जिस्म की बात नहीं थी उनके दिल तक जाना था
लम्बी दूरी तय करने में वक़्त तो लगता है ॥
कश्मीर का मसला पिछले दिनों होने वाली यशवंत सिन्हा की कश्मीर यात्रा से हल होजायेगा ? यह उम्मीद से परे तो नहीं मगर खीर टेढ़ी है असल में कश्मीर मसले को हल करने में आज़ादी से आजतक कोई भी सरकार गंभीर नहीं रही है ,कश्मीरियत जम्हूरियत की बात करने वाले कश्मीर से मोहब्बत करते हैं कश्मीरियों से नहीं अगर हाँ तो सरकार वहां रेफरेंडम करा ले कश्मीरियों की मंशा का अंदाजा होजायेगा फ़ौज तो भारत की ही वहां रहेगी न…आपको याद होगा 1975 में इंदिरा ग़ांधी ने इमरजेंसी लगाई थी देश की जनता ने अगले ही चुनाव में बता दिया की उनको ये मंज़ूर नहीं और कांग्रेस को शिकस्त मिली .यहाँ भी यदि कश्मीर की अवाम की आज़ादाना राये लेली जाए तो कोई हर्ज नहीं तीन विकल्प उनके सामने रख दिए जाएँ भारत की निगरानी में , आज़ाद या पाक की निगरानी में रहना चाहेंगे ?हमारा आंकलन है की मेजोरिटी भारत के साथ रहने को पसंद करेगी मगर कुछ शर्तों के साथ ।
सरकार के रवैये में आई नरमी और बीजेपी के पुराने कूटनीतिज्ञ नेता यशवंत सिन्हा की टीम की कश्मीर में अलगाववादी नेताओं द्वारा खैर मक़दम (स्वागत) अमन की कोशिशों में नए दरवाज़े के खुलने की आहट देता है ।हालांकि इस प्रकार की कोशिशें पहले कई बार होती रही हैं । मगर यह बीजेपी की ओर से सिन्हा की टीम है जिससे अलगाववादी नेताओं ने मुलाक़ात की और बात चीत का माहौल भी हमवार हुआ , इससे पहले केंद्रीय सरकार की ओर से गए नेता बैरंग वापस आगये थे।
1947 में जब देश जल रहा था ,हर तरफ अफ़रा तफ़री का माहौल था मगर कश्मीर में अमन और सुकून था न कोई वहां से पाक जा रहा था और न पाक से कोई वहां आरहा था कश्मीर की अवाम 47 की भयानक आग की लपटों और चीख पुकार की होल्नाकियों से अमन में थी । मगर 20 अक्टूबर 1947 को अचानक मुसलमानो की मार काट शुरू होगयी यह इस हमले के बारे में समझ भी नहीं पाए कि उनपर सिक्योरिटी फोर्सेज का अताब क्यों टूटा .दरअसल वो डोगरी फ़ौज की यूनिफार्म में कई हज़ार संघी नौजवान निहत्थे कश्मीरियों पर टूट पड़े थे। और लगभग पांच लाख कश्मीरियों का क़त्ल ए आम किया , The London Times के अनुसार ये संख्या 2,37,000 बताई गयी है । London Times आगे लिखता है इस नरसंहार में कश्मीर के महाराजा हरी सिंह ने मिलटरी फाॅर्स को Genocide (क़त्ल ए आम ) में उपयोग किया था ।जबकि दूसरी जगह डोगरा हिदू स्टेट troopers का भी ज़िक्र किया गया है की इस नरसंहार में वो शामिल थी ।
हिन्द पाक बटवारे में मारे गए भारतियों की संख्या दुनिया में होने वाले किसी भी नरसंहार से ज़्यादा बताई जाती है ।और इसमें कश्मीरियों का क़त्ल ए आम सबसे ज़्यादा है जो एकतरफा रहा , अच्छा कोई यह बता सकता है की हिन्द पाक के बटवारे में मार काट क्यों मची ?जबकि इस बात की इजाज़त थी जो जहाँ रहना चाहे वो रहे , और इसमें कोई हर्ज भी क्या था स्वेच्छा (अपनी मर्ज़ी ) से अगर लोग यहाँ से वहां और वहां से यहाँ आ जा रहे थे तो क्या समस्या है , मगर भारत में इस क़त्ल ए आम की योजना अँगरेज़ ने पहले ही बना ली थी ।जिसके नतीजे में नरसंहार हुआ ।
ARMED FORCES SPECIAL POWERS ACT (AFSPA ) 1990 में J & K में लागू किया गया था ,उसके बाद से आज तक एक नज़र वहां के CRIMINAL हालात पर डालते हैं .
Jan. 1989 से Sep 30, 2016 तक के आंकड़े
कुल मौतें 94,548
हिरासत में कुल मौतें 7,073
आम आदमियों की गिरफ्तारी 137,469
तबाह इमारतें और घर व दुकाने 107,043
बेवा महिलायें 22,826
यतीम बच्चे 107,591
महिलायें गैंग-रेपड 10,717
क्या इसी लिए AFSPA J&K में लागू किया गया था ,हालाँकि असम .नागालैंड .मणिपुर (except the Imphal municipal area) , अरुणाचल प्रदेश (चांगलांग एंड लोंगडिंग districts + 20-km belt bordering Assam) , मेघालय (confined to a 20-km belt bordering Assam) , में भी अफ्सपा लागू किया गया था किन्तु वहां की स्तिथि अलग है । कश्मीर में 1990 से लगातार AFSPA कश्मीरियों की आज़ादी ,लोकतंत्र और संविधान के खिलाफ है जिसका बार बार विरोध भी होता रहा है। कश्मीरी अवाम आज भी अमन और प्यार से रहना चाहती है किन्तु कुछ खुद ग़रज़ नेताओं ने अमन पसंद कश्मीरियों से कुछ को अपने साथ लेलिया है और मिलिटेंसी के ज़रिये हरे भरे कश्मीर को वीरान बना दिया है उसपर मिलिट्री गति विधियों ने मिलिटेंसीय को बल दिया यदि वहां इन्साफ हुआ होता अवाम से मिलॉटरी की हमदर्दी होती तो वादी की मिलिटेंसीय कब की ख़त्म होगी होती सच्चाई यही है की सरकारों द्वारा इस मसले को गंभीरता से नहीं लिया गया ,मर्ज़ की अलामत बड़ी बीमारी में तब्दील होगया जो रफ्ता रफ्ता नासूर बना जा रहा है ।
एक बार कश्मीरियों को दिल से लगाकर देखा जाए उनके दुःख और दर्द का मदावा (निवारण) किया जाए , ऐसे में जब देश ओ दुनिया को बाहरी विचार धरा और ISIS जैसी संस्थाओं की चुनौती हो तो यक़ीनन देश की जनता को एक सूत्र में बांधना ज़रूरी हो जाता है , जबकि सरकार और देश की बहुसंख्यकों की ओर से कोई कलेक्टिव शुरुआत होती नहीं दिखती जबकि देश में सेक्युलर सोच के लोगों का प्रतिशत 70 % है मगर बिखरा हुआ होने की वजह से बेजान है ,आशा की जाती है की सरकारें तथा अवाम कश्मीरियों के दिल तक जाने की कोशिश करेंगे और देश को विश्व शक्ति के रूप में अग्रसर करने में अपना सहयोग देंगे ,वरना तुम्हारी दास्ताँ तक न होगी दास्तानों में ।
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