[t4b-ticker]
[]
Home » Editorial & Articles » गंगू मेहतर से गंगूदीन तक का दिलचस्प इतिहास
गंगू मेहतर से गंगूदीन तक का दिलचस्प इतिहास

गंगू मेहतर से गंगूदीन तक का दिलचस्प इतिहास

प्रशांत सी बाजपेयी

इतिहास के पन्नों में गुम,1857 की क्रांति का एक गुमनाम नायक ,
गंगू बाबा उर्फ़ गंगू मेहतर जी

गंगू बाबा उर्फ़ गंगू मेहतर जी

“सभी का ख़ून है शामिल यहाँ की मिट्टी में
किसी के बाप का हिन्दोस्तान थोड़ी है “


मशहूर शायर राहत इन्दौरी की यह पंक्ति बहुत कुछ बयां करती है।जब देश ने स्वतंत्रता आंदोलन की लड़ाई लड़ी तो उसमें हर धर्म, हर जाति के लोगों ने बराबर का योगदान दिया था। लेकिन अगर हम इतिहास उठाकर देखें तो पाएँगे कि अंग्रेजों के ख़िलाफ़ लड़ने वाले कई वीर शहीदों को उनकी जाति या धर्म के कारण उपयुक्त सम्मान और स्थान नहीं मिला। ऐसे ही वीर शहीदों में से एक हैं – गंगू बाबा उर्फ़ गंगू मेहतर जी।


बिठूर शासक नाना साहब पेशवा के यहाँ नगाड़ा बजाने वाले गंगू बाबा को कई नामों से पुकारा गया। वो वाल्मीकि जाति (अनुसूचित जाति) से थे, इसलिए शुरू में उन्हें ‘गंगू मेहतर’ के नाम से बुलाया गया, फिर पहलवानी का शौक़ होने के कारण ‘गंगू पहलवान’ और कुश्ती के दांव – पेंच एक मुस्लिम उस्ताद से सीखने के कारण ‘गंगूदीन’ का नाम मिला।

आज श्रद्धा से ‘गंगू बाबा‘ के नाम से याद किये जाते हैं। गंगू मेहतर से गंगू बाबा तक की ये जीवन यात्रा आसान नहीं थी। लेकिन गंगू बाबा संघर्ष की आग में तपकर कुंदन बने और आज भी लाखों लोगों के प्रेरणा स्रोत हैं।

READ ALSO  A SYSTEMATIC STUDY OF THE HOLY QUR’ĀN

गंगू बाबा के पुरखे कानपुर जिले के अकबरपुरा के रहने वाले थे लेकिन उच्चवर्णों की बेगार, शोषण और अमानवीय व्यवहार से दुखी होकर कानपुर शहर के चुन्नी गंज इलाके में रहने लगे थे। सती चोरी गाँव में इनका पहलवानी का अखाड़ा था।

गंगू बाबा नगाड़ा बजने के आलावा नाना साहब पेशवा की सेना को पहलवानी के गुर भी सिखाते थे और जब 1857 में सिपाही विद्रोह शुरू हुआ और नाना साहब ने अंग्रेज़ों के विरुद्ध युद्ध लड़ाई लड़ने का फ़ैसला किया,तो गंगू पहलवान ने नगाड़ा बजाने का छोड़कर सेना में शामिल हो गए और सूबेदार का पद हासिल किया।

गंगू पहलवान को नाना साहब का विश्वास हासिल था। इसलिए नाना साहब की गिरफ्तारी के बाद भी अंग्रेजों के विरुद्ध युद्ध जारी रहा। गंगू पहलवान ने अपने साथियों की मदद से 200 से ज़्यादा अंग्रेजों को मौत के घाट उतार दिया।

इस कत्ल-ए-आम से अंग्रेज़ी सरकार सहम सी गई थी। इसलिए जब वो पकड़े गये तो अंग्रेजों ने उन्हें घोड़े में बांध कर पूरे कानपुर शहर में घुमाया। और फिर हाथों में हथकड़ियाँ व पैरों में बेड़ियाँ पहनाकर काल कोठरी में डाल दिया और फिर उनपर तरह – तरह के ज़ुल्म किये।

READ ALSO  ....और मेडल राहुल गांधी के लिए?


इसके बाद गंगू बाबा पर महिलाओं और बच्चों के कत्ल का झूठा मुक़दमा चलाया गया और मुकदमे के नाटक के बाद फांसी की सज़ा सुनाई गयी। आठ सितम्बर, 1859 को आज ही के दिन कानपुर के चुन्नी गंज चौराहे पर उन्हें फाँसी दी गयी थी।लेकिन दुर्भाग्यवश भारत के स्वाधीनता संग्राम के इतिहास में इनका नामो निशान नहीं है।

शायद जातिवाद के कारण ये नाम इतिहास के पन्नों में कहीं खो गया था। लेकिन शहीदों की चिताओं पर तो हर बरस मेला लगता है इसलिए गंगू बाबा आज भी लोगों की यादों में हैं। उन्हें आज भी एक ऐसे वीर के रूप में याद किया जाता है जिन्होंने अंतिम साँस तक अंग्रेजों को ललकारा “ भारत की माटी में हमारे पूर्वजों का खून व क़ुर्बानी की गंध है, एक दिन यह मुल्क आज़ाद हो कर रहेगा”।


कानपुर के चुन्नी गंज में इनकी प्रतिमा लगाई गई है।स्वतंत्रता आंदोलन यादगार समिति अमर शहीद क्रांतिकारी बाबा गंगू मेहतर को उनकी 161 वीं पुण्यतिथि पर सादर नमन करती है।

लेखक शिक्षाविद , समाज सेवी , स्वतंत्रता सेनानी के सुपुत्र तथा स्वतंत्रता आंदोलन यादगार समिति के चेयरमैन हैं

You may contact at: www.quora.com
facebook.com,
shivira.com
www.heritagetimes.in
facebook.com

Please follow and like us:

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

*

nineteen − eleven =

You may use these HTML tags and attributes: <a href="" title=""> <abbr title=""> <acronym title=""> <b> <blockquote cite=""> <cite> <code> <del datetime=""> <em> <i> <q cite=""> <s> <strike> <strong>

Scroll To Top
error

Enjoy our portal? Please spread the word :)