दिलचस्प बात यह है की आज भी मुसलमानों के पक्ष में या संरक्षण में हिन्दू ही आगे आ रहे हैं
Ali Aadil Khan
Editor’s Desk
मेरा मतलब किसी भी लोकतान्त्रिक देश में हुकूमत करने के जो तरीके और संसथान होते हैं जैसे विधानमंडल(Legislature), न्यायतंत्र (Judiciary), कार्यपालिका(Executive) और शिक्षा संस्थानों से ज़्यादा मज़बूत मुस्लमान या इस्लाम एक ऐसा एलिमेंट या संसथान बन गया है जिसके आधार पर हुकूमत करना कई पार्टियों के लिए बहुत आसान होगया है और नफ़रत का यह फार्मूला रास आगया है .
कहते हैं जब आपकी मुख़ालफ़त और आलोचना शुरू हो जाए तो समझें की अब आपका क़द बढ़ने लगा है , आपकी पहचान बन गयी है .इसी परिपेक्ष में आज सत्ता में आने के लिए जिन Issues या शब्दों का चुनावी इस्तेमाल किया जाता है वो हैं , मस्जिद , क़ब्रस्तान , मज़ार , हिजाब , हलाल , तीन तलाक़ , जिहाद , अज़ान ,चचा जान ,और भाई जान इत्यादि . और इन सबका ताल्लुक़ है मुसलमान से , इसका मतलब इस क़ौम का देश में मक़ाम बन गया है , इसी लिए तमाम मुद्दों से ज़्यादा अहम् मुद्दा अब मुसलमान होगया है .दिलचस्प बात यह है की आज भी मुसलमानों के पक्ष में या संरक्षण में हिन्दू ही आगे आ रहे हैं , जबकि सियासी पार्टियों में इस मुद्दे पर सन्नाटा है.शायद उनको ख़ामोशी ही सूट करती होगी , या आपदा में अवसर तलाशने की कोई उम्मीद भी होगी .
अब देश के सारे मुद्दे ख़त्म हो गए हैं ,क्योंकि एक मुद्दा ही सब पर भारी है . भारत प्राचीन काल से सर्व धर्म समावेश और सामंजस्य से सभी त्योहारों का मज़ा लेता आरहा था और विकास की राहों पर धीमी गति से ही सही लगातार आगे बढ़ रहा था . किन्तु विकास की गाडी में अचानक नफ़रत , विभाजन और धुर्वीकरण का टॉप गियर लगाकर भारत को जिस दिशा में ले जाया जा रहा है वो एक अँधेरी और ख़ौफ़नाक खाई की तरफ़ जाती है . जहाँ से निकलने में उतना ही वक़्त लगेगा जितना ग़ुलामी की खाई से निकलने में लगा था .
वर्तमान सत्ता काल में इतिहास को बदलने या नए सिरे से लिखे जाने की योजना में सच , त्याग , तपस्या और आध्यात्म ग़ायब है , बल्कि एक shortcut तलाशा गया है जिसको फूट डालो , नफ़रत फेलाओ और राज करो के नाम से आज आप देख ही रहे हैं ,और यही देश के दुश्मनो की योजना का हिस्सा है .Social Media और कई दुसरे राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय Platforms से देश में बढ़ते उन्माद और नफ़रत के ख़िलाफ़ उठने वाली आवाज़ों का दंगइयों और कई संवैधानिक पदों पर आसीन अधिकारीयों तथा सरकारों पर कोई फ़र्क़ नहीं पड़ रहा है .इसलिए क्योंकि यह किसी योजना का हिस्सा है , कोई अचानक होने वाले हादसे नहीं हैं .देश में बढ़ते लगातार सांप्रदायिक हादसों और नफ़रती माहौल पर खामोश सरकारों को शायद किसी ऐसे बड़े हादसे की तलाश है जिसमें कई तरह की मनमानियां की जा सकें क्योंकि आपदा और हंगामी हालात में बहुत से ऐसे फ़ैसले लिए जा सकते हैं जो नार्मल हालात में नहीं लिए जा सकते .
आप देखें स्वतंत्रता संग्राम के दिनों में आज़ादी की तारीख़ को लिखने वाले नेताओं ने सांप्रदायिक एकता , अखंडता , मानवता , भाईचारे और देशप्रेम की ज्योत को जनता के सीनो में जलाया था जिसके बाद तमाम देश वासियों ने मज़हब , जाती , क्षेत्र और रंग की दीवारों से ऊपर उठकर वतने अज़ीज़ की आज़ादी को तरजीह दी और नतीजे में भारत को साम्राजयवाद , और ज़ुल्मो जबर की अँगरेज़ सरकार से आज़ादी मिली .
आज आज़ादी के लिए तो संग्राम नहीं मगर आज़ादी को बचने और उसकी सुरक्षा के लिए ज़रूर आंदोलन और क्रांति की ज़रुरत है अब उसकी क्या कार्यशैली हो यह देश व्यापी मुद्दा है जिसपर कोई चर्चा नहीं है , बल्कि बहस बराये बहस ही चल रही है और असल मुद्दे सभी channels से ग़ायब हैं .
आज हर किसी को सस्ती शोहरत और झूठी नाकामी के लिए मुसलमान ऐसा मुद्दा मिल गया है जिसको गली गली का कुत्ता नहीं पूछता वो मुसलमान को गाली देकर या इस्लाम के बारे में बकवास बोलकर रातों रात नेता बन जा रहा है , या किसी पार्टी का कार्यकर्त्ता बन जा रहा है . तो आज सारे मुद्दों को भुलाकर मुसलमान ,अल्पसंख्यक और दलित ही एक मज़बूत विकल्प बनकर उभरा है .
जबकि देश का सेक्युलर हिन्दू और अमन पसंद शहरी , भारत में पैदा नए क़िस्म के आतंकवाद से ऊब रहा है और जल्द इस मसले का हल चाहता है वरना देश का अमनपसंद जिस रोज़ सहिष्णुता को खो देगा उसके बाद हालात को काबू करना मुश्किल होगा ,इसलिए समय रहते सरकारों को इंसाफ़ को सुनिश्चित करने और राजधर्म को निभाने का संकल्प लेना चाहिए .