Ali Aadil khan (Editor-in-chief)
देश के क़ानून मंत्री ने यह क्या कह डाला ?
24 दिसंबर 2018 सोमवार को लखनऊ में अखिल भारतीय अधिवक्ता परिषद् का 15वाँ अधिवेशन संपन्न होगया , अधिवेशन में दुनिया के सबसे बड़े लोकतान्त्रिक देश के क़ानून मंत्री , सर्वोच्च न्यायलय और उच्च न्यायालय के जजों की मौजूदगी में देश के ही अति गंभीर तथा संवेदनशील मुद्दे राम मंदिर -बाबरी मस्जिद पर फ़ास्ट ट्रेक कोर्ट बनाने की सिफ़ारिश पर बोल रहे थे .
आदरणीय क़ानून मंत्री रवि शंकर प्रसाद ने जब फ़ास्ट ट्रेक का अपना निजी आदेश जारी किया जिसको समाचार पत्रों में अपील कहा गया है तो वहां मौजूद अधिवक्ता उत्तेजित होगये और जय श्री राम के नारे लगाने शुरू करदिये .क़ानून मंत्री ने कहा की राम मंदिर देश के करोड़ों हिन्दुओं की आस्था से जुड़ा है , अच्छा होता अगर देश के क़ानून मंत्री कहते कि यह मुद्दा देश के संविधान और लोकतंत्र से जुड़ा है, मगर वो ऐसा नहीं कह पाए . ऐसे में आप खुद ही अनुमान लगाएं की यह लोकतान्त्रिक देश के क़ानून मंत्री द्वारा सम्बोधित की जाने वाली सभा थी या किसी जज़्बाती हिन्दू धर्म गुरु द्वारा दिया जाने वाला धुआंधार भाषण .
जब यह कार्यक्रम चल रहा था तो उस वक़्त मुझे पकिस्तान और अफ़ग़निस्ता की धर्म के नाम पर आयोजित उन सभाओं की याद आगई जिनको धर्म के ठेकेदार की पोशाक पहनकर सत्ता के लालची और भिखारियों ने वहां मौजूद भोले ,अनपढ़ , बेरोज़गार और जज़्बाती मुस्लिम नौजवानों को भड़काकर अफ़ग़ानिस्तान और पाक के विकास और रोज़गार से परे लेजाकर निजी परिभाषित धर्म के उस मैदान में छोड़ दिया जहाँ जंग और तबाही के सिवा कुछ न था , और आज दोनों ही देशों की तबाही और नाकामी के निशान दुनिया के सामने मौजूद हैं . याद रहे ये वो देश हैं जिनका वजूद धर्म के नाम पर है .शायद भारत को भी धर्म के नाम पर उसी डगर पर लेजाने की कोशिश है .
इस अधिवेशन में पश्चिम बंगाल के नन्द लाल बोस द्वारा लिखित संविधान की कॉपी प्रस्तुत करते हुए क़ानून मंत्री ने वहां मौजूद जजों ,अधिवक्ताओं (वकीलों ) और देश की जनता को मूर्ख बनाने का काम किया है ,यह कहना है डॉ B R आंबेडकर विचार मंच के जनरल सेक्रेटरी आर एल केन का जो रिसर्च स्कॉलर भी हैं कंटीटूशनल स्टडीज के , और डॉ आंबेडकर रत्न अवार्ड से भी सम्मानित हैं .केन का यह भी कहना है कि रवि शंकर प्रसाद द्वारा संविधान की प्रतिलिपि के पहले पन्ने पर सीता और राम को अयोध्या जाते हुए दिखाया गया है वाला वक्तव्य भी झूट है .उनका कहना है की ओरिजिनल संविधान की प्रतिलिपि प्रेम बिहारी नारायण द्वारा लिखी गयी थी .
