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सत्ता के पुजारी या भिकारी , मौक़ापरस्त ,और लालची जानवर (सोशल एनिमल ) हैं ??

Ali Aadil khan //Editor in Chief //Times of Pedia Group

हमने चुनाव BJP और मोदी सरकार के हर संस्थान के ख़िलाफ़ लड़ा है :राहुल

9 /11 का वो हादसा जब अमरीका के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर चरमपंथी हमला हुआ तब पूरे विश्व की संवेदना लूटने का काम किसने किया आपको पता है न ? पूरा विश्व एक दिन में अमेरिका का पक्षधर और हमदर्द बन गया था और किसी ने भी सच्चाई जाने बिना अमेरिका के हर एक्शन और हमले को  सही ठहरना शुरू कर दिया था , अब चाहे वो अफ़ग़ानिस्तान पर अँधा धुंद बम बारी हो या इराक़ में सद्दाम की हुकूमत का खात्मा और 20 लाख से ज़्यादा लोगों का क़त्ल ए आम ।

आपको शायद  याद न हो कि उसी शाम, एक यूरोपीय नीति निर्माता भी अख़बारों कि सुर्खी बने हुए थे जिन्होंने यह सलाह दी थी कि मौजूदा समय किसी भी अलोकप्रिय फ़ैसले को लागू करने का सबसे बेहतरीन समय है, क्योंकि हर किसी का ध्यान चरमपंथी गतिविधियों की ओर होगा। यानी , किसी भी अमानवीय या ना पसंदीदा फैसले पर जनता की नज़र नहीं जायेगी ।

दरअसल, यह एक तरह की शैतानी रणनीति ही है कि आप पहले ज़मीन पर संकट और खौफ का माहौल पैदा करें फिर संकट के समय कुछ वैसा फ़ैसला कर लें जिसे कर पाना शांति के दौर में संभव ही न हो ।यानी अपने काले करतूत छुपाने के लिए देश ,दुनिया में Unrest या अशांति पैदा की जाए यह सिर्फ शैतानी फितरत का ही हिस्सा है , इसी सिद्धांत को 2007 में कनाडा के प्रसिद्द लेखक नेओमी क्लाइन (Naomi Klein) ने अपनी पुस्तक ‘शॉक डॉक्ट्रिन’ में विस्तार से समझाया है।हो सके तो आप भी पढियेगा ।पाठकों की सुविधा के लिए नीचे लिंक दे रहा हूँ ताकि आसानी से इस सच्चाई पर पहुंचा जा सके ।

https://www.theguardian.com/books/2007/sep/15/politics

 

https://www.amazon.com/Shock-Doctrine-Rise-Disaster-Capitalism/dp/0312427999

बात कांग्रेस के राहुल की , कांग्रेस पार्टी के अंदर बीते 23 मई से क्या कुछ चल रहा है, इसे समझने का एक जरिया ‘शॉक डॉक्ट्रिन’ पुस्तक भी है। 2019 के आम चुनावों में कांग्रेस को दी गयी मात , दी गयी इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि आज भी देश और दुनिया में बीजेपी की जीत को EVM की जीत से ही याद किया जारहा है , और देश भर में इसपर आंदोलन और चर्चाएं जारी हैं ।

और उस हार के सदमे से कांग्रेस पार्टी में आज तक असमंजस बना हुआ है , पार्टी के (जिनको अब रिटायर्ड होजाना चाहिए था ) नेता और बचा खुचा संगठन लगातार भरम के चलते कोई फैसला नहीं ले पा रहा है । और साथ ही इस स्थिति के चलते पार्टी के आलोचकों को, चाहे वो पार्टी के भीतर के हों या फिर बाहर,कांग्रेस पार्टी के अस्तित्व पर हमले करने का भरपूर मौका मिल गया है।शायद यह मौक़ा किसी मजबूरी के चलते दिया गया हो ? मुझे नहीं पता ।

