Kalimul Hafeez Politician
President AIMIM Delhi NCT
राजनीति के क्षेत्र में हर इंसान ख़ुद को जनता और देश का सेवक कहता है, स्टेज पर जनता की सेवा की दुहाई दी जाती है।
चुनाव के समय जनता का सेवक हाथ जोड़कर वोट मांगता है, चुनाव पर जो पैसा ख़र्च किया जाता है वह भी एक प्रकार का इन्वेस्टमेंट ही होता है जिसे ब्याज के साथ हासिल किया जाता है। अधिकतर राजनेताओं की दौलत में प्रतिदिन बढ़ोतरी हो रही है, जनता ग़रीब से ग़रीबतर होती जा रही है और नेता अमीर से अमीर तर हो रहे हैं।
न्यायालय जिसका काम ही न्याय करना था वहां भी घोटालों ने अपना स्थान बना लिया है। कुछ वकीलों के बारे में मशहूर होता है कि वह कोई मुक़दमा नहीं हारते, उनके पास जाओगे तो ज़मानत मिल ही जाएगी। विश्वास की यह कैफ़ियत इसलिए है कि उस वकील के ताल्लुक़ात जज साहब से बहुत अच्छे हैं। जिनकी बुनियाद पर वह अपने काम निकाल लेता है। न्यायालयों में पैसे के हेरफेर के साथ ही सत्ता के दबाव में कार्य करने का करप्शन भी है।
जज साहब सरकार के इशारों पर काम करते हैं देश में बाबरी मस्जिद का ऐतिहासिक फ़ैसला उसकी मिसाल है। कुछ लोगों की राय है कि इस फैसले को करने वाले जज महोदय को फ़ैसला करने के बदले राज्यसभा की सदस्यता दी गई। क़ातिल के बदले मक़तूल को सज़ा मिलने के क़िस्से आए दिन सामने आते रहते हैं।
यह करप्शन केवल आधुनिक शिक्षा प्राप्त करने वालों में ही नहीं है बल्कि धार्मिक वर्ग में भी कई प्रकार का करप्शन है। जिसमें सबसे बड़ा करप्शन यह है कि उन्होंने धर्म की शिक्षाओं को अपने मन की इच्छा अनुसार पेश किया। ख़ुदा के नियमों को बदल डाला, जिससे इंसानी समाज में धर्मों के बीच दुश्मनी का रिश्ता बन गया। ख़ुद अपने समाज में कई प्रकार के मत तथा मसलक बन गए, आज हाल यह है कि इस्लाम जो अल्लाह का सीधा व सच्चा दीन है उसको समझना भी बहुत मुश्किल है। ग़ैरमुस्लिमों को तो छोड़िए ख़ुद मुस्लिम नौजवान मुल्लाओं के इस्लाम से पनाह मांगते हैं। इसके अलावा धार्मिक संस्थानों में आर्थिक करप्शन भी पाया जाता है।
मैं यह नहीं कहता की तमाम शिक्षित लोग करप्ट हैं, लेकिन ऊपर जो मैंने लिखा वह भी हमारे समाज का आईना है। एक अच्छी ख़ासी संख्या करप्शन में शामिल है। अगरचे जितने अच्छे लोग हैं वह भी शिक्षित ही हैं, शिक्षा का प्रचार करने वालों ने कभी सोचा ना था कि इसके इतने भयानक परिणाम निकलेंगे। पुराने ज़माने के चोर अनपढ़ थे, कूमल लगाते थे, उसके बाद बंदूक़ की नोक पर डाका डालने लगे। मगर अब शिक्षा की वजह से अकाउंट ही हैक कर लेते हैं और एक क्लिक पर लाखों की रकम अपने अकाउंट में ट्रांसफर कर लेते हैं। पासवर्ड और ईमेल आईडी हैक करके ब्लैकमेल किया जाने लगा, ऐप के द्वारा अनैतिक तस्वीरें अपलोड करके सभ्यता का जनाज़ा निकाला जाता है।
शिक्षा के हानिकारक तथा ग़लत प्रभाव देखकर सोचता हूँ कि वह ज़माना कितना अच्छा था जब हम पढ़े लिखे तो न थे लेकिन सच्चे व ईमानदार थे। बड़े-बड़े व्यापार ज़ुबान पर हो जाते थे, कोई बेईमानी ना होती थी, जब पढ़े-लिखे जज तो ना थे लेकिन गांव के पंच परमेश्वर का स्थान रखते थे और न्याय करते थे। जब गांव की बेटी सब की बेटी थी, जब होली दिवाली और ईद सब मिलकर मनाते थे, त्यौहार आने पर सब ख़ुश होते थे, जब अर्थी और जनाज़े में कोई भेद नहीं था, जब अज़ान की आवाज़ सुनकर दूसरी आवाज़ें बंद हो जाती थीं, जब मंदिर की रामलीला में अब्दुल भी राम का रोल करता था, जब गांव का छप्पर उठाने के लिए हिंदू मुसलमान एक साथ ज़ोर लगाते थे, काश वो दिन वापस हो जाते…!
शिक्षा के बारे में यह बातें लिखने का मक़सद यह नहीं है कि शिक्षा प्राप्त न की जाए, स्कूल कॉलेज स्थापित न किए जाएं, बल्कि मैं चाहता हूं कि आप शिक्षा के उद्देश्य पर भी नज़र रखें और नैतिक शिक्षा को अपनी शिक्षा प्रणाली का अनिवार्य भाग बनाएं। शिक्षित वर्ग को यह देखना चाहिए कि उसके द्वारा मानव समाज में किसी प्रकार का करप्शन और अनैतिकता तो नहीं बढ़ रही है। अक्सर उच्च शिक्षित वर्ग अनपढ़ लोगों को हीन समझता है, उनकी गंदगी से घिन खाता है लेकिन इन सभ्य लोगों को उस गंदगी पर भी नज़र डालनी चाहिए जो इनके द्वारा समाज में फैल रही है। ग़रीबों की गंदगी तो साबुन या झाड़ू से साफ़ हो जाएगी मगर सभ्य समाज की गंदगी को दूर करने के लिए क्या कोई कार्यप्रणाली है?