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औरंगज़ेब और कैलाश मानसरोवर का क्या है रिश्ता ?
हर प्रकार की स्तुति (महिमागान ) का केवल रब ही अधिकारी (मालिक) है , और धरती व् आकाश और समुन्द्रों और फ़िज़ाओं में हर चीज़ के सतगुण (भलाई) केवल परमेश्वर (रब ) ही बता सकता है . और वही हर शै का तनहा मालिक है .अब चाहे वो आदम हों , शिव हों ,नूह हों या महेश .यदि कोई शक्ति किसी महा शक्ति पर निर्भर है तो वो परमपूजनीय (माबूद ) नहीं बल्कि आदरणीय (मोहतरम ) है . अब आते हैं असल मज़मून पर .
मानसरोवर के पास स्थित कैलाश पर्वत पर भगवान शिव साक्षात विराजमान हैं। यह हिन्दुओं का प्रमुख तीर्थ स्थल है ,जिसे शिव का धाम माना जाता है। शिव जी के वास स्थान कैलाश मानसरोवर को छठे मुग़ल बादशाह औरंगज़ेब रहमतुल्लाह अलैह ने चीन पर सर्जिकल स्ट्राइक करके भारत के हिन्दुओं को एक अज़ीम और यादगार तोहफा दिया था ,जिसको तारीख के पन्नो में धुंदला करने की पूरी कोशिश की गयी ,लेकिन अंधेरोऔर झूट के बादल को उड़ाने के लिए सच और वास्तविकता की हवा का एक झोंका काफी होता है . दरअसल उस वक्त कुमाऊं (उत्तराखंड) में चांद वंश के राजा बाज बहादुरचन्द का शासन (1638-1678) था. बाज बहादुर के पांचवें मुग़ल बादशाह शाहजहां और उसके बाद औरंगजेब से काफी अच्छे संबंध थे.
बाज बहादुर को उसकी वफादारी और बहादुरी के कारण औरंगज़ेब की शाही सेना का भरपूर समर्थन हासिल था. शाहजहां और औरंगज़ेब के दौर के शाही दस्तावेजों में बाज बहादुर को जमींदार बताया गया है ,जब औरंगज़ेब हिंदुस्तान के बादशाह बने तो बाज बहादुर ने नए बादशाह का विश्वास जीतने के लिए औरंगजेब के दरबार में हाजिरी का सिलसिला शुरू किया , औरंगज़ेब बाज़ बहादुर के आचरण , बहादुरी और वफादारी से काफी प्रभावित थे .
तो ऐसे में यह तर्क सत्य पर आधारित नहीं है कि कैलाश मान सरोवर औरंगज़ेब ने नहीं बल्कि बाज बहुदूरचंद्र ने जीतकर हिंदुओं के हवाले किया था , हाँ यह सही है कि बाज ने औरंगज़ेब की शाही फ़ौज के संरक्षण में चीन पर आक्रमण किया था .लेकिन यह सब शहंशाह औरंगज़ेब की आज्ञा और सहयोग के बिना संभव नहीं था * अब देखें इसका तारीखी सच
पहले बादशाह शाहजहां ने 1654-55 में मुगल सेना को जनरल खलीलउल्लाह की अगुआई में गढ़वाल साम्राज्य पर चढ़ाई करने के लिए भेजा था . और तभी बाज बहादुर की फ़ौज भी शाही सेना में मिल गयी थी . शाही सेना ने आगे बढ़ते हुए देहरा दून समेत पूरे तराई इलाके पर कब्जा करने के बाद इस साम्राज्य को बाज बहादुर के हवाले कर दिया था .
