सियासत के अलाव में आग लगा दी गयी है ,धुआं निकलने लगा है और देखते ही देखते यह चिंगारी भयानक शोलों में तब्दील होजायेगी हम जानते हैं, आप भी जानते हैं लेखक क़लम घिसते घिसते थक रहे हैं मगर नेताओं को कोई परवाह नहीं बल्कि उस घडी का बैचेनी से इंतज़ार है की जब चारों ओर से मासूमों की चीखें आने लगें …लाशों के ढेर लग जाए , हज़ारो घर लुट जाएँ ,अरबों रुपयों की मालियत ख़ाक होजाये ,सुहाग छिन जाएँ ,ममता लुट जाए …….फिर आरोप प्रत्यारोप का सिलसिला शुरू हो ।
कैराना से हिन्दू परिवारों के पलायन की लिस्ट ,प्रदेश में धुर्वीकरण की सियासत की बिसात का पहला प्यादा है जो पिटवाया गया है बिसात बिछा दी गयी है कहना ग़लत होगा क्योंकि सियासी बिसात तो अब हमेशा बिछी ही रहती है,बस उसपर गोटों को सजाने का काम होता है ।
UP असेंबली चुनाव से पहले साम्प्रदायिकता की चिता में घी का पहला डब्बा डाल दिया गया है ।प्यार की बात करने वालों को कमज़ोर समझा जाने लगा है, कैसी विडंबना है , यहाँ मुझे एक कवी की मशहूर पंक्तियां याद आती हैं ,,,,कि
अजमतों का मोल नहीं आजके ज़माने(दौर) में –लूट लिया करते हैं अब बुलाके थानों में
शर्म हमको आती है हाल ए दिल सुनाने में —काला दिल है सीने में जिस्म हैं चमकते हुए ,,मेरे गीत ….
“रावणों की बस्ती में प्यार बेसहारा है –मंदिर और मस्जिद का रिश्ता कितना प्यारा है —-
आई जो मुसीबत तो दोनों को पुकारा है -राम भी हमारा और रहीम भी हमारा है ,,मेरे गीत …….
रावण जलाए जाते हैं ..मगर नहीं लगता है बोये जाते हैं जो हर साल कई गुना होकर निकल आते हैं …मगर जहाँ राम जलाए जाते हैं वहां के लिए क्या बोलें ? इस बहस को छोडो मुद्दे की बात पर आओ ।
कितने खेद , दुःख और शर्म कि बात है कि स्वार्थ कि खातिर इंसानियत का क़त्ल ए आम कराया जाता है , और ये वो लोग हैं जो जीव को मारने को भी पाप बताते हैं . अजीब है न ? जीव के वध पर वावेला कर इंसानो का क़त्ल कराया जाता है ।क्या ये कोई अक़ल वाला इंसान करसकता है कि जानवर कि रक्षा के नाम पर मनुष्यों का क़त्ल कराया जाए … आप ही इन्साफ करदो ,,,,मगर मेरे महान भारत में यह सब कुछ होरहा है ।
आओ हम प्रण लें , एहद करें कि देश में इंसान को इज़्ज़त दिलाएंगे और जानवरों को भी उनका हक़ दिलाएंगे …हैरत उस वक़्त भी होती है जब एक बहरूपिया भरतीय अँगरेज़ छुट्टीओं पर विदेश जाने से पहले अपने कुत्तों को 5 सितारा होटल में गेस्ट बनाकर जाता है और अपने माँ बाप को सर्वेंट रूम में रखकर जाता है और सर्वेंट कि छुट्टी कर जाता है ।यही हैं वो लोग जो बड़ी बड़ी तक़रीरें जीव कि हत्या पर दे रहे होते हैं शर्म उनको मगर नहीं आती । और अपने माँ बाप जैसी नेमत को कुत्तों से भी बदतर समझते हैं ..यह लोग ऐतबार के लायक नहीं हो सकते।
आपको मालूम है की उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव से पहले पूरे राज्ये को साम्प्रदायिकता की आग में झोंकने की योजना पर अमल शुरू होगया है …..क्या आप और हम कुछ कर सकते हैं नफरत और साम्प्रदायिकता की इस आग को दहकने से पहले ही अमन की शमा जलाने के लिए ….जी हां बिलकुल करसकते हैं हम जहाँ हैं वहीँ रहकर 20 लोगों की टोली बना लें और रोज़ अपने कस्बे , देहात या शहर में सिर्फ ढाई घंटे अमन , प्यार ,इन्साफ और हक़ के गीत गाते हुए आम सड़कों से गुज़रें , अफवाहों पर कान न धरने की सलाह दें …और रोज़ अपने नज़दीकी पुलिस स्टेशन में वहां के प्रभारी को अपनी उपस्तिथि दर्ज कराएं ताकि उसकी भी जवाब दही बने की इलाके के माहौल को सद्भाव पूर्ण बनाये . यह काम सद्भाव मिशन और खुदाई खिदमतगार जैसी दर्जनों संस्थाओं के साथ मिलकर किया जासकता है जो देश में सद्भावना के लिए सक्रिय हैं और लोग विशवास भी करते हैं ,,जब नफरत फैलाने वाले मुट्ठी भर लोग इकठ्ठा होसकते हैं तो प्यार और अमन के लिए लोगों को जमा करने में क्या आपत्ति है …बस एक फ़र्क़ है की नफरत फैलने वालों को नेताओं का समर्थन होगा क्योंकि समाज में नफरत , धुर्वीकरण का रास्ता उनको सत्ता की ओर जाता दीखता है , जबकि ऐसा हरगिज़ नहीं प्यार और सद्भाव के रास्ते से वो वाक़िफ़ ही नहीं जो सीधा दोनों लोकों की कामयाबी की ओर लेजाता है , और प्यार ओ अमन वालों को सियासी सपोर्ट की आशा कम होती है ..
लेकिन हम अगर इंसानियत और देश से मोहब्बत करते हैं तो यह करना ही होगा अनयथा नफरत और साम्प्रदायिकता की यह आग आपको भी एक रोज़ निगल जायेगी और तब तक बहुत देर हो चुकी होगी …