अब अमरीका और ब्रिटेन ने उठाए चीन के ख़िलाफ़ बड़े क़दम, चीन ने दी धमकी
इस खबर का कुछ हिस्सा आपको राहत दे सकता है/
चीन ने हांगकांग में राष्ट्रीय सुरक्षा क़ानून किया लागू ,इस फ़ैसले की हो रही आलोचना

हॉन्गकॉन्ग के 30 लाख लोगों को ब्रिटेन ने अपने मुल्क में पनाह देने का प्रस्ताव दे दिया है, वहीं अमरीका की प्रतिनिधि सभा ने हॉन्गकॉन्ग से संबंधित नए प्रतिबंधों को मंज़ूरी दी है.
अमेरिका की प्रतिनिधि सभा में सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित होगया है जिसमें तय किया गया है कि चीन के अधिकारियों के साथ . जो भी बैंक बिजनेस करेंगे, उन पर जुर्माना लगाया जाएगा.राष्ट्रपति ट्रंप के पास जाने से पहले इस प्रस्ताव का सीनेट से पास होना आवश्यक है.
बोरिस जॉनसन (ब्रिटेन के प्रधानमंत्री) ने अपनी घोषणा में कहा कि नए सुरक्षा क़ानन से हॉन्गकॉन्ग की स्वतंत्रता का उल्लंघन हो रहा है. उन्होंने कहा कि इससे प्रभावित लोगों को ब्रिटेन आने का प्रस्ताव दिया जाएगा. हॉन्गकॉन्ग पहले ब्रिटेन का उपनिवेश था.
चीन की इस पर कड़ी प्रतिक्रिया आई है. ब्रिटेन में चीन के राजदूत ने कहा है कि उसको कोई अधिकार नहीं है. चीनी राजदूत लियू शियाओमिंग ने कहा कि ब्रिटेन के इस क़दम को रोकने के लिए चीन ज़रूरी क़दम उठाएगा.

इस अवसर पर DIPLOMATIC खींचा तानी का सिलसिला शुरू हो गया है , चीन के राजदूत लियू शियाओमिंग ने कहा कि ये दोनों देशों के बीच हुए समझौते का उल्लंघन है. उन्होंने नए सुरक्षा क़ानून को लेकर ब्रिटेन की आलोचना को ग़ैर ज़िम्मेदार और ग़ैर ज़रूरी बताया है.
देखें क्या है ब्रिटेन का फ़ैसला
ब्रिटेन के द्वारा लिए गए नए फ़ैसले के साथ ही लगभग साढ़े तीन लाख ब्रिटिश पासपोर्टधारी और क़रीब 26 लाख अन्य लोग पाँच साल के लिए ब्रिटेन आ सकते हैं. इतना ही नहीं ब्रिटैन हुकूमत ने यह भी फैसला लिया है कि इसके एक साल बाद यानी छह साल पूरे होने पर वे ब्रातानी नागरिकता के लिए आवेदन भी कर सकते हैं.
आपको यह भी बता दें , हॉन्गकॉन्ग में ब्रितानी नागरिक, जो ओवरसीज़ पासपोर्ट पर हैं, उन्हें 1980 में विशेष दर्जा दिया गया था. लेकन फ़िलहाल उनके अधिकार सीमित हैं और वे सिर्फ़ छह महीने तक ही ब्रिटेन में बिना वीज़ा के रह सकते हैं.

सरकार की नई योजना के तहत सभी ब्रितानी प्रवासी नागरिकों और उनके आश्रितों को ब्रिटेन में रहने का अधिकार दिया जाएगा. इनमें पाँच साल तक काम करने और पढ़ने का अधिकार भी होगा. छह साल के बाद वे नागरिकता का आवेदन दे सकते हैं.
दूसरी तरफ बोरिस जॉनसन (PM ENGLAND ) के बयान के मुताबिक़ हॉन्गकॉन्ग में नया सुरक्षा क़ानून लागू करना 1985 के चीन और ब्रिटेन के संयुक्त घोषणापत्र का उल्लंघन है. जोंसन ने कहा कि वो समझौता क़ानूनी रूप से बाध्यकारी है और इसमें बