
असोथर प्रकरण में पीड़ित परिवार का बयान दिखाने पर दो पत्रकारों पर गंभीर धाराओं में मुकदमा कायम
Special Correspondent Fatehpur TOP Bureau
ज़ुल्म फिर ज़ुल्म है बढ़ता है तो मिट जाता है
ख़ून फिर ख़ून है टपकेगा तो जम जाएगा !!!
असोथर (फतेहपुर) : यू0 पी0 के फतेहपुर जनपद के असोथर क्षेत्र के एक गांव में सिघाड़ा के तालाब में दो सगी बहनों की डूबने से हुई मौत के प्रकरण में कई मोड़ आये हैं , ज़ाहिर है नेताओं को मुद्दे चाहिए होते हैं , और इन्ही मुद्दों के खेल में कभी पाडितों का भला होजाता है तो कभी गुत्थी उलझ भी जाती है .

फतेहपुर : देश और दुनिया में अधिकतर मीडिया houses और छोटे तथा मध्यम media organisations सत्ताधारी पार्टियों और दबंग व्यापारियों और राजनेताओं की निजी संपत्ति बनकर रह गए हैं , हालांकि अभी कुछ कुछ पत्रकार और Media Organisations ऐसे बचे हैं जिनको सच्चाई और इन्साफ के लिए काफी जोखिम उठाने पड़ रहे हैं . जो वास्तव में एक Pillar की तरह से जमे हुए हैं हालांकि उनको ध्वस्त करने या डुलाने की पूरी कोशिशें साम्राज्य्वादी सोच के तहत की जा रही हैं ..
इसे कड़ी में अगर बात करें तो उत्तर प्रदेश के फतेहपुर जनपद का प्रशासन चंद् चाटुकार पत्रकारों की वजह से मीडिया को अपनी जागीर समझने लगा है .फतेहपुर के कुछ पत्रकार सत्तापक्ष और प्रशासन की चापलूसी करने को ही पत्रकारिता समझते हैं और करते हैं .शर्म आती है उन पत्रकारों पर जो सुबह होते ही प्रशासनिक अधिकारियों के कमरों में जाकर कुर्सी पर सवार हो जाते हैं और उनके दरबारी की तरह वाहवाही के पुलिनदे बांधते रहते हैं , इसी को पत्रकारिता कहते हैं .

ऐसे में असोथर थाने की घटना में भी मीडिया में कौरव और पांडव नज़र आये जिनमें एक सत्य और दूसरा असत्य तथा स्वार्थी दिखाई दिया .मीडिया के कुछ चाटुकारों और चापलूस पत्रकारों ने वरिष्ठ पीड़ित पत्रकार परिवार का बयान और सच्चाई ना दिखा कर खुद ही पुलिस एवं जिला प्रशासन की झूटी प्रशंसा में लग गए , और कुछ ने तो जिला प्रशासन के प्रवक्ताओं की तरह मीडिया पर ही उंगलियां उठाना शुरू कर दी .
पुलिस एवं प्रशासन के दरबारी पत्रकारों की वजह से जनपद में गिर रहा है पत्रकारिता का स्तर
क्या मीडिया की स्वतंत्रता के नाम पर सिर्फ इतना ही बचा है कि वह पुलिस एवं जिलाधिकारी के कहने पर ही खबर चलाएं क्या अब फतेहपुर की मीडिया का प्रतिनिधित्व जिलाधिकारी एवं पुलिस अधीक्षक करेंगे ??
अरे प्रशासन के कारनामों को , जो इन्साफ और बहादुरी के साथ किये गए हैं उनको दिखाना और लिखना पत्रकारिता का धर्म है और वो सामने आना ही चाहिए किन्तु व्यक्तिगत तरीके से प्रताणित और पीड़ित लोगों को इन्साफ दिलाना भी पत्रकारिता की ही ज़िम्मेदारी है .और अगर पत्रकार ही पूर्वग्रह से ग्रस्त हो गया तो सच कौन दिखायेगा ??
