प्रो -टेम क्या है और इसकी भूमिका क्यों हुई एहम ..
सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक की भारतीय जनता पार्टी सरकार को शनिवार शाम चार बजे तक विधानसभा में बहुमत सिद्ध करने का समय दिया है.
इसी बीच कर्नाटक के राज्यपाल वजुभाई वाला ने बीजेपी विधायक केजी बोपैया को प्रो-टेम स्पीकर यानी विधानसभा का अस्थायी अध्यक्ष नियुक्त कर दिया है.
कांग्रेस और जनता दल ने राज्यपाल के इस निर्णय का विरोध करते हुए शुक्रवार रात सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर दी जिस पर शनिवार सुबह साढ़े दस बजे सुनवाई होनी है.
जस्टिस एके सीकरी की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय बेंच इस मामले की सुनवाई करेगी.
परंपरागत रूप से प्रो-टेम स्पीकर को विधानसभा या लोकसभा के सदस्यों की आपसी सहमति के बाद ही नियुक्त किया जाता है.
प्रो-टेम स्पीकर का काम सदन के स्पीकर के चुने जाने तक उनके कार्य का निष्पादन करना होता है. ये एक अस्थायी पद है जो स्पीकर के चुने जाने के बाद स्वतः समाप्त हो जाता है.
आमतौर पर प्रो-टेम स्पीकर की नियुक्ति पर हंगामा नहीं होता है क्योंकि प्रो-टेम स्पीकर एक अस्थायी पद है. सदन के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष की मृत्यु, अनुपस्थिती या इस्तीफ़े की वजह से यदि दोनों पद खाली हो जाएं तब प्रो-टेम स्पीकर ही सदन के कार्य की ज़िम्मेदारी संभालते हैं.
वरिष्ठ पत्रकार प्रमोद जोशी कहते हैं, “आमतौर पर प्रो-टेम स्पीकर का काम बहुत छोटा होता था. वो विधायकों को शपथ दिलाते थे. सदन के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष का चुनाव हो जाने के बाद उनकी भूमिका ख़त्म हो जाती थी. लेकिन इस बार ये महत्वपूर्ण और विवादास्पद हो गया है क्योंकि अब ये एक विशेष सत्र है जो सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार हो रहा है और इसे लेकर कई तरह के कयास और अंदेशे लगाए जा रहे हैं.”
प्रमोद जोशी कहते हैं, “दोनों ही ओर से ये अंदेशा है कि यदि कांग्रेस या जेडीएस के किसी सदस्य या कुछ सदस्यों ने अपनी पार्टी की अवहेलना करके वोट किया और उनके वोट से सरकार गिरी या बरकरार रही तो प्रो-टेम स्पीकर उनकी सदस्यता पर क्या फ़ैसला लेंगे. ये शक़ ज़ाहिर किया जा रहा है कि प्रो-टेम स्पीकर ऐसे विधायकों की सदस्यता रद्द नहीं करेंगे.”
आमतौर पर सदन के सबसे वरिष्ठ सदस्य को ही प्रो-टेम स्पीकर चुन लिया जाता है लेकिन इस बार ये परंपरा टूटी है.
प्रमोद जोशी कहते हैं, “प्रो-टेम स्पीकर की परंपरा के साथ-साथ हमें स्पीकर की परंपरा को लेकर भी बात करनी चाहिए. किसी को भी स्पीकर चुना जाने के बाद तुरंत पार्टी छोड़ देनी चाहिए और निष्पक्ष होना चाहिए. सच ये है कि आज हमारे देश में गवर्नर और स्पीकर जैसे पद भी राजनीति से जुड़ गए हैं और हम ये उम्मीद नहीं रखते हैं कि वो आदर्शों और परंपराओं का पालन करेंगे.”
प्रमोद जोशी कहते हैं, “केजी बोपैया पहली बार प्रो-टेम स्पीकर नहीं चुने गए हैं. वो साल 2008 में भी प्रो-टेम स्पीकर चुने गए थे. ज़ाहिर है तब वो और भी छोटे रहे होंगे और उनसे वरिष्ठ सदस्य सदन में रहे होंगे. ये स्पष्ट लग रहा है कि उनका चयन राजनीति से प्रेरित है.”
कर्नाटक में चल रहे हाई वोल्टेज राजनीतिक ड्रामे के बीच सदन में कुछ भी हो सकता है.
विधायक आपस में भिड़ भी सकते हैं, शोर शराबा भी हो सकता है, बहुमत सिद्ध करने के लिए होने वाले मत-विभाजन में विवाद भी हो सकता है. इसे लेकर भी कई तरह के अंदेशे हैं.
प्रमोद जोशी कहते हैं, “बहुत संभव है कि सदन में हंगामा भी हो जाए. ये पहली विधानसभा नहीं है जिसमें ऐसी परिस्थिति आई है. इससे पहले हमारे देश की कई विधानसभाओं ने ज़बरदस्त हंगामा और झगड़े देखे हैं.”
“इन्हीं परिस्थितियों में प्रो-टेम स्पीकर की भूमिका और भी ज़्यादा महत्वपूर्ण हो गई है.”