदराबाद रखना चाहते हैं तो मेरी आपसे गुजारिश है कि बीजेपी को शिकस्त दीजिए, मजलिस को कामयाब कीजिए.”
बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा, यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ सहित पार्टी के कई नेता हैदराबाद का दौरा कर चुके हैं। अब अमित शाह हैदराबाद पहुंचे हैं। सिकंदराबाद में रोड शो से पहले उन्होंने भाग्यलक्ष्मी मंदिर में जाकर पूजा अर्चना की। रोड शो के बाद अमित शाह ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर यह भरोसा जताया कि बीजेपी हैदराबाद निकाय चुनाव में बहुमत हासिल करेगी। उन्होंने कहा कि हैदराबाद का अगला मेयर बीजेपी से होगा।
मलकजगिरी इलाके में किया रोड शो
बता दें कि बिहार विधानसभा में मिली जीत से उत्साहित भाजपा की नजरें अब तेलंगाना तथा पश्चिम बंगाल पर भी हैं। इसके लिए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ मोर्चे पर हैं। आदित्यनाथ के हैदराबाद में चुनाव प्रचार को एआईएमआईएम के नेता असदुद्दीन ओवैसी को सीधी चुनौती देने के रूप में देखा जा रहा है। शनिवार को तेलंगाना की राजधानी हैदराबाद में निकाय चुनाव (ग्रेटर हैदराबाद म्युनिसिपिल कॉरपोरेशन) में मलकजगिरी इलाके में योगी ने भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशियों के पक्ष में सभा के साथ एक रोड शो किया। जिसमें भारी भीड़ उमड़ी। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ रोड शो के दौरान ‘आया आया शेर आया’ , ‘राम लक्ष्मण जानकी, जय बोलो हनुमान की’, ‘योगी-योगी’ , जय श्री राम, भारत माता की जय और वंदे मातरम के गगनभेदी नारे लगे।
बीजेपी के पार्टी अध्यक्ष वहाँ रोड शो कर रहे हैं, दूसरे केंद्रीय कैबिनेट मंत्री स्मृति ईरानी, प्रकाश जावड़ेकर भी वहाँ प्रचार के लिए जा चुके हैं. बीजेपी युवा मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष तेजस्वी सूर्या भी पिछले एक हफ़्ते से वहीं डेरा डाले बैठे हैं.
ऐसे में हर कोई आज एक ही सवाल पूछ रहा है, एक तेलंगाना राज्य के एक छोटे से नगर निगम चुनाव में पार्टी आख़िर अपना सर्वस्व क्यों दांव पर लगा रही है?
ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम चुनाव
ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम के चुनाव 1 दिसंबर को होना है और 4 दिसंबर को इसके नतीजे आ जाएँगे. यहाँ 150 सीटें हैं, जिस पर जीत ये तय करेगी की नगर निगम में मेयर किस पार्टी का बनेगा.
पिछले चुनाव में 99 सीटें तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) को मिली थी. 44 सीटों पर औवेसी की पार्टी एआईएमआईएम (AIMIM) ने जीत दर्ज की थी. बीजेपी को 4 सीटों से संतोष करना पड़ा था.
नगर निगम के चुनाव अक्सर स्थानीय मुद्दों पर लड़े जाते हैं. बिजली, पानी, सड़क, कूड़ा यही मुद्दे होते हैं. राज्य के बड़े नेता चुनाव प्रचार में चले जाएँ तो वो ही बड़ी बात होती है, क्षेत्रीय पार्टी का अध्यक्ष प्रचार कर ले तो बात फिर भी समझ आती है, लेकिन राष्ट्रीय पार्टी का अध्यक्ष प्रचार के लिए मैदान में उतरे, तो लगता है कि पार्टी का ‘बहुत कुछ’ दांव पर है.
दुब्बाक सीट पर उपचुनाव
आख़िर बीजेपी के लिए ये ‘बहुत कुछ’ क्या है?
