लाख मौजोँ में घिरा हूँ , अभी डूबा तो नहीं मुझको साहिल से पुकारो के मैं ज़िंदा हूँ अभी
सांप्रदायिक सद्भाव और इंसानीयत के अभाव में सिसकते और लरज़ते इस दौर में आपको ढूंढे से ऐसे कुछ लोग मिल जाएंगे जो आज भी मुल्क में भारत की विरासत और मानवता को ज़िंदा रखने में अपनी जान की बाज़ी लगाने को भी तैयार हैं ।चलिए आज ऐसे ही एक शख्सियत का ज़िक्र कर लेते हैं जो शायद आने वाले वक़्त में एक मिसाल बनकर उभरेगी । रब ऐसे मुंसिफ़ों की हिफाज़त फ़रमा ।
अच्छा सबसे पहले इस ख़ैर ए उम्मत यानी मुस्लिम क़ौम और उनके रहनुमाओं से हम यह जानना चाहेंगे की आज देश के सबसे ज़्यादा चर्चित और विवादास्पद मुद्दे यानी बाबरी मस्जिद राम जन्म भूमि विवाद के बारे में आपके पास क्या जानकारी है , क्या आपको यह मालूम है कि इस मुक़द्दमे को लड़ने के लिए मैदान ए कारगार में कौन है ?
इससे भी पहले आप यह बताएं की देश में मिल्ली जमातें कितनी हैं और मज़हबी और मुस्लिम सियासी लीडरों की तादाद क्या है , शायद आपका जवाब होगा की इनकी तादाद तो हज़ारों में है बल्कि लाखों में भी कुछ का जवाब होगा , लेकिन क्या आपको पता है ??
बाबरी मस्जिद की बक़ा और इसके पक्षकारों का मुक़द्दमा सुप्रीम कोर्ट में कोई मुस्लिम वकील नहीं लड़ रहा ,बल्कि एक हिन्दू संत बिना फीस लिए बाबरी मस्जिद का मुक़द्दमा सिर्फ अपनी Professional ज़िम्मेदारी समझकर नहीं लड़ रहा बल्कि उसको जीतने के लिए इंतहाई कोशिश कर रहा है और उसकी पूरी टीम पूरे तन ओ मन से इस तारीखी मुक़द्दमे को लड़ने में मसरूफ है और जान से मारने की धमकियों के साये में बाबरी मस्जिद से मुताल्लिक़ हर क़िस्म के दस्तावेज़ और तथ्य इकठ्ठा करने में दिन ओ रात मसरूफ हैं ।
आपको यह बात सुनकर हैरत के साथ अफ़सोस भी होगा की बाबरी मस्जिद के मुक़द्दमे को हार जाने या ख़त्म करने के लिए कई ऐसे मुस्लिम लीडरों और मिल्ली जमातों ने प्रस्ताव भी रखे बल्कि यह चाहा है कि कुछ फ़ानी आकाओं की नज़र में सुर्खुरू (महानुभाव) बनने के लिए इस मुक़द्दमे में मध्यस्ता की जाए .
सवाल यहाँ बाबरी मस्जिद के मुक़द्दमे को हारने या जीतने का नहीं है बल्कि उस तारीखी हक़ाइक़ (सच्चाई ) को दुनिया के सामने लाने और उन मज़हबी दंगाइयों की अक़्ल को ठिकाने लगाने का है जिसको एक ख़ास विचार धारा ने देश में नफ़रत का बीज बनाकर सत्ता का वो पेड़ तैयार किया है जिसका फल मुल्क की तहज़ीब की सेहत के लिए कड़वा भी है और हानिकारक भी ।
फ़िलहाल हम बात कर रहे हैं उस शख्स की जो बाबरी मस्जिद का मुक़द्दमा लड़ने में अपनी निजी लड़ाई को हार जाना चाहता है , याद रहे आज के दौर में एक भाई भी दुसरे भाई की लड़ाई नहीं लड़ रहा हैं ।
जिस क़ौम को दुनिया में इंसाफ़ को क़ायम करने के लिए भेजा गया था और ज़ालीम व् मज़लूम दोनों की मदद के लिए निकाला गया था ,जब मुहम्मद स० अo व्o से पूछा गया कि मज़लूम की मदद तो समझ आती है मगर ज़ालिम की मदद कैसे की जाए तो मुहम्मद स0 अ0 व0 ने फ़रमाया था “ज़ालिम को ज़ुल्म से रोकना उसकी मदद है” क्योंकि ज़ालिम हमेशा की नरक भोगेगा और दुनिया में भी बुरी मौत मारा जाएगा ।
