प्रेस विज्ञप्ति
By :फजलुर रहमान क़ासमी
प्रेस सचिव जमीयत उलमा-ए-हिंद
9891961134
हल्द्वानी हिंसा मामला :जमीयत उलमा-ए-हिंद की ओर से सुप्रीम कोर्ट की वरिष्ट अधिवक्ता नीता रामा कृष्णन ने बहस की ।
मौलाना अरशद मदनी के निर्देश पर आरोपियों को कानूनी सहायता प्रदान की गई
नैनीताल, 10 मार्च 2025 :हल्द्वानी हिंसा मामले में पुलिस की ज्यादती के शिकार 22 आरोपियों की डिफॉल्ट जमानत याचिका पर बीते कल उत्तराखंड हाई कोर्ट की नैनीताल पीठ में सुनवाई हुई। सुनवाई के दौरान, आरोपियों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता नित्या रामकृष्णन ने अदालत को बताया कि इससे पहले कोर्ट ने 50 आरोपियों की डिफॉल्ट जमानत मंजूर की थी।
उन्होंने यह भी कहा कि आज अदालत में 22 आरोपियों की डिफॉल्ट जमानत की याचिका वाला मामला भी उन्हीं 50 आरोपियों के समान है, अत: पहले से जमानत पर रिहा आरोपियों की तरह इन आरोपियों को भी जमानत पर रिहा किया जाना चाहिए। अरोपियों के मुकदमों की पैरवी जमीयत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी के निर्देश पर की जा रही है।

हल्द्वानी हिंसा मामला :जमीयत उलमा-ए-हिंद की ओर से सुप्रीम कोर्ट की वरिष्ट अधिवक्ता नीता रामा कृष्णन ने बहस की
ये आरोपी फरवरी 2024 से जेल में बंद हैं, जबकि हल्द्वानी सेशन कोर्ट ने उनकी डिफॉल्ट जमानत याचिकाएँ 3 जुलाई 2024 को खारिज कर दी थीं।सुनवाई में वरिष्ठ अधिवक्ता नित्या रामकृष्णन के तर्क सुनने के पश्चात, उत्तराखंड हाई कोर्ट की दो सदस्यीय पीठ के न्यायमूर्ति पंकज प्रोहत और न्यायमूर्ति मनोज कुमार तिवारी ने सरकारी वकील से पूछा कि क्या इन आरोपियों का मामला भी उन्हीं आरोपियों जैसा है जिन्हें पहले जमानत दी जा चुकी है।
सरकारी वकील ने सकारात्मक उत्तर दिया, हालांकि यह भी बताया कि इन मामलों में मामूली अंतर है। अदालत ने सरकारी वकील को निर्देश दिया कि वे पहले वाले आरोपियों और अभी जमानत की याचिका दाखिल करने वाले आरोपियों के मामलों में क्या अंतर है, इसे स्पष्ट करें।
वरिष्ठ अधिवक्ता नित्या रामकृष्णन के अनुरोध पर अदालत ने 22 आरोपियों द्वारा दायर डिफॉल्ट जमानत याचिकाओं पर फैसला सुरक्षित रख लिया। सुनवाई के दौरान, वरिष्ठ अधिवक्ता नित्या रामकृष्णन ने यह भी बताया कि जांच एजेंसी ने गिरफ्तारी के 90 दिनों के बाद आरोपियों के खिलाफ यूएपीए (गैरकानूनी गतिविधियों की रोकथाम का कानून) का प्रवर्तन कर दिया ताकि आरोपियों को जमानत से वंचित किया जा सके और एजेंसी को जांच के लिए अधिक समय मिल सके।
