रजेरा कुम्भज , गांधीनगर
राजनितिक मुद्दों का हल राजनीती के रास्ते से ही निकालना संभव होता है , ऐसे में राजनीती से दूर रहकर अपने लक्ष्य को पाना सपना भर ही रह सकता है .राजनीतिक महत्वाकांक्षा नहीं पालने की अपनी छवि को चमकाते हुए प्रकाश में आई हार्दिक पटेल, अल्पेश ठाकुर और जिग्नेश मेवानी की गुजराती युवा तिकड़ी पहले मौके पर ही राजनीतिक अखाड़े में कूद पड़ी,जिसको कुछ विश्लेषक भले ही स्वार्थ बता रहे हों लेकिन सच्चाई यह है की ,जिन मुद्दों की लड़ाई ये तीनो लड़ रहे हैं वो बिना राजनीती में आये संभव ही नहीं थी ।

उन्होंने राजनीतिक महत्वाकांक्षा से परहेज करने वाली अपनी छवि क्यों बदली है, इसकी कई वजहें हो सकती हैं लेकिन इससे कांग्रेस को कितना राजनीतिक लाभ होगा इसका विश्लेषण जारी है ।
याद रहे अल्पेश रधनपुर में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं, जबकि जिग्नेश ने वडगाम से स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में पर्चा भरा है। जिग्नेश को कांग्रेस का पूरा समर्थन है और वहां अपना उम्मीदवार नहीं खड़ा किया है। उम्र कम रहने के चलते हार्दिक चुनाव नहीं लड़ रहे हैं, लेकिन उन्होंने कांग्रेस को समर्थन देने का संकेत पहले ही दे दिया था। इस खेल में अब सत्ताधारी बीजेपी की चाल शुरू हो गई है।
हार्दिक या अल्पेश के पास अपने समर्थन वाले दल की तरफ मोड़ने लायक जो वोट थे, उनको बीजेपी अपनी तरफ खींचने की कोशिश में जुट गई है। बीजेपी इस पॉइंट को भुनाने की कोशिश कर रही है कि दोनों ने शुरुआत में खुद को ऐसे नेता के रूप में पेश किया था, जो पर्सनल अजेंडा छोड़कर अपने समुदाय के हक की बात करते हैं, और राजनीती में नहीं आएंगे , जबकि यह नामुमकिन है । अब हार्दिक और अल्पेश दोनों चुनाव के मैदान में कूद पड़े हैं।
हालांकि PAAS के सदस्य कांग्रेस पर दबाव डालकर कई सीटों पर उतारे गए उम्मीदवार बदलवाने में कामयाब रहे हैं जिस कारण कुछ कांग्रेस के कार्यकर्ताओं को इसपर नाराज़गी है । जबकि वे पाटीदार उम्मीदवारों के लिए काम करने को तैयार भी दिख रहे हैं।हालांकि खबर यह भी है कि पाटीदार युवक PAAS के पसंदीदा उम्मीदवारों के लिए जमकर काम कर रहे हैं, जिससे कांग्रेस कार्यकर्ताओं में नाराजगी है। इससे कांग्रेस के लिए जमीन पर काम करनेवाले कार्यकर्ताओं का उत्साह टूट रहा है ।
जिग्नेश मेवानी के पास हार्दिक और अल्पेश जैसा व्यापक जनाधार नहीं है, लेकिन अपनी कम्यूनिकेशन स्किल्स के चलते वह जनता में बहुत लोकप्रिय हैं। दलितों की राज्यभर में छितराई 7 पर्सेंट आबादी होने के चलते मेवानी को जनाधार वाला दलित लीडर बनने में बहुत मशक्कत करनी पड़ी है। ट्रांसफरेबल वोट बहुत कम होने के बावजूद वडगाम से उनका पर्चा दाखिल कराए जाने से कांग्रेस कार्यकर्ताओं में गुस्सा है। ये लोग मेवानी को बाहरी की तरह देख रहे हैं, जिससे बीजेपी को फायदा हेने का इमकान है ।
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