यानी मुस्लमान को भलाई के फैलाने और बुराई को मिटाने के लिए भेजा गया था , लोगों के साथ इन्साफ और अख़लाक़ पेश करने के लिए भेजा गया था ,और धरती पर रब का तार्रुफ़ कराने के लिए भेजा गया था ,यही इबादत है ,लेकिन इस खैर ए उम्मत ने सारे एहकामात (इश्वरिये आदेश ) की अवमानना की तो उसकी सज़ा में आज उसको महकूम (क़ैदी ), मग़लूब (अधिकृत ) , और रुस्वा (बदनाम ) होना पड़ रहा है ।
तो दोस्तों आइये मिलाते हैं हम आपको आपके मोहसिन से , जिनका नाम है राजीव धवन , श्री धवन ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय, फिर कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय और लंदन विश्वविद्यालय में कानून की पढ़ाई की। उन्होंने क्वीन यूनिवर्सिटी बेलफास्ट, वेस्ट लंदन विश्वविद्यालय, विस्कॉन्सिन विश्वविद्यालय-मैडिसन और टेक्सास विश्वविद्यालय ऑस्टिन में पढ़ाया है। वह भारतीय विधि संस्थान में मानद (Honorary) प्रोफेसर हैं।
दुनिया के क़ाबिल तरीन लोगों में शामिल हैं श्री धवन , वो अब भारत के सर्वोच्च न्यायालय के एक वरिष्ठ अधिवक्ता हैं और उन्हें 1994 में नामित किया गया था। वह जनहित कानूनी सहायता और अनुसंधान केंद्र चलाते हैं , जो युवाओं को संवैधानिक और कानूनी विषयों की जानकारी देने का प्रयास करता है। धवन 1998 में अंतर्राष्ट्रीय न्यायविदों के लिए चुने गए थे, 2003 और 2007 के बीच कार्यकारी समिति के सदस्य रहे , और उन्हें 2009 में कार्यकारी समिति का अध्यक्ष नियुक्त किया गया था।
आपको याद है ?जब इलाहबाद हाई कोर्ट ने फैसला दिया कि साइट को हिंदुओं और मुसलमानों के बीच विभाजित किया जाना चाहिए, तो धवन ने क्या कहा था : राजीव धवन ने कहा था “यह पंचायती न्याय है जो मुसलमानों के कानूनी अधिकारों को छीन लेता है और हिंदुओं के नैतिक और संवैधानिक अधिकारों को कानूनी अधिकारों में परिवर्तित करता है” और यह बात कोई ईमान वाला ही कह सकता है ।
हालांकि हालिया दिनों में मुस्लिम पक्षकारों की वकालत करते हुए धवन ने अल्लामा इक़बाल को कोट करते हुए कहा था “है राम के वुजूद पे हिन्दोस्तान को नाज़ –अहल ए नज़र समझते हैं उसको इमाम ए हिन्द ”
यानी वो कहीं न कहीं राम को भी एक पवित्र और पूजनीय होने से इंकार नहीं करते बल्कि राम की बुज़ुर्गी (सम्मान) को पाखंडियों के चुंगल से निकालने में हिन्दुओं का साथ देने का भी काम कर रहे हैं ।
धवन ने बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी का प्रतिनिधित्व इलाहबाद हाईकोर्ट के समक्ष उस भूमि पर शीर्षक से किया है जिस पर 1992 में एक भीड़ द्वारा नष्ट किए जाने से पहले मस्जिद खड़ी थी।धवन की तारीफ में क़सीदा कारी हमारा मक़सद नहीं बल्कि मुस्लिम अवाम को यह बताना है की आपकी लड़ाई लड़ने वाला एक इंसाफ़ पसंद वकील राजीव धवन है ।जो हिन्दुओं को भी इस बात की दावत दे रहा है कि राम का सच्चा भक्त बनना है तो राम की तरह अगर सिहांसन छोड़कर बनवास नहीं ले सकते तो कम से कम गद्दी पर बैठकर इंसाफ़ करना तो सीख लो ।
अब आप फैसला करें की आपका मोहसिन कौन ?? मिल्लत की रहनुमाई का दावा करने वाले फरेबी सियासतदां और नामनिहाद मज़हबी रहनुमा जिन्होंने देश की २२ करोड़ अक़लियत के जज़्बात और मिली एहसासात की हिफाज़त की है या जिनके नाम से कुफ्र की बू आरही हो मगर काम अहल ए ईमान वाले हों ,इंसानियत का हमदर्द यानी राजीव धवन ?
है अयाँ यूरिश -ए -तातार के अफ़साने से पासबाँ मिल गए काबे को सनम ख़ाने से !!