ऑटो चालक मुहम्मद ज़ाहिद ने यात्री का नोटों से भरा पर्स सौंपा रेल अधिकारीयों को,कहा जो चीज़ हमारी नहीं उसपर हमारा कोई हक़ नहीं
ईमानदारी ऐसी उम्दा चीज़ है जिसको जिसको हर व्यक्ति पसंद करता है और यदि आप किसी को बेईमान कहदें तो यह उसके लिए insulting या अपमाननीय होता है , विडंबना यह है की लोग ईमान को अपने ढंग से समझने और उसका व्याख्यान करने की कोशिश करते हैं जिसकी वजह से हर एक व्यक्ति का अपना ईमान का दायरा अलग बन जाता है .
हालाँकि आसमान , ज़मीन , सूरज , चाँद और तारों की तरह पूरे विश्व में ईमान की परिभाषा एक ही होनी चाहिए , क्योंकि ईमान रंग ,रूप , या इलाक़े और देश के हिसाब से बदलता नहीं है “रसूल ( ईश्दूत) की बात को बग़ैर किसी मुशाहिदे (प्रत्यक्ष प्रमाण ) के महज़ रसूल (messanger of the Almighty) के एतमाद (भरोसे पर यक़ीनी तौर से मान लेने का नाम ईमान है ” .अब यह परिभाषा देश , क्षेत्र , या रंग रूप के हिसाब से नहीं बदली जासकती .
यदि इस परिभाषा को हम आसान करदें तो यूँ कहा जासकता है की अपने बनाने वाले रब के हुक्म के आधार पर और उसके दूत के तरीके पर अपनी ज़िंदगी गुज़ारने का नाम ईमान है .
अब हमारे बनाने वाले ने हमको बनाकर बेसहारा या असहाय नहीं छोड़ा है बल्कि जीवन के हर मोड़ पर हमारी रहनुमाई या मार्ग दर्शन के लिए दूत को भेजा है जिसके माध्यम से हम अपने जीवन को सुखी , समृद्ध ,सम्मानित , और सफल बना सकते हैं .
उसके लिए समाज में कुछ बातों का ख्याल रखना होगा , मिसाल के तौर पर यदि हम ज़मीन पर चलने और बसने वाले हर प्राणी और मनुष्य को उसका अधिकार देते हुए अपना फ़र्ज़ पूरा करें तो दुनिया स्वर्ग बन जायेगी . मगर मामला उल्टा है यहाँ हर व्यक्ति अपना अधिकार लेने केलिए तो हैवानियत से गुज़र जाता है किन्तु दूसरे के हक़ देने में आना कानि करता है और अपना फ़र्ज़ पूरा करने में भी सुस्ती करता है. और दुनिया में बेचैनी व अपराध का यही बड़ा कारण है.
ईमान की बात चली है तो कोटा राजस्थान के रेल विभाग की बायत होजाये , जहाँ एक यात्री की खोयी लगभग 25000 की रक़म वापस मिल गयी और यह सिर्फ ईमानदारी के चलते ही हुआ . आज जब इंसान 2 रूपये पर अपना ईमान खो रहा हो ऐसे में 23000 से अधिक की रक़म को अमानत समझकर लौटा दिया जाना ईमानदारी की अलामत है और मुक़द्दर तथा भाग्य पर यक़ीन की दलील है .
यह कहना बहुत आसान है कि भाग्य से ज़्यादा या कम और वक़्त से पहले कुछ नहीं मिलता , लेकिन जब अमल के मैदान में कोई इसपर कार्यबद्ध होता है तो वाक़ई यह सराहने योग्य अमल होता है .
ऐसा ही हुआ उस समय जब दीपांश अग्रवाल नाम का यात्री कोटा रेलवे स्टेशन पर उतरकर ऑटो रिक्शा में बैठा और जब खर पहुंचकर उसने अपनी जेब टटोली तो पर्स जेब में नहीं था , अग्रवाल के होश उड़ गए .
उधर एक ऑटो चालक मुहम्मद ज़ाहिद नाम का व्यक्ति एक पर्स जो किसी की अमानत थी कोटा स्टेशन के उप स्टेशन अधीक्षक (वाणिज्य) प्रेम राज वर्मा को स्वास्थ्य निरीक्षक मुकेश मीणा कि मौजूदगी में सौंप रहा था , उसके फ़ौरन बाद कोटा स्टेशन के रेलवे अधिकारयों द्वारा यात्री से संपर्क साधा गया जिसमें काफी समय लगा और थोड़ा मेहनत भी इन लोगों को करना पड़ी , फलस्वरूप दीपांश अग्रवाल की अमानत ,मुहम्मद ज़ाहिद की ईमानदारी और रेलवे स्टाफ की तत्परता तथा कर्तव्यनिष्ठा के चलते पहुँच गयी और अग्रवाल ने ऑटो चालक ज़ाहि व रेलवे स्टाफ का दिल से धन्यवाद दिया .
आज यही ईमानदारी , कर्तव्यनिष्ठा , प्रेम , सद्भाव और तत्परता समाज में आम होजाये तो देश अम्न व शान्ति का घर बन जाए और ज़मीन स्वर्ग बन जाए .