इस जीत से बाज बहादुर का साम्राज्य करनाली नदी जो अब (घाघरा नदी) है , तक फैल गया. युद्ध में बाज बहादुरचंद्र की वफादारी , जंगी कुशलता और निडरता को देखते हुए बादशाह शाहजहां ने बाजचन्द्र को बहादुर की उपाधि दी थी . साथ में उन्हें शाही ड्रम (नगाड़ा) दिया गया, जो आदर और सम्मान का प्रतीक होता था . बाज बहादुर की ताकत यकायक काफी बढ़ गई .और उसको कुमाऊं का राजा बना दिया गया ,चरवाहे से राजा बनने वाला कूर्मांचल में अकेला राजा बाज बहादुरचन्द रहा .
उपरोक्त सभी तथ्यों की पुष्टि प्रसिद्द राइटर एवं इतिहासकार O C HANDA की पुस्तक History Of Utranchal और मन मोहन शर्मा की Trategy Of Tibbat से की जा सकती है .
कैलाश मानसरोवर को औरंगज़ेब ने कैसे और क्यों छीना चीनी साम्राज्य से
चीन के क़ब्ज़े वाले तिब्बत में हिन्दुओं के पवित्र तीर्थस्थल कैलाश मानसरोवर को भारत में लेने या हिन्दुओं के इस प्रसिद्द तीर्थस्थल को हिन्दुओं के लिए चीन से आज़ाद कराने की हिम्मत कोई न तो हिन्दू राजा कर पाया और न ही किसी मुग़ल बादशाह का ध्यान इस ओर केंद्रित कराया गया , Akbar The Great जैसे महान बादशाह जो हिन्दुओं के हितेषी कहलाते हैं , कैलाश मानसरोवर जैसी पवित्र जगह को चीन से आज़ाद कराने का साहस नहीं जुटा सके थे .ज़ाहिर है उसके लिए बाज बहादुर जैसे निष्ठावान (वफ़ादार) हिन्दू राजा की भी ज़रूरत थी .
अब सवाल यह पैदा होता है कि औरंगज़ेब जैसे तौहीद और इस्लाम परस्त बादशाह ने किसी सनम कदे की बाज़याबी के लिए क्यों चीन पर सर्जिकल स्ट्राइक की थी , तो यहाँ यह समझना दिलचस्प होगा कि औरंगज़ेब आलमगीर रहमतुल्लाह अलैह एक इन्साफ परस्त बादशाह के भेस में फ़क़ीर थे ,इसी खूबी के चलते उन्होंने अपने भाई को भी नहीं बख्शा था ,उनकी नज़र में चीन ज़ालिम और ग़ासिब था और भारत के हिन्दू मज़लूम थे , चुनाचे औरंगज़ेब आलमगीर ने मज़लूम का साथ देने के लिए चीन पर सर्जिकल स्ट्राइक कर दिया और मज़लूम हिन्दुओं की आस्था का पूरा आदर करते हुए कैलाश मानसरोवर हिंदुओं के हवाले कर दिया .
यहाँ औरंगज़ेब से सम्बंधित कुछ हैरत अंगेज़ और महत्वपूर्ण तथ्य रखना भी ज़रूरी है , आम तौर पर मुग़ल बादशाह औरंगज़ेब को ज़ालिम और हिन्दुओं का मुखालिफ बताना एक साज़िश के तहत है , उसकी वजह यह है की उनके शासन काल में अँगरेज़ साम्राजयवाद की हिन्दुस्तान की तरफ निगाह उठाकर भी देखने की हिम्मत न हो सकी थी , जबकि पूरी दुनिया में अँगरेज़ साम्राजयवाद का झंडा लहरा रहा था .तभी उसने अपनी इस नाकामी का रुख मोड़ने के लिए कुछ चाटुकार इतिहासकारों को तैयार किया और उनको हिन्दू मुखालिफ बादशाह की तरह पेश कराया गया ताकि उनके खिलाफ बग़ावत हो और उस फूट का लाभ यह ज़ालिम अँगरेज़ उठा सके .
औरंगज़ेब के बारे में दिलचस्प सत्य देखें जो एक सच्चे हिन्दू इतिहासकार बी एन पांडेय द्वारा लिखे गए हैं .
इतिहासकार बी एन पांडेय कहते हैं “जब में इलाहाबाद नगरपालिका का चेयरमैन था (1948 ई. से 1953 ई. तक) तो मेरे सामने दाखिल-खारिज का एक मामला लाया गया। यह मामला सोमेश्वर नाथ महादेव मन्दिर से संबंधित जायदाद के बारे में था। मन्दिर के महंत की मृत्यु के बाद उस जायदाद के दो दावेदार खड़े हो गए थे।
एक दावेदार ने कुछ दस्तावेज़ दाखिल किये जो उसके खानदान में बहुत दिनों से चले आ रहे थे। इन दस्तावेज़ों में शहंशाह औरंगज़ेब के फ़रमान भी थे। औरंगज़ेब ने इस मन्दिर को जागीर और नक़द अनुदान दिया था। मैंने सोचा कि ये फ़रमान जाली होंगे। मुझे आश्चर्य हुआ कि यह कैसे हो सकता है कि औरंगज़ेब जो मन्दिरों को तोडने के लिए प्रसिद्ध है, वह मंदिरों को पूजा और भोग के लिए जागीरें दे रहे हैं ?
आखि़र औरंगज़ेब मंदिरों और बुतपरस्ती के साथ अपने को कैसे शरीक कर सकता था। मुझे यक़ीन था कि ये दस्तावेज़ जाली हैं, परन्तु कोई निर्णय लेने से पहले मैंने डा. सर तेज बहादुर सप्रु से राय लेना उचित समझा। वे अरबी और फ़ारसी के अच्छे जानकार थे। मैंने दस्तावेज़ उनके सामने पेश करके उनकी राय मालूम की तो उन्होंने दस्तावेज़ों का अध्ययन करने के बाद कहा कि औरंगजे़ब के ये फ़रमान असली और वास्तविक हैं।
इसके बाद उन्होंने अपने मुन्शी से बनारस के जंगमबाडी शिव मन्दिर की फ़ाइल लाने को कहा। यह मुक़दमा इलाहाबाद हाईकोर्ट में 15 साल से विचाराधीन था। जंगमबाड़ी मन्दिर के महंत के पास भी औरंगज़ेब के कई फ़रमान थे, जिनमें मंदिरों को जागीर दी गई थी।
इन दस्तावेज़ों ने औरंगज़ेब की एक नई तस्वीर मेरे सामने पेश की, उससे मैं आश्चर्य में पड़ गया। डाक्टर सप्रू (सर तेज बहादुर सप्रू (8 दिसम्बर 1875 – 20 जनवरी 1949) प्रसिद्ध वकील, राजनेता और समाज सुधारक थे। उन्होंने गोपाल कृष्ण गोखले की उदारवादी नीतियों को आगे बढ़ाया और आजाद हिन्द फौज के सेनानियों का मुकदमा लड़ने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई) की सलाह पर मैंने भारत के विभिन्न प्रमुख मन्दिरों के महंतो के पास पत्र भेजकर उनसे निवेदन किया कि यदि उनके पास औरंगज़ेब के कुछ फ़रमान हों जिनमें उनके मन्दिरों को जागीरें दीये जाने का ज़िक्र हो तो वे कृपा करके उनकी कार्बन या फोटो कॉपियां मेरे पास भेज दें।
अब मेरे सामने एक और आश्चर्य की बात आई। उज्जैन के महाकालेश्वर मन्दिर, चित्रकूट के बालाजी मन्दिर, गौहाटी के उमानन्द मन्दिर, शत्रुन्जाई के जैन मन्दिर और उत्तर भारत में फैले हुए अन्य प्रमुख मन्दिरों एवं गुरूद्वारों से सम्बन्धित जागीरों के लिए औरंगज़ेब के फरमानों की नक़लें मुझे प्राप्त हुई। यह फ़रमान 1065 हिजरी से 1091 हिजरी , अर्थात 1659 से 1685 ई. के बीच जारी किए गए थे। हालांकि हिन्दुओं और उनके मन्दिरों के प्रति औरंगज़ेब के उदार रवैये की ये कुछ मिसालें हैं, फिर भी इनसे यह प्रमाण्ति हो जाता है कि इतिहासकारों ने उसके सम्बन्ध में जो कुछ नकारात्मक लिखा है, वह पक्षपात पर आधारित है और इससे उसकी तस्वीर का एक ही रूख सामने लाया गया है।
