क्या आपको याद है कि पिछली बार जब भाजपा गठबन्धन सत्ता में था, तब उसने “इंडिया शाइनिंग” का शगूफा छेड़ा था? कुछ ही हफ्तों में इस बात पर उसकी इतनी फजीहत हुई कि भाजपा गठबंधन का “शाइनिंग” ही उसे ले डूबा। उसकी अन्य कुनीतियों को अगर जाने भी दें तो इस बार आत्ममुग्ध मीडिया, दलित-ठुकाई, छद्म देशप्रेम और नोटबन्दी मात्र ही उसे गर्क करने के लिए काफी हैं।
वैसे इनसे कहीं अधिक संगीन कारण तो उसकी आर्थिक नीति है, परन्तु जनशिक्षा के ईमानदार प्रयास के बिना अधिकांश नागरिकों के पल्ले वह पड़ती नहीं है। इसके अलावा घोषित सरकारी आंकड़े भी विश्वसनीय नहीं होते। इस समय सिर्फ राज्यसभा ही कई मामलों में प्रजातंत्र के रक्षा कवच के रूप में साबित बची है। वैसे राष्ट्रपति भी रक्षा कवच हैं, परन्तु झारखण्ड के गवर्नर की तरह उनकी भूमिका भी “यदि” और “परन्तु” में जकड़ी हुई है।
भाजपा इस समय जोर लगाए हुए है कि राज्यसभा में जल्द से जल्द अपने पिट्ठुओं को भरकर बहुमत जुटा ले ताकि वह तमाम नीतियों को अपने स्वार्थ के लिए पास करा ले। 32 प्रतिशत् के बहुमत से इतराई हुई भाजपा ने प्रजातंत्र के अनिवार्य पक्ष, सशक्त विपक्ष को नष्ट किया है। यही काम हिटलर ने हिंसक तरीकों से किया था। बल्कि निरंकुशता के मार्ग पर उसने सबसे पहला काम यही किया था।
हिटलर की दुर्गति हुई; उत्तरप्रदेश के चुनाव में भाजपा की दुर्गति भी होती चली जा रही है। निरंकुशता से उबरने की दिशा में भारत लगातार बढ़ रहा है। हिटलरशाही हारे9गी, देश जीतेगा!
(ये लेखक के अपने विचार हैं)