ग़ज़ल
रस-व्यंग
चल रहा है आज देखो खून का ये सिलसिला
दे रहे हैं घाव खुद ही और करते हैं गिला।।
बो रहे हैं बीज नफरत के दिलों में बेबजह
बात में हर देखते हैं कब किसे अब क्या मिला।।
भूख कुछ सम्मान पाने की लगी है इस तरह
बेचकर ईमान अपना हंस रहे हैं खिलखिला।।
फाड़ते गज भर मगर पास है ना इंच भी
गिड़गिड़ाते मान खातिर भाई उनको दो दिला।।
कर्मयोगी सत्य पथ पर चल रहे हैं आज तक,
भ्रष्टता का घोर तांडव आज तक भी ना हिला।।
लाइनों में अब अटल भी है लगा खुद इस तरह,
किस्मतों का फूल लेकिन आज तक भी ना खिला।।
अटल मुरादाबादी
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