भारत एक विशाल देश है, जिसमें हज़ारों मन्दिर चारों ओर फैले हुए हैं। यदि सही ढ़ंग से खोजबीन की जाए तो मुझे विश्वास है कि और बहुत-से ऐसे उदाहरण मिल जाऐंगे जिनसे औरंगज़ेब का गै़र-मुस्लिमों के प्रति उदार (नरम / बेग़र्ज़ ) व्यवहार का पता चलेगा। औरंगज़ेब के फरमानों की जांच-पड़ताल के सिलसिले में मेरा सम्पर्क श्री ज्ञानचंद और पटना म्यूजियम के भूतपूर्व क्यूरेटर डा. पी एल. गुप्ता से हुआ। ये महानुभाव भी औरंगज़ेब के विषय में ऐतिहासिक दृस्टि से अति महत्वपूर्ण रिसर्च कर रहे थे। मुझे खुशी हुई कि कुछ अन्य अनुसन्धानकर्ता (Research scholar ) भी सच्चाई और वास्तविकता को तलाश करने में व्यस्त हैं और औरंगज़ेब की निष्पक्ष , न्यायपूर्ण एवं उदारवादी तस्वीर को साफ़ करने में अपना योगदान दे रहे हैं।
आपकी जानकारी के लिए यह भी बता दें कि “”अमीर का बहुवचन होता है उमरा। इन्हें मनसबदार और जागीरदार भी कहा जाता था। अकबर के समय हिन्दू अमीर-उमरा की संख्या करीब 22.5 प्रतिशत थी। शाहजहां के समय 21.6 प्रतिशत रही मगर औरंगज़ेब के 1679 से 1707 के बीच हिन्दू अमीरों की संख्या 50 फ़ीसदी हो गई। इसमें मराठाओं की संख्या सबसे अधिक थी। अकबर के समय राजपूत होते थे मगर औरंगज़ेब का दौर आते आते मराठा संख्या में अधिक हो गए। यह भी सच है कि छत्रपति शिवाजी अंत अंत तक औरंगज़ेब के लिए चुनौती बने रहे।उसकी वजह भी आपको बताएँगे .
राजा रघुनाथ औरंगज़ेब के दीवान यानी वित्त मंत्री थे। अकबर के टोडरमल की तरह राजा रघुनाथ की भी काफी प्रतिष्ठा थी। राजा का ख़िताब औरंगज़ेब ने ही दिया था। पांच साल तक ही ज़िंदा रहे मगर औरंगज़ेब उन्हें अपनी ज़िंदगी के आख़िरी दिनों में भी याद करते रहे । ईश्वदरदास, हिन्दू ज्योतिष के बग़ैर वह कोई भी महत्वपूर्ण काम नहीं करते थे ! वैसे मुग़ल बादशाह ज्योतिषों पर बहुत निर्भर रहते थे।लेकिन इनका विश्वास इन सबसे अलग था “”
Refference : https://naisadak.org/aurangzeb-by-audrey-truschke/
औरंगज़ेब, जिसे पक्षपाती और अँगरेज़ ग़ुलाम तथा चाटुकार ,लालची इतिहासकारों ने भारत में मुस्लिम हकूमत का प्रतीक मान रखा है। उनके बारें में वे क्या विचार रखते हैं इसके विषय में ‘शिबली’ जैसे इतिहास गवेषी कवि को कहना पड़ाः
औरंगज़ेब से सम्बंधित कुछ और रहस्य जान्ने के लिए इन Links पर click करें
https://janjwar.com/post/truth-of-mughal-emperor-aurangzeb-former-governor-bn-pandey-book-9033
https://newsmail.in/index.php/aurangzeb-was-never-antihindu-research-based-book
एक और सत्य भी देखें : किंग्स कॉलेज, लंदन की इतिहासकार कैथरीन बटलर कहती हैं कि औरंगजेब ने जितने मंदिर तोड़े, उससे ज्यादा बनवाए थे. कैथरीन फ्रैंक, एम अतहर अली और जलालुद्दीन जैसे विद्वान इस तरफ भी इशारा करते हैं कि औरंगजेब ने कई हिंदू मंदिरों को अनुदान दिया था जिनमें बनारस का जंगम बाड़ी मठ, चित्रकूट का बालाजी मंदिर, इलाहाबाद का सोमेश्वर नाथ महादेव मंदिर और गुवाहाटी का उमानंद मंदिर सबसे जाने-पहचाने नाम हैं.