यहाँ एक सवाल यह ज़रूर बनता है कि क्या वास्तव में कांग्रेस कि कमान संभालने की सलाहियत राहुल गाँधी के सिवा पूरी पार्टी में किसी के पास नहीं है , अगर यह सही है तो यह पार्टी और देश के लिए भी चिंता का विषय है , क्या वाक़ई कांग्रेस सिमट कर गाँधी परिवार तक रह गयी है और गाँधी परिवार सिमट कर कांग्रेस तक रह गया है ? जबकि मेनका और वरुण का बीजेपी में समय से चले जाने का फैसला भले उनकी मजबूरी रहा हो किन्तु सही रहा या ग़लत यह वही जाने ।

हालांकि, कांग्रेस पार्टी के बिखराव के इस दौरान आम लोगों की इस बात में कोई दिलचस्पी नहीं है , की कांग्रेस का क्या भविष्य है , और देश में विपक्ष का रोल कौन पार्टी अदा करेगी । उनका ध्यान दूसरे मुद्दों की ओर है। इसी दौरान राहुल का लोकतंत्र और संविधान को लेकर जताई गयी चिंता ने देश के शुभचिंतकों को चिंता में डाल दिया था ।

आपको याद होगा 23 मई 2019 आम चुनाव के नतीजों के बाद राहुल ने लम्बे समय तक चुप्पी साध ली थी , इस चुप्पी को तोड़ते हुए राहुल गाँधी ने कहा था ‘हमने 2019 का चुनाव किसी एक राजनीतिक पार्टी से नहीं बल्कि मोदी सरकार की पूरी मशीनरी, जिसके हर संस्थान को विपक्ष के खिलाफ खड़ा किया गया था, उससे लड़ा है। यह अब शीशे की तरह साफ है कि बरसों से संजोई गयी हमारी सांस्थानिक निष्पक्षता अब देश में नहीं बची है।’

अब यह बयान देश की सबसे पुरानी और बड़ी पार्टी के अध्यक्ष का है इसके बाद आपको नहीं लगता की एक ख़ास विचार धारा को देश में लागू करने के लिए देश के संस्थान संवैधानिक तौर से नहीं बल्कि किसी एक या दो के कहने से ही चलाये जा सकेंगे अगर ऐसा होगा तो क्या भारत का संघीय ढांचा बच पायेगा जिसको भारत की आज़ादी के बाद सरदार पटेल द्वारा तैयार किया गया था ।

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सर्च इंजन में ‘कांग्रेस मेल्टडाउन’ टाइप करने से पता चलता है की केवल ।13 सेकेंड के अंदर तकरीबन 90 हज़ार लिंक दिखाई देने लगते हैं। हर रात टीवी पर कांग्रेस की स्थिति मांस के उस टुकड़े की तरह हो जाती है, जिसे भेड़ियों के आगे फेंका जाना है।इस पूरे पाठ्यक्रम से ऐसा नहीं लगता ?? कि नाओमी क्लीन (Naomi Klein) की पुस्तक ‘शॉक डॉक्ट्रिन’ लिखी बातें अब सच साबित हो रही हैं ।

विभिन्न राज्यों में कांग्रेस के साथ जो कुछ हो रहा है, उन सबमें एक बात समान है- उसकी स्थिति की वजह भारतीय जनता पार्टी है और स्थिति का फ़ायदा भी बीजेपी को ही हो रहा है।और ऐसा लग रहा है की जैसे कांग्रेस और दूसरी विपक्ष पार्टियों और जनता ने भी तै: कर लिया है कि अब जो कुछ बीजेपी को करना है करे हम कुछ नहीं बोलेंगे ।

मोदी सरकार ,अगर आप चाहें उसको NDA 1 भी कह सकते हैं के पहले पांच साल के शासन के दौरान बीजेपी ‘कांग्रेस-मुक्त भारत’ के अपने उद्देश्य को पूरा नहीं कर पाई, इसलिए NDA 2 के दूसरे कार्यकाल में ‘कांग्रेस विहीन भारत’ बनाने की भरपूर कोशिश की जा रही है।हालाँकि कुछ विश्लेषक इसको मुस्लिम व् दलित मुक्त भारत कि संज्ञा भी दे रहे हैं ।