हैदराबाद में रहने वाले वरिष्ठ पत्रकार दिनेश आकुला कहते हैं, “नबंवर की शुरुआत में दुब्बाक असेंबली सीट के लिए यहाँ उपचुनाव हुए थे. ये सीट टीआरएस की सीटिंग सीट थी, जो विधायक की मौत के बाद ख़ाली हुई थी. पार्टी ने विधायक की पत्नी को ही उम्मीदवार बनाया था.
अब तक टीआरएस में हरीश राव को चुनाव जिताने का अहम रणनीतिकार माना जाता था. लेकिन तमाम कोशिशों के बाद भी टीआरएस ये उपचुनाव हार गई और बीजेपी को यहाँ जीत मिली.”
इसी जीत से बीजेपी के हौसले बुलंद हैं.
आँकड़ो की बात करें तो दुब्बाक सीट के उप-चुनाव में बीजेपी का वोट शेयर 13.75 फ़ीसद से बढ़ कर 38.5 फ़ीसद हो गया था. बीजेपी की महत्वाकांक्षा को इन आँकड़ों से बल मिला है.हैदराबाद में रहने वाले वरिष्ठ पत्रकार दिनेश आकुला कहते हैं कि बीजेपी की इन चुनावों में रणनीति को समझने के लिए टीआरएस और एआईएमआईएम की रणनीति को समझना भी ज़रूरी होगा .
“पिछली बार ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम चुनाव (जीएचएमसी) में केटी रामा राव, जो सीएम के चंद्रशेखर राव के बेटे हैं, ने पूरी रणनीति तैयार की थी. के चंद्रशेखर राव, अपने बेटे को राज्य की सत्ता संभालने के लिए तैयार कर रहे थे. पार्टी में के चंद्रशेखर राव के बेटे से ज़्यादा उनके भांजे हरीश राव की चलती थी. हरीश राव को पार्टी में साइडलाइन करने के लिए के चंद्रशेखर राव ने ये दांव चला था. इसका उन्हें फ़ायदा भी मिला. केटी रामा राव के नेतृत्व में टीआरएस ने जीएचएमसी चुनाव में 99 सीटें जीती. इस बार अगर टीआरएस दोबारा से नगर निगम चुनाव जीतती है तो केटीआर की पकड़ पार्टी में और मज़बूत हो जाएगी. केटी राव फ़िलहाल राज्य के शहरी विकास मंत्री हैं. हरिश राव जो के चंद्रशेखर राव के भतीजे हैं, उप-चुनाव में हार की वजह से पार्टी में फ़िलहाल किनारे पर हैं.”
बीजेपी के लिए क्यों है ये चुनाव अहम?
बीजेपी इस चुनाव में अपना भाग्य आज़मा कर एक तीर से कई शिकार करना चाहती है.
पहला तो ये कि पार्टी अध्यक्ष के तौर पर 2017 में अमित शाह ने लक्ष्य रखा था, बीजेपी को पंचायत से पार्लियामेंट तक ले जाना है. ये उसी लक्ष्य को हासिल करने की बीजेपी की कोशिश है.
दूसरा ये कि टीआरएस में अंदरूनी राजनीति की वजह से राज्य में उनकी पकड़ पहले से थोड़ी ढीली पड़ी है. बीजेपी को लगता है कि टीआरएस पर चोट के लिए ये सही मौक़ा है. इस बार के मॉनसून में जब दो बार तेज़ बारिश हुई तो शहरी इलाक़ों में इसका बहुत बुरा असर पड़ा था. एक तरह से पूरा शहर दो बार डूब गया था. टीआरएस को इस वजह से स्थानीय जनता का रोष झेलना पड़ा. अब नंवबर की शुरुआत में दुब्बाक सीट पर हार के बाद भी टीआरएस बाहर से थोड़ी कमज़ोर दिख रही है.
तीसरी बात ये कि कांग्रेस पूरे प्रयास के बाद भी दुब्बाक सीट पर तीसरे नंबर पर रही थी. बीजेपी राज्य में कांग्रेस की जगह ख़ुद को लाने का सही मौक़ा समझ रही है. साथ ही एआईएमआईएम को दूसरे राज्यों के चुनाव में हमेशा बीजेपी की ‘बी-टीम’ क़रार दिया जाता है. बीजेपी इस चुनाव में उस भ्रम को तोड़ना चाहती है.
