टेलीविज़न चैनलों पर होने वाली तीखी बहस कुछ दिन तो लोगों के दिमागों पर छाई रहती है लेकिन जैसे ही कोई नया मुद्दा आता है पिछले मुद्दे मांद पड़ते जाते हैं दरअसल ये मुद्दों का चक्रव्यूह है जो जनता को भ्रमित रखता है ,मगर सच्चाई यह है कि आज सियासत मुद्दों पर आधारित है मोहब्बतों पर नहीं। दरअसल टीवी चैनल समाज में सरकारी योजनाओं और ख़बरों को जहां एक तरफ अवाम को पहुंचाने का काम करते है वहीँ दूसरी ओर जनता की राय बनाने का काम भी टीवी चैनल और अखबार करते हैं।
जनता ,TV और अखबार कि खबर को खुदाई खबर मानकर अपनी अच्छी या बुरी राय बना लेती है जबकि कुछ समझदार लोग खबर की सच्चाई से बखूबी वाकिफ़ होते हैं और खबर की तहक़ीक़ करते हैं मगर यह परसेंटेज कुलमिलाकर .8% है । जिस समय लोकपाल आंदोलन अन्ना जी चला रहे थे उस वक्त देश से भ्रष्टाचार मिटाने का सिर्फ लोकपाल बिल को ही एक मात्र विकल्प समझा जा रहा था और अन्ना आंदोलन को देश में आज़ादी की दूसरी लड़ाई माना जा रहा था ।
हैरत की बात ये है की 2014 जनवरी में जो लोकपाल बिल सर्वसम्मति से पारित हुआ था वह तीन साल गुजरने के बाद भी देश में लागू नहीं हो पाया , कर्नाटक में लोकायुक्त संतोष हेगड़े पर आरोप लगाकर उनको हटा दिया गया ,मध्य प्रदेश में लोकायुक्त के चलते छापे मारी होती है लोग गिरफ्तार होते हैं हालांकि राज्य सरकार इससे कितना संतुष्ट है ये तो वही बताएगी ,गुजरात में 9 -10 वर्षों से कोई लोकायुक्त नहीं है ।लोकपाल क्यों पेंडिंग है और नोट बंदी क्यों लागू होरहा है यह समय बताएगा या आपको पता हो तो आप भी बता सकते हैं ।
मज़े की बात ये है की टीवी चैनलों पर आरएसएस और बीजेपी के नेता आगे बढ़ कर इस बिल को पारित करने में अपने योगदान की बात कर रहे थे आज वो ही देश से भ्रष्टाचार मिटाने का एक मात्र विकल्प नोटबंदी को मानने लगे हैं , और लोकपाल बिल कहीं खोगया है । लोकपाल आंदोलन के दौरान विपक्ष कहता था की सरकार को देश सबक़ सिखाएगा ,जनता ने तो वाक़ई UPA और कांग्रेस को सबक़ सिख दिया मगर बीजेपी ने isse क्या सबक़ लिया यह देखना अभी बाक़ी है …
लोकपाल बिल लाने के लिए एजेंसीज ने सर्वे कराये थे ,देखें ! किस तरह विपक्ष और सत्ता में मुद्दों की परिभाषाएं बदलती हैं UPA के समय में जो सर्वे कराये गए थे और आज जो सर्वे में सवाल पूछे गए हैं ज़रा इनके फ़र्क़ को समझें:
UPA के दौर में पूछे गए सवाल
सवाल:सरकारी लोकपाल पर आपका क्या मत है?
सवाल:क्या आप सरकार के मत से सहमत हैं?
सवाल:क्या आप अन्ना हज़ारे के तर्क से सहमत हैं?
सवाल:सरकार ,निर्वाचित प्रतिनिधि,न्याय पालिका ,कारोबारी ,उद्योगपति ,NGO ,और मीडिया में से सबसे ज़्यादा कौन भ्रष्ट है ?
अब ज़रा सर्वे में जनता के फैसले पर नज़र डालें , ३२% ने कहा सरकार सबसे ज़्यादा भ्रष्ट जबकि ४३% ने कहा चुने हुए नेता , बाकी ने कहा कह नहीं सकते ।
आज नोटबंदी के मामले में सवाल पूछा जा रहा है की क्या आप भ्रष्टाचार के खिलाफ सरकार के साथ हैं?हाँ या नहीं , इस सवाल के जवाब में तो वास्तविक भ्रष्टाचारी भी हाँ में ही जवाब देगा ।
UPA के समय सवाल किया गया था ,क्या आप लोकपाल के बारे में जानते हैं ? आज ये सवाल नहीं किया गया क्या आप काले धन के बारे में जानते हैं ?
आज सरकार द्वारा सवाल किया जारहा है कि , नोटबंदी से होने वाली परेशानी के
बावजूद आप इसके पक्ष में हैं? 86 .1 % ने कहा हाँ , लेकिन २० नवम्बर के हिंदी हिंदुस्तान के अनुसार १० दिनों में १० से २० % घटने लगे नोटबंदी के समर्थक ।
नोट बंदी के मुद्दे पर आज लोगों के बीच तल्खियां कभी कभी भयानक मोड़ लेरही हैं ऐसा ही कुछ लोकपाल बिल के समय भी हो रहा था मगर जनता tv पर नेताओं और एंकर्स के बीच बहसों से मंत्रमुग्ध होगई है, या भ्रमित होगई है कह सकते हैं ।
आमतौर से किसी फैसले को लेने से पहले सर्वे कराया जाता है आज फैसला थोपने के बाद सर्वे कराया गया है! और उसको अपनी जीत कहा जारहा है अगर यह सर्वे मज़दूरों और और किसानों तथा माध्यम वर्ग में कराया जाए तो विशेषज्ञों का मानना है की 99% मोदी सरकार के खिलाफ जाएगा , नहीं तो कराके देखलो ।
हालांकि इस लेख के बाद होसकता है हम भी देश द्रोह कहलाने लगें लेकिन अगर देश की ग़रीब ,मज़दूर और किसान वर्ग की हिमायत में 11 अरब रूपये की देश की जनता की रक़म को अपने विज्ञापन में खर्च करने वाले और उनके सहयोगी हमको देश द्रोह कह भी दें तो कोई हर्ज नहीं आखिर इसी भारत की ग़रीब जनता के अधिकारों और आज़ादी की खातिर ही लाखों मतवालों ने साम्राजयवादियों के विरुद्ध अपनी जान की बाज़ी लगाई थी आज फिर देश की आज़ादी को बचाने और ग़रीब जनता के अधिकारों को बचाने के लिए आंदोलन की ज़रुरत है जिसकी शुरूआत हो रही है ।Editor’s desk