 

आपने देखा किस तरह कर्नाटक, गोवा और तेलंगाना के अलावा देश के दुसरे राज्यों में बीजेपी ,कांग्रेसियों और दुसरे ग़ैर भाजपाइयों को अपने पाले में लाने की जोड़तोड़ कर रही है या कुछ मौक़ापरस्त नेता खुद बीजेपी में जा रहे हैं ,अगर यह सिलसिला यूँही चला तो भारत लोकतांत्रिक देश नहीं रहेगा ।

हालाँकि यह BJP के आला कमान भी समझ रही है की आज बीजेपी ज्वाइन करने वालों में अधिकतर सत्ता के पुजारी या भिकारी , Thinkless , मौक़ापरस्त ,और लालची जानवर (सोशल एनिमल ) हैं ।

हाथ जोड़कर सेवा की भीक नहीं मांगी जाती ,बल्कि सेवा का अवसर जनता द्वारा प्रदान किया जाना चाहिए , आज राजनीती रेपिस्ट,भ्रष्टाचारी, क़ातिल ,गैम्बलर,और तिकड़म बाज़ों की सुरक्षा गाह बन गयी है ।

बहरहाल, कांग्रेस की बढ़ती मुश्किलों के बीच यह समझा जा सकता है कि कांग्रेस इस हाल तक क्यों पहुंची है, इसमें कुछ छुपा नहीं हैं जैसे ये कांग्रेस की योजनाओं का समय पर लागू न कर पाना ,आपसी मतभेद , भाई भतीजावाद ,अह्म तथा स्वार्थ भावना का नतीजा है ।हालांकि जिस स्तिथि पर कांग्रेस को पहुँचने में 70 वर्ष लगे BJP 17 वर्षों में ही इस हाल में पहुँच लेगी ऐसा अनुमान लग रहा है

बीजेपी को हालिया आम चुनाव में जो जीत हासिल हुयी है या दिलाई गयी है , उससे बीजेपी को दक्षिणी भारत में अपनी पहुंच को बढ़ाने के लिए नए सिरे से कोशिश करने का उत्साह मिला है। मौजूदा चुनाव में उत्तर भारत में अपनी कामयाबी के बावजूद बीजेपी कर्नाटक को अपवाद (exception) मान ले तो दक्षिण भारत में उल्लेखनीय प्रदर्शन नहीं कर पाई।

केरल और तमिलनाडु में बीजेपी का खाता नहीं खुला। आंध्र प्रदेश में पार्टी अपनी दो सीटें भी नहीं बचा पाई, लेकिन तेलंगाना में उसे चार सीटें ज़रूर मिलीं। परन्तु अब बीजेपी को कांग्रेस खेमे में सेंध लगाने के लिए बहुत कोशिश नहीं करनी होगी क्योंकि अधिकतर नेता तो हवा के रुख के साथ ही चलने वाले हैं विचारधारा के साथ उँगलियों पर गिने जाने वाले नेता ही बचे हैं ।लिहाज़ा जो सत्ता के पुजारी या भिकारी हैं उनको तो भीक मिल ही जायेगी ।

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हालाँकि बीजेपी के लिए अपने दम पर और अप्रत्यक्ष तौर पर भी जहां-जहां कांग्रेस की यूनिट मजबूत है, वहां उसमें तोड़-फोड़ कर पाने की आशंका अभी भी कम ही नज़र आती है। केरल का उदाहरण सामने है, जहां कांग्रेस नेतृत्व वाली यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट, 20 लोकसभा सीटों में 19 जीतने में कामयाब रही। ऐसे में केरल कांग्रेस में कोई हलचल नहीं दिख रही है।

जबकि कर्नाटक में पिछले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस और जेडीएस गठबंधन 28 में से महज दो सीटें जीत पाईं और इसके बाद ही राज्ये सरकार गिरने की कगार तक पहुंची । कांग्रेसियों में निश्चित तौर पर पार्टी के भविष्य और अपने भविष्य को लेकर चिंताएं हैं।