याद रखो जो क़ौमें इन्साफ नहीं करतीं वो और उनकी नस्ल एक रोज़ मज़लूम और पीड़ित बन जाती है उनकी नस्लों पर ज़ुल्म के पहाड़ तोड़े जाते हैं ,इसलिए पत्रकार बंधुओं से हमारा आग्रह है की अपनी नस्लों को और अपने परिवारों को ज़ुल्म और अत्याचार से बचाने के लिए हमेशा सच और इन्साफ का साथ दें .ज़ालिम अगर अपना भाई भी हो तो उसके खिलाफ रहें और मज़लूम यदि जानवर भी हो तो उसका साथ दें एहि है पत्रकारिता , एहि है मानवता और इसी को कहते फ़र्ज़ के प्रति वफ़ादारी , वर्ण बे वफाओं को सजा भुगतते हमने भी देखा है .
यह सही है , न्याय और सच से काम करने वाले पत्रकारों और लेखकों के साथ ज़ुल्म होरहा है .उनके विरुद्ध संगीन धाराओं पर मुक़द्दमे दर्ज किये जा रहे हैं ? यह बिलकुल काली रात के अँधेरे की तरह सरकारों का Failure है , लेकिन याद रखो काली रात के डर से लोग सुबह की ख़ुशी का स्वागत नहीं छोड़ते , रात के बाद सवेरा प्रकृति का निज़ाम है , इसलिए जीत सच की ही होनी है . मीडिया की स्वतंत्रता के नाम पर चापलूसी और गुलामी बंद करो . और सच के साथ सीसा पिघलाई दीवार की तरह खड़े हो जाओ . और हम विश्वास दिलाते हैं अपने ईमानदार प्रशासनिक अधिकारीयों को की वो भी निडर और बेख़ौफ़ होकर इन्साफ के हक़ में फैसला करें .अपनी Duty के प्रति और संविधान के शपथ के प्रति वफादार रहें हम हर हाल में आपके साथ रहेंगे .
हम जानते हैं की कुछ भ्रष्ट और चापलूस अधिकारियों की चाटुकारिता और गणेश परिक्रमा की वजह से शरीफ और ईमादार अफसर खामोश रहते हैं या मजबूर होते हैं ज़ालिम का साथ देने के लिए , क्योंकि उनपर सत्ता धारी राजनेताओं की तलवार लटकी होती है , उनपर ज़ालिम का साथ देने के लिए Pressure होता है . लेकिन इसी में कुछ ईमानदार अधिकारी आज भी हैं जिनको हम salute करते हैं .
फतेहपुर ज़िले के प्रकरण में हम प्रशासन और सरकार से भी आग्रह करते हैं की वो इन्साफ करें .अब देखने की बात है कि फिर वही पुराना काम होगा मुकदमा वापस किया जाएगा और फिर से मीडिया इन्हीं अधिकारियों के जी हुजूरी में लग जाएगी या इस मामले को लेकर फतेहपुर में मीडिया की गिरती हुई छवि को बचाने का काम किया जाएगा.
नहीं दिख रहा है मीडिया के नाम पर पुतला जलाने वाला संगठन
मुंबई में एक पत्रकार की गिरफ्तारी हुई तो भाजपा के वरिष्ठ नेताओं से लेकर जिले के संगठन ने CM का पुतला जलाकर इसका विरोध किया. और दिल्ली के जंतर मंतर पर जब तक बैठे रहे जब तक उस पत्रकार को बेल नहीं हो गयी , आज जनपद फतेहपुर मे पीड़ित परिवार का साथ देने या सच दिखाने पर दो वरिष्ठ पत्रकारों पर मुकदमा कायम हो गया . इस पर सत्ता दल के लोग चुप हैं , क्या सिर्फ मुंबई के पत्रकार के लिए ही विरोध प्रदर्शन करने के लिए बनाए गए हैं संगठन और सरकारें ?
आज जिले में हो रहे पत्रकारों के शोषण पर जनपद के सभी संगठन राजनितिक और ग़ैर सरकारी संगठनों की खामोशी किसी भयानक घटना की ओर इशारा कर रही है , आप जानते हैं किसी के साथ कोई घटना या ना इंसाफ़ी होती है तो उसे सबसे पहले पत्रकार नजर आते हैं लेकिन आज जब एक पीड़ित पत्रकार को आपकी ज़रुरत है तो आप तमाशा देख रहे हैं , आपकी यह तमाशबीनी आपको ही एक रोज़ ले डूबेगी .
शोहरत की बुलंदी भी पल भर का तमाशा है
जिस डाल पे बैठे हो वो टूट भी सकती है
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