अब यहाँ बात लोकतान्त्रिक देश भारत की , क्या आपको इस प्रकार के प्रोग्राम पर अजीब नहीं लगता जब लोकतान्त्रिक देश का क़ानून मंत्री बहुसंख्यक समुदाय का पक्षधर बनकर संविधान की शपथ को ताक पर रख देता है .देश का मंत्री बनने से पहले अपने सियासी बयानों में नेता क्या कहता है इसका ज़्यादा फ़र्क़ नहीं पड़ता , किन्तु जब लोकतान्त्रिक देश का मंत्री बन जाता है तो अब वो संविधान के अंतर्गत ही अपना कोई भी बयान देसकता है , मंत्री बनने से पहले संविधान की शपथ लेते हुए कहा जाता है कि “‘मैं, अमुक, ईश्वर की शपथ लेता हूँ/सत्यनिष्ठा से प्रतिज्ञान करता हूँ कि मैं विधि द्वारा स्थापित भारत के संविधान के प्रति सच्ची श्रद्धा और निष्ठा रखूँगा, मैं भारत की प्रभुता और अखंडता अक्षुण्ण रखूँगा, मैं संघ के मंत्री के रूप में अपने कर्तव्यों का श्रद्धापूर्वक और शुद्ध अंतःकरण से निर्वहन करूँगा तथा मैं भय या पक्षपात, अनुराग या द्वेष के बिना, सभी प्रकार के लोगों के प्रति संविधान और विधि के अनुसार न्याय करूँगा।’
अच्छा एक बात हमरे पाठक ज़रा शांत मन से सोचें और गहन विचार करें की भारत वर्ष में सब कुछ बहुसंख्यक समुदाय की मर्ज़ी के मुताबिक़ चल रहा है न ? बहुसंख्यक समाज की रस्म ओ रिवाज की पूर्ती में कहीं कोई दख़ल का सवाल ही नहीं है . यहाँ तक की सारे सरकारी कार्यकर्मों और उदघाटन समारोहों में सिर्फ बहुसंख्यक समाज के धर्म के ही अनुसार पूजा पाठ होता है , मैने अपने पत्रकारिता के काल में देश के किसी भी सरकारी कार्यक्रम में ऐसा नहीं देखा जहाँ देश के सभी धर्मों के अनुसार कार्यक्रम शुभारम्भ हुआ हो .तो देश तो पहले से ही अघोषित हिन्दू राष्ट्र है , किन्तु आज हिन्दू राष्ट्र का प्रोपेगंडा करके देश विभाजन और वोट ध्रुवीकरण के सिवा कुछ नज़र नहीं आता .
इसके अलावा देश के सरकारी और सह सरकारी कार्यालय परिसरों में मंदिर तो देखे मगर कोई गिरजा , गुरुद्वारा या मस्जिद कभी नहीं देखी अगर आपने देखी हो तो मुझे ज़रूर बताएं ताकि मैं भी देश के लोकतांत्रिक होने की एक और तस्वीर पेश कर सकूँ .
मैने यह लेख 25 दिसंबर के NBT में छपी खबर के आधार पर लिखा है इस खबर पर डॉ B R आंबेडकर विचार मंच के जनरल सेक्रेटरी आर एल केन ने भी अपनी आपत्ति जताई है , और उन्होंने NBT को लिखा है की NBT अपनी इस खबर के लिए माफ़ी नामा पब्लिश करे,जिसमें संविधान के राइटर का नाम और संविधान की प्रतिलिपि के पहले पन्ने पर सीता और राम को अयोध्या जाते हुए दिखाया गया है बिना तहक़ीक़ सिर्फ क़ानून मंत्री के भाषण के अंश कहकर छाप दिया गया है जो सच नहीं है .
हम timesofpedia.com न्यूज़ पोर्टल पर इस सम्बन्ध में कुछ ज़रूरी तास्तावेज़ भी दाल रहे हैं किरपा हमारे पाठक उसको भी ज़रूर देखें ताकि आप भी किसी नतीजे पर पहुँच सकें .Editor’s desk