चीन पर सर्जिकल स्ट्राइक का सच
दरअसल कुमाऊं के राजा बाज बहादुरचंद के आग्रह पर औरंगज़ेब ने चीन पर सर्जिकल स्ट्राइक कर हिन्दुओं का पवित्र तीर्थस्थल कैलाश मानसरोवर अपने क़ब्ज़े में कर भारत के हिन्दुओं के सुपुर्द कर दिया था , औरंगज़ेब ने पहले चीन के महाराजा को खत लिखकर हिन्दुओं के इस तीर्थस्थल को इनके हवाले करने को लिखा , लेकिन चीन के शासक ने औरंगज़ेब के खत का कोई जवाब न दिया , चीन उस वक़्त काफी ताक़तवर हो चूका था और चीन में रहनेवाले मंगोलों ने भी इच्छा या अनिच्छा से मंचूओं के शासन को स्वीकार कर लिया।
मंचूओं ने चीन की दक्षिणी दीवार तक अपनी राज्य-सीमा बढ़ाने का प्रयास किया। इसी समय जब चीन में मिंग के विरुद्ध असन्तोष की भावना का जन्म हुआ तब मौका पाकर मंचूओ ने पेकिंग पर अपना अधिकार कर लिया और तभी से वे चीन में शासन करने लगे। काँगहसी (1661-1728 ई.) और चीन लुंग (1736-1796 ई.) इस वंश के सर्वाधिक प्रतापी राजा हुए। दीर्घकाल तक मंचूओ ने चीन पर शासन किया।
इसी दौरान औरंगज़ेब ने अपनी शाही फ़ौज के संरक्षण में बाज बहादुर की सेना को चीन पर हमले का हुक्म सुनाया , लगभग ४० रोज़ में इसको फतह किया और कैलाश मान सरोवर जो शिव का वास स्थान है , और हिन्दुओं की आस्था का केंद्र है उसको हिन्दुओं के हवाले कर दिया …………………………………..
तत्कालीन प्रधान मंत्री जवाहर लाल नेहरू ने जब UNO में कैलाश मानसरोवर का मुद्दा उठाते हुए उसको वापस भारत को दिलाने के लिए दरखुआसत की तो चीन ने अपना पक्ष रखते हुए यह तर्क दिया था की हमने भरता का कोई हिस्सा नहीं क़ब्ज़ा किया बल्कि हमने अपनी वो ज़मीन यानी कैलाश मानसरोवर को वापस ली है जिसको पांचवे मुग़ल बादशाह औरंगज़ेब ने हमसे छीन लिया था , इस सम्बन्ध में UNO के साथ इस Correspondence के दस्तावेज़ आज भी Parliament के Archive में मौजूद हैं , इसके लिए आप इस लिंक पर जा सकते हैं .
http://parliamentlibraryindia.nic.in/ .
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