2012 में अखिलेश की सरकार बनी हो या 2017 में मोदी लहर , बीएसपी की सीटों पर फर्क नहीं पड़ा.
यूपी का 2022 विधानसभा चुनाव आखिरी फेज में पहुंच गया है. आज सातवें चरण के लिए वोट डाले जा रहे हैं . 9 जिलों की 54 सीटों पर 613 उम्मीदवार हैं. इस फेज की सबसे दिलचस्प बात यह है कि पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी और अखिलेश यादव के आजमगढ़ में मतदान होना है.मऊ सदर से सुहेलदेव पार्टी के टिकट पर मुख्तार अंसारी के बेटे अब्बास चुनाव लड़ रहे हैं. पिछले दो विधानसभा चुनावों के नतीजों से समझते हैं कि इन 54 सीटों पर कौन किस पर भारी रहा था ?
आज 7 मार्च को आजमगढ़, मऊ, जौनपुर, गाजीपुर, चंदौली, वाराणसी, मिर्जापुर, भदोही और सोनभद्र में मतदान चल रहा है. मोदी का गढ़ वाराणसी तो अखिलेश का आजमगढ़ दिलचस्पी का मरकज़ बना हुआ है .
अब हम 10साल पीछे चलकर 2012 और 2017 के नतीजे देखते हैं . 2012 में अखिलेश की सरकार बनी थी. तब उन्हें आजमगढ़ की 10 में से 9 सीट मिली थीं जबकि वाराणसी की सिर्फ 1 सीट पर ही उनकी पार्टी विजयी हुई थी . 2017 में मोदी लहर में भी अखिलेश यादव ने आजमगढ़ की 5 सीटों पर कब्जा किया था जबकि वाराणसी से इस बार एक भी सीट नहीं जीत सके थे .
साल 2012 में अखिलेश की सरकार बनी, लेकिन उस माहौल में भी बीजेपी ने वाराणसी की 3 सीटों पर कब्जा किया करलिया था . लेकिन आजमगढ़ की एक भी सीट नहीं जीत सकी थी . 2017 में मोदी लहर में बीजेपी ने वाराणसी की 6 सीटों पर कब्जा किया था और आजमगढ़ की फूलपुर विधानसभा सीट जीत ली थी.
आज जिन 54 सीटों पर मतदान हो रहा है, उन पर एक दिलचस्प आंकड़ा ये भी है कि 2012 में अखिलेश की सरकार बनी और 2017 में मोदी लहर थी, लेकिन दोनों बार बीएसपी की सीटों पर बहुत ज्यादा फर्क नहीं पड़ा. 2012 में बीएसपी ने 54 में से 7 और 2017 में 6 सीटों पर कब्जा किया.
अखिलेश की साल 2012 में जब सरकार बनी , तब मायावती ने वाराणसी से 2, सोनभद्र, मिर्जापुर, मऊ, चंदौली और आजमगढ़ के मुबारकपुर से एक-एक सीट अपने खाते में कर ली थी . 2017 में आजमगढ़ से 4, मऊ और जौनपुर से एक-एक सीट.यहाँ एक बात क़ाबिल ए गौर है कि 2017 में बीएसपी को मोदी लहर का फायदा मिला और अखिलेश के गढ़ आजमगढ़ से 4 सीटों पर जीत दर्ज की.
जबकि बज ने 2017 में 54 में से 29 सीटों पर कब्जा किया था , जिसमें 13 सीटें ऐसी थी, जिनपर 0.30% से लेकर 10% वोटों के मार्जिन से जीत हुई. BJP को मिली सभी 29 सीटों की बात करें तो सबसे बड़ी जीत मिर्जापुर के चुनार से 62 हजार वोटों से हुई थी .