हालांकि, उसी अदालत ने इस कार्रवाई को अवैध करार दिया था और पहले चरण में 50 आरोपियों की डिफॉल्ट जमानत मंजूर की थी। इसी दौरान, अदालत ने चार अन्य आरोपियों द्वारा दायर नियमित जमानत याचिकाओं पर राज्य सरकार को नोटिस जारी करते हुए आदेश दिया कि वे चार हफ्तों के भीतर अपना जवाब प्रस्तुत करें।
आरोपी ज़िया रहमान, मोहम्मद तसलीम, अब्दुर्रहमान और ज़िया रहमान अहमद की नियमित जमानत याचिकाओं पर भी सुनवाई की गई और नोटिस जारी किया गया। उत्तराखंड हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ने हल्द्वानी हिंसा मामले से संबंधित जमानत याचिकाओं की शीघ्र सुनवाई के लिए बचाव पक्ष के वकीलों की अर्जी पर एक विशेष पीठ का गठन किया है, ताकि इन याचिकाओं पर जल्द से जल्द सुनवाई की जा सके।
हाई कोर्ट ने जिन आरोपियों की डिफॉल्ट जमानत याचिकाओं पर सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रखा है, उनके नाम जावेद कुरैशी,मोहम्मद समीर चांद,अयाज़ अहमद,भोला सुहैल, समीर पाशा,शुईब,शाहनवाज शानो, फैज़ान, रईस अहमद अंसारी,अब्दुल माजिद,मोहम्मद नईम,साजिद,सगीर अहमद, इसरार अली,शानो राजा,रईस बट्टू,महमूब माकू,शाहनवाज, जुनैद मोहम्मद शुईब शीबू, मोहम्मद अयान मलिक,मोहम्मद अनस है।
इससे पहले, जमीयत उलमा-ए-हिंद की कानूनी सहायता समिति की पैरवी के चलते, उत्तराखंड हाई कोर्ट ने 50 आरोपियों (जिनमें 6 महिलाएं भी शामिल थीं) की डिफॉल्ट जमानत याचिकाएँ मंजूर की थीं। बीते कल, सुनवाई में वरिष्ठ अधिवक्ता नित्या रामकृष्णन की सहायता में एडवोकेट शाहिद नदीम, एडवोकेट सी.के. शर्मा, एडवोकेट आरिफ अली, एडवोकेट मुजाहिद अहमद, एडवोकेट सतूति राय, एडवोकेट नितिन तिवारी, एडवोकेट विजय पांडे, एडवोकेट वासिफ खान, एडवोकेट मनीष पांडे, एडवोकेट आसिफ अली, एडवोकेट दानिश अली, एडवोकेट ज़मीर अहमद, एडवोकेट मोहम्मद अदनान आदि ने पैरवी की।
साथ ही, आरोपियों के परिवार के सदस्यों ने भी ऑनलाइन माध्यम से सुनवाई में भाग लिया। परिजनों के साथ मौलाना मुकीम कासमी ( अध्यक्ष जमीयत उलमा, जिला नैनीताल ), मौलाना मोहम्मद कासिम महासचिव जिला नैनीताल,मौलाना मोहम्मद आसिम,मौलाना मोहम्मद सलमान महासचिव हल्द्वानी,डॉक्टर अदनान, अब्दुल हसीब और अन्य शामिल थे।
8 फरवरी 2024 को उत्तराखंड के हल्द्वानी शहर के मुस्लिम बहुल इलाके बनभूलपुरा में यह अशांति फैल गई थी, जब पुलिस ने कथित तौर पर गैरकानूनी रूप से निर्मित मस्जिद और मदरसे को ध्वस्त करने के लिए कदम बढ़ाया था।
ध्वस्तकारी कार्रवाई से पहले पुलिस और इलाके के लोगों के बीच झड़प हो गई, जिसके पश्चात पुलिस की गोलीबारी में पांच मुस्लिम युवकों की मौत हो गई थी। इस घटना के बाद, बनभूलपुरा पुलिस ने 101 मुस्लिम पुरुषों और महिलाओं के खिलाफ तीन मामले दर्ज किए थे और उन पर कड़े कानूनी प्रावधानों के तहत यूएपीए का प्रवर्तन किया था।