चौथा कारण है जीएचएमसी का बजट. इन नगर निगम का बजट लगभग साढ़े पाँच हज़ार करोड़ रुपये सालाना है. कई राजनीतिक विश्लेषक इस नगर निगम को राज्य की सत्ता की चाबी मानते हैं.
नगर निगम चुनाव में ध्रुवीकरण की राजनीति
राज्य की राजनीति पर पकड़ रखने वाले दूसरे विश्लेषक जिनका नागाराजू बीजेपी की इस नई रणनीति के पीछे की वजह राज्य के नए प्रदेश अध्यक्ष को मानते हैं.
नागाराजू कहते हैं, “कई सालों में पहली बार बीजेपी ने प्रदेश अध्यक्ष ऐसे नेता को बनाया है जो हैदराबाद से नहीं आते. प्रदेश के अध्यक्ष इस समय बंदी संजय कुमार हैं, जो करीमनगर लोकसभा सीट से सांसद भी हैं. दुब्बाक सीट पर हुए उप-चुनाव में पार्टी की जीत का सेहरा बंदी संजय कुमार के सिर ही बांधा गया.”
पार्टी को लगता है, दुब्बाक सीट पर बंदी संजय कुमार की रणनीति सफल रही है और इसलिए नगर निगम चुनाव में उसी रणनीति से आगे चल रही है.
नागाराजू कहते हैं, “अब से पहले बीजेपी राज्य में कभी टीआरएस पर खुल कर हमला नहीं करती थी. राज्य में लोगों के बीच एक धारणा ये भी है कि टीआरएस और ओवैसी के बीच अंदरूनी गठबंधन है, जिसे दोनों ही पार्टी बाहर ज़ाहिर नहीं करती है.
बीजेपी सांसद बंदी संजय कुमार ने पार्टी अध्यक्ष बनते ही इस बात को घूम-घूम कर कहना शुरू किया. दुब्बाक सीट पर हुए उप-चुनाव में उन्होंने यही रणनीति अपनाई.”
वो आगे कहते हैं, “बीजेपी के बड़े नेता कह रहे हैं, टीआरएस को वोट देना ओवैसी को वोट देने जैसा है.और ओवैसी को वोट देना पाकिस्तान को वोट देने जैसा है हाल ही में पार्टी नेता लोकसभा सांसद तेजस्वी सूर्या ने निगम चुनाव में रोहिंग्या मुसलमानों का मुद्दा उठाया, उन पर सर्जिकल स्ट्राइक की बात की, तो स्मृति ईरानी भी इस पर बोलने में पीछे नहीं रहीं.
ऐसा कह कर बीजेपी एक नगर निगम चुनाव में ध्रवीकरण की राजनीति कर रही है और दूसरी पार्टियों को इसका जवाब देना पड़ रहा है.”BJP अपने सांप्रदायिक तथा धुर्वीकरण के कार्ड को हैदराबाद में आज़माना चाहती है , इससे लिए सभी नेता साम्प्रदायिकता और नफरत भरे मूड में चुनावी मैदान में उतरे हैं . बल्कि BJP सांसद तेजस्वी सूर्य अपने ही देश में सर्जिकल स्ट्राइक की बात कहकर खुद को कठघरे में खड़ा कर चुके हैं .और उनके विरुद्ध इस जुमले के खिलाफ बहस शुरू हो गयी है .