देखना यह है कि इस बार अपना दल और सुहेलदेव पार्टी का किरदार क्या रहेगा , आपको बता दें कि बीजेपी से गठबंधन करने वाला अपना दल और एसपी के साथ चुनाव लड़ने वाली सुहेलदेव पार्टी का सातवें चरण की 54 में से कई सीटों पर प्रभाव है. ध्यान रहे 2012 में अपना दल की अनुप्रिया पटेल ने वाराणसी से जीत दर्ज की थी. 5 साल बाद साल 2017 में जौनपुर, वाराणसी, मिर्जापुर और सोनभद्र से एक-एक सीट मिलाकर 4 सीटें जीत ली. वहीं सुहेलदेव ने गाजीपुर से 2 और मोदी के गढ़ वाराणसी से 1 सीट पर जीत दर्ज की थी .
यहाँ एक और ख़ास बात यह है कि इन 54 सीटों पर मुस्लिम आबादी अन्य जिलों की तुलना में कम है
सातवें चरण में 9 जिलों में मऊ सबसे ज्यादा 20% मुस्लिम आबादी वाला इलाक़ा है जबकि आजमगढ़ में 16% और वाराणसी में 15% मुस्लिम आबादी है.
दूसरी दिलचस्प बात यह है कि 2017 में मऊ की 3 सीटों पर बीजेपी काबिज हुई थी . इन तीन में से एक दारा सिंह ने जीती थी जो अब समाजवादी पार्टी के साथ हैं ,,जबकि एक सीट पर 3% वोट मार्जिन से बीएसपी से मुख्तार अंसारी जीते थे.वहीँ 2012 विधान सभा में मऊ की 4 में से घोसी और मोहम्मदाबाद सीट पर एसपी ने कब्जा किया. मधुबन सीट पर बीएसपी और मऊ सदर से कौमी एकता दल के प्रत्याशी बने मुख्तार अंसारी जीते थे .
मायावती की BSP उत्तर प्रदेश के आखिरी चरण में दे सकती है कड़ा मुक़ाबला
उत्तर प्रदेश के आखिरी दो चरणों में मायावती चुनावी जंग में दिखाई दे रही हैं ,इसकी एक बड़ी वजह पूर्वी उत्तर प्रदेश के कई ज़िलों में एससी वोटर की संख्या ज्यादा होना है . सातवें फेज में जिन 9 जिलों में आज चुनाव हो रहे हैं उसमें सोनभद्र, मिर्जापुर, आजमगढ़, चंदौली और मऊ ज़िले हैं जहां अनुसूचित जाति का वोटर लगभग 29% है और यही वोट BSP का सुरक्षित वोट कहलाता है .इस लिए आज आखरी चरण में बसपा अपनी विपक्षी पार्टियों को कड़ा मुक़ाबला दे सकती है .
सोनभद्र ज़िले में सबसे ज्यादा 41% अनुसूचित जाति का वोट होने के बावजूद 2012 में एसपी ने 2, बीएसपी ने सिर्फ 1 और एक निर्दलीय उम्मीदवार ने जीत दर्ज की थी . हालांकि सभी जीतने वाले उम्मीदवार अनुसूचित जाति से ही थे.वहीँ साल 2017 में सोनभद्र से बीएसपी और एसपी का सूपड़ा साफ हो गया. 3 सीटों पर बीजेपी और एक पर अपना दल ने कब्जा किया था . हालांकि इस बार समीकरण कुछ बदले हुए हैं.
योगी सरकार में मंत्री रहे दारा सिंह चौहान एसपी के साथ है. उनके अलावा सुहेलदेव पार्टी से ओपी राजभर, धनंजय सिंह, दुर्गा प्रसाद यादव, मुख्तार अंसारी के बेटे अब्बास अंसारी जैसे कई बड़े नाम मैदान में हैं. ऐसे में देखना होगा कि आखिरी चरण के चुनाव में ये दिग्गज अपनी पार्टी के लिए कितनी सीटों की बढ़त दिला पाते हैं .
उत्तर प्रदेश विधान सभा 2022 के नतीजे जो भी हों किन्तु इतना तय: है कि बीजेपी के लिए सरकार बनाना काफी टेढ़ी खीर होगी , और इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि बीजेपी को लखनऊ विधान सभा में विपक्ष की भूमिका में बैठना हो , और 2017 के मुक़ाबले इस बार सीटों में भारी कमी का भी पूरी संभावनाएं हैं .