अटल मुरादाबादी
गर्मी से तपती धरा, जन जीवन बेहाल।
तापमान असहज हुआ, रवि की टेढी चाल।।
रवि की ढेढी चाल,करे तांडव अब दिनभर।
ज्यों-ज्यों बढता दिवस,बढ़ाते तेवर दिनकर।।
कहै अटल कविराय,दिखाओ सूरज नर्मी।
जीवन हुआ मुहाल, त्याग दो अपनी गर्मी।।
बादल को पाती लिखी,मानव ने गुम नाम।
जन-जीवन अब त्रस्त है,बरसो हे घनश्याम।।
बरसो हे घनश्याम, नहीं अब देरी करना।
जल का हुआ अभाव,बहा दो कोई झरना।।
जीव,जंतु, इंसान,हुए गर्मी से पागल।
कहते चंद्र चकोर , बरस जाओ हे बादल!
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