
मैं मुस्लिम हूं
और तुम मुझ जैसे नहीं हो।
तो क्या तुम मुझ पर हमला करोगे?
नहीं दोस्त,
तुम भेड़िया नहीं हो,
मेरी तरह
एक इंसान हो।
ठीक है
हमारे विचार, कर्म, संस्कार अलग अलग हैं
मगर हम हैं तो एक ही आदम की संतान।
कुछ रिश्ता है हमारा
हमारा ख़ून तो एक ही है।
किसी का बहे, नुक़सान दोनों का है।
इसलिए कहता हूं,
हम भेड़िया न बनें
न तुम और न मैं।
अलग अलग होना कोई अपराध तो नहीं?
कौन है जो ठीक एक जैसा है?
जुड़वां भी नहीं कि मां उनको भी
पहचान लेती है?
इंद्रधनुष क्या अच्छा नहीं लगता?
या उपवन के हज़ार फूल?
या चिड़ियों की प्रजातियां?
न एक दिन यक्सां है
और न बहता समय।
समय हमारा भी आएगा
तब तुम जान लोगे कि भाई क्या होता है।
चाहे तुम पर भेड़िया होने की मोहर ही
क्यों न लगी हो।
हम अपने मानवता के इतिहास को दोहराएंगे
यह वादा है!
यह सही है कि
हम सब में
भीतर कहीं एक
भेड़िया रहता है, इंसान के नक़ाब में।
मगर उसका शिकार कोई मुश्किल तो नहीं
अगर यह याद रहे कि हमारा ख़ून एक ही है।
किसी का बहे, नुक़सान दोनों का है।
इसलिए कहता हूं,
हम भेड़िया न बनें
न तुम और न मैं।
कुछ नारे हैं, कुछ नेता हैं
जगाते रहते हैं हमारे भीतर के भेड़िये को।
और जाकर उसकी मांद में ऐश करते हैं।
रह जाता है विलाप, बस विलाप
हर ओर।
न लजाएं उस बनाने वाले को
जिसने हमें बनाया तो मनुष्य ही है
मगर एक कमी इरादतन (स्वेच्छा ) से छोड़ दी कि
उसे ठीक करना हमारा काम रहे ।
आओ,
उस भीतरी भेड़िये का शिकार किया जाए
अपनी कजी को ठीक किया जाए
पूरा इंसान बनाया जाए।
शायद हमारा बनाने वाला
हम से राज़ी हो।
और हम देवताओं से भी ऊंचे हो जाएं।
पसंद हमारी है
क्या बनना है?
देव पुरूष
या
लाल आंखों का भेड़िया??