BJP का कांग्रेस मुक्त भरत का ऐजेंडा
इस agende के तहत BJP को असदुद्दीन ओवैसी की AIMIM काफ़ी उप्योगी नज़र आती है । और AIMIM को भी BJP की नफरत अपना वोट बटोरने में आसानी होजाती है । BJP ओवैसी को जिन्नाह बना दें, पाकिस्तानी सपोर्टर बना दें येही सूट करता है उसको, हिन्दू मुस्लिम गेम POLITICS में अब मज़ा आणाए लगा है देश की अनपढ़ और मूर्ख जनता को, जबकि पढ़ा लिखा वर्ग आजकी इस सियासत से खुद को डूर रक्ज्णा चाहता है जो न तो देश के लिए सही है और ण ही उस वर्ग के लिए ।मगर इसमें लाभ BJP का भी है और AIMIM का भी। किन्तु जिन ISSUES पर ओवैसी PARLIAMENT और TV शोज़ में बात रखते हें वो बद शायद हाल नहीं होपयेगा और देश BJP की हिन्दू राष्ट्र की योजना को मज़बूत कर देगा, और इस बात का इमकान बढ़ जायेगा की देश में नफरत की इस सियासत की कोख से एक और मुल्क पैदा होजाए,जबकि उसकी क़ीमत डेढ़ की जनता को भारी चुकानी पड़ सकती हैं ।लिहाज़ा कांग्रेस मुक्त भरत की BJP की राजनीति काफी जोखिम भाई हो सकती है देश के लिये ।
तेजस्वी सूर्या ने प्रचार के दौरान कहा, “इससे ज़्यादा हास्यास्पद बात कुछ नहीं हो सकती है कि अकबरुद्दीन ओवैसी और असदउद्दीन ओवैसी विकास की बात कर रहे हैं. उन्होंने पुराने हैदराबाद में केवल रोहिंग्या मुसलमानों का विकास करने का काम किया है. ओवैसी को वोट भारत के ख़िलाफ़ वोट है.”
इसके जवाब में असदउद्दीन ओवैसी ने कहा, “सिकंदराबाद से बीजेपी सांसद जी किशन रेड्डी, केंद्र में गृह राज्यमंत्री हैं. अगर रोहिंग्या मुसलमान और पाकिस्तानी यहाँ रहते हैं, तो वो क्या कर रहे हैं.”इसका क्रेडिट ग्रह राज्य मंत्री और बीजेपी सांसद किशन रेडी को मिलना चाहिए .
जीएचएमसी चुनाव में बिजली, सड़क, पानी और सफाई की बात होती थी. ये पहला मौक़ा है जब इस बार ‘आया आया शेर आया’ , ‘राम लक्ष्मण जानकी, जय बोलो हनुमान की’, ‘योगी-योगी’ , जय श्री राम, भारत माता की जय और वंदे मातरम के नारे , मुसलमान, सर्जिकल स्ट्राइक, रोहिंग्या मुस्लमान और पाकिस्तान के बारे में बात हो रही है.यानि सीधे सीधे निकाय के चुनावों को भी सांप्रदायिक बनाने की नीति का उपयोग किया जा रहा है .जो देश को लगातार कमज़ोर करने की ओर बढ़ रहा है .
ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम तक़रीबन 24 विधानसभा सीट में फैला है. तेलंगाना की जीडीपी का बड़ा हिस्सा यहीं से आता है. दरअसल हैदराबाद में तक़रीबन 35 % मुसलमान रहते हैं और AIMIM के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवौसी यहीं से लोकसभा सांसद हैं.
जीत की उम्मीद
बीजेपी कभी भी तेलंगाना में बड़ी पार्टी नहीं रही है.
तेलंगाना विधानसभा चुनाव 2018 के अंत में हुए थे. 119 सीटों वाली विधानसभा में 88 सीट टीआरएस के पास हैं. 19 सीटों के साथ कांग्रेस दूसरी सबसे बड़ी पार्टी है, एआईएमआईएम के पास केवल सात विधायक हैं और बीजेपी के पास केवल 1 विधायक है. लेकिन हाल ही में हुए दुब्बाक सीट के उपचुनाव के नतीजों के बाद अब बीजेपी के पास दो सीटें है और टीआरएस के पास 87 सीटें हैं.
लेकिन छह महीने बाद जब 2019 में लोकसभा चुनाव हुए तो राज्य की 17 सीटों में से बीजेपी के पास चार सीटें आई, कांग्रेस के पास तीन सीटें, AIMIM के खाते में एक सीट. बाक़ी की 9 सीटों पर टीआरएस ने क़ब्ज़ा किया. बीजेपी इस नगर निगम चुनाव में कितनी सीटें जीतेगी इसपर कोई टिप्पणी नहीं करना चाहते मगर कुछ बेहतर Perform करेगी इसकी पूरी आशा लगाई जा रही है .