
एक बार फिर से देश में केंद्र की सत्ता के खिलाफ तीसरा मोर्चा खड़ा करने की कवायद शुरू हो गई है फिलहाल संभावनाएं तलाशी जा रही है ?
इस बार तीसरे मोर्चे की कवायद कुछ खास है, खास इसलिए है क्योंकि देश में तीसरा मोर्चा खड़ा करने के लिए जो शख्स लगे हैं उनका भारतीय राजनीति में रणनीतिक तौर पर महत्व है . एक चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर हैं जो युवा हैं .
कहा जाता है कि 2014 के आम चुनाव में भाजपा के लिए चुनावी रणनीति प्रशांत किशोर ने ही बनाई थी जिसमें भाजपा सफल हुई ! इसके बाद प्रशांत किशोर ने अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग पार्टियों के लिए चुनावी रणनीति बनाई जिसमें सफलता और असफलता हाथ लगी .
हाल ही में संपन्न हुई पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में प्रशांत किशोर ने तृणमूल कांग्रेस के लिए चुनावी रणनीति बनाई जिसमें तृणमूल कांग्रेस सफल हुई . पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस की सफलता के बाद देश में एक बार फिर से तीसरा मोर्चा खड़ा करने की कवायद शुरू हुई है .दूसरे प्रमुख रणनीतिकार देश के कद्दावर नेता शरद पवार हैं .
एक आधुनिक भारत की चुनावी रणनीति के युवा रणनीतिकार प्रशांत किशोर है तो दूसरे 19वीं सदी के उम्र दराज कद्दावर नेता शरद पवार हैं . 19वीं सदी और बीसवीं सदी के दोनों रणनीतिकार एक साथ मिलकर 2024 के आम चुनाव में प्रचंड बहुमत वाली भाजपा सरकार को तीसरा मोर्चा खड़ा कर मात दे देंगे ?
यह दोनों ही रणनीतिकारों के लिए एक बड़ी चुनौती है ! चुनौती इसलिए है क्योंकि दोनों ही रणनीतिकारों ने समय-समय पर अपनी अपनी रणनीतियों का लोहा मनवाया है . 2014 से पहले शरद पवार ने और 2014 मैं प्रशांत किशोर ने अपनी रणनीति का लोहा मनवाया है .दोनों के लिए चुनौती इसलिए खास है क्योंकि इस समय भाजपा इसलिए मजबूत है क्योंकि आज भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का देश में जलवा बरकरार है.
यदि 2014 की बात करें तो प्रशांत किशोर की रणनीति इसलिए सफल हुई क्योंकि कि एक दशक से केंद्र की सत्ता पर का बीज कांग्रेस के खिलाफ देश में माहौल था वही अन्ना हजारे का आंदोलन शबाब पर था .
मौजूदा वक्त में यह सब नहीं है भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ मजबूत कारण अभी दिखाई नहीं दे रहा है और ना ही सरकार के खिलाफ कोई बड़ा आंदोलन चल रहा है .इस समय विपक्ष भी बटा हुआ है.फिर देश के भीतर एनडीए और यूपी ए दो मोर्चे पहले से ही वजूद में हैं . और दोनों के पास अपने अपने क्षेत्रीय दल मौजूद है.
सवाल खड़ा होता है कि क्या एनडीए और यूपीए से पार्टियों को तोड़कर तीसरा मोर्चा खड़ा किया जाएगा ? यह ही दोनों रणनीतिकारों के सामने सबसे बड़ी चुनौती है ! क्या नीतीश कुमार एनडीए से निकलकर तीसरा मोर्चा में शामिल होंगे? क्या तेजस्वी यादव यूपीए से निकलकर तीसरा मोर्चा में शामिल होंगे ?और क्या नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव दोनों तीसरा मोर्चा में शामिल होंगे, ?ऐसे ही बड़े-बड़े सवाल हैं जिनका जवाब इन 3 सालों में ढूंढना होगा क्योंकि अभी आम चुनाव होने में 3 साल का वक्त बाकी है.
तीसरा मोर्चा खड़ा करने की संभावना से एक और बड़ा सवाल निकलकर सामने आ रहा है की क्या शरद पवार तीसरा मोर्चा खड़ा कर अपने लिए प्रधानमंत्री की कुर्सी के लिए अंतिम दाव खेल रहे हैं ? क्योंकि अभी तक तीसरे मोर्चे को लेकर जो कवायद चल रही है उसमें कांग्रेस की मौजूदगी दिखाई नहीं दे रही है और ना ही कांग्रेस को लेकर तीसरे मोर्चे में चर्चा हो रही है .
यदि तीसरे मोर्चे से कांग्रेस को अलग भी रखें तो भी, मोर्चे में संभावित प्रधानमंत्री के दावेदार शरद पवार के अतिरिक्त ममता बनर्जी अरविंद केजरीवाल मायावती मुलायम सिंह यादव और यदि नीतीश कुमार तीसरा मोर्चे में शामिल होते हैं तो एक नाम नीतीश कुमार का भी, यह सब नाम तो हिंदी भाषी क्षेत्र से हैं दक्षिण में चंद्रबाबू नायडू पटनायक देवेगौड़ा जैसे नाम भी सामने आ सकते हैं ! ऐसे में क्या शरद पवार कांग्रेस की गैरमौजूदगी के बाद अपने अंतिम दाव में सफल हो जाएंगे .
सवाल तो यह भी है क्या तीसरा मोर्चा बनेगा और तीसरा मोर्चा सरकार बनाने में सफल होगा ? हालांकि इससे पहले भी मोर्चे बने और मोर्चा की सरकार भी बनी लेकिन सरकार अधिक दिन तक नहीं चल पाई . प्रधानमंत्री देवेगौड़ा वीपी सिंह आई के गुजराल जैसे नेता भी बने, यह सभी नेता आंदोलनों से उत्पन्न मोर्चा खड़ा होने के बाद प्रधानमंत्री बने थे . फिलहाल देश में ऐसा कुछ भी नजर नहीं आ रहा है जिससे लगे कि सत्तारूढ़ भाजपा की सरकार इतनी आसानी से 2024 मैं चली जाएगी और वह भी कांग्रेस के बगैर .
यदि लोकसभा में सीटों के जीतने पर नेता चुनने की बात करें तो इसमें सुश्री ममता बनर्जी सबसे आगे दिखाई देंगी .कुल मिलाकर अभी यह संभावना मातृ है कि 2024 के लिए भाजपा को हराने के लिए तीसरा मोर्चा बनेगा ?