 

लेकिन यह भी देखना होगा कि पार्टी में अवसरवाद और निजी महत्वाकांक्षा भी चरम पर है। जिसकी हर पर पार्टी में उम्मीद रहती है ।अब देश में ऐसे नेताओं की गिनती बहुत कम है जो देश व जनता के प्रति वफादार , समर्पित , और नैतिक तथा ईमानदार हों ।

इसके अलावा कांग्रेस आर्थिक मोर्चे पर भी बीजेपी के मुक़ाबले में कहीं नहीं लगती , देश के लगभग सारे बड़े कॉर्पोरेट घराने BJP के साथ दीखते हैं । साल 2016 से 2018 के बीच, बीजेपी को लगभग 1000 करोड़ रुपये का चंदा कॉरपोरेट जगत से मिला है। यह कुल कॉरपोरेट चंदे का 93 प्रतिशत है। जबकि कांग्रेस को 5 । 8 प्रतिशत यानी महज 55 करोड़ रुपये का चंदा मिल पाया है।

बेनामी इलेक्ट्रॉल बॉन्ड से भी बीजेपी को ही फ़ायदा पहुंचा। इसके चलते भी बीजेपी वह सब कर पा रही है जो कांग्रेस नहीं कर सकती।

गोवा कांग्रेस के प्रभारी के चेलाकुमार ने ऑन रिकॉर्ड यह कहा कि कांग्रेस विधायकों ने उन्हें बताया कि उन्हें बीजेपी भारी रक़म ऑफ़र कर रही है।

तेलंगाना में, कांग्रेस के 18 में से 12 विधायक तेलंगाना राष्ट्र समिति में और गोवा में कांग्रेस के 15 विधायकों में से 10 विधायक बीजेपी में शामिल हो गए, आपको बता दें ऐसा हमारे संविधान में प्रावधान है की यदि किसी पार्टी के एक साथ दो-तिहाई सदस्य किसी दूसरी पार्टी में चले जाते हैं तो उनपर दल बदलू क़ानून लागू नहीं होपाता है ,इसी क़ानून के चलते एक साथ दो तिहाई मेंबर्स ने एक साथ दल बदलने की रणनीति बनाई या बनवाई गयी ।

आपको यह भी बता दें की कर्नाटक में कांग्रेसी विधायकों ने केवल विधायकी से इस्तीफ़ा दिया है, पार्टी से नहीं , ताकि उन्हें अयोग्य नहीं ठहराया जा सके।बीजेपी खुद के लिए ‘पार्टी विद ए डिफरेंस’ दावा भले करती रही हो, लेकिन उसने कांग्रेसियों को अपने पाले में लाने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी है ।

कर्नाटक के पूर्व CM सिद्धारमैया ने बड़ा आरोप बीजेपी पर लगाया कि , सीबीआई और ईडी जैसी केंद्रीय जांच एजेंसियों का इस्तेमाल भी कांग्रेस विधायकों के खिलाफ किया गया ताकि वे पाला बदल सकें, यानी खौफ की राजनीती का खेल पूरे देश में जारी है ।

गोवा में बीजेपी ने एक कांग्रेसी विधायक पर रेपिस्ट होने का आरोप लगाया था, लेकिन जैसे ही उस विधायक ने बीजेपी JOIN की , पार्टी ने इस आरोप पर विचार करना तक जरूरी नहीं समझा , और अब उसके सब गुनाह माफ़ होगये जैसा कि क्लीन चिट का सीज़न सा आया हुआ है ।

अब यहाँ एक बड़ा सवाल पैदा होता है ,जब मौजूदा उठापठक का दौर थमेगा, राजनितिक स्थिरता आएगी क्या बीजेपी के इस खेल के लिए भारतीय लोकतंत्र और देश को क्या क़ीमत चुकानी पड़ेगी और उसकी ज़िम्मेदारी कौन लेगा ? क्या देश म ें पैदा होने वाले हालात के लिए विपक्ष भी बराबर का ज़िम्मेदार ठहराया जायेगा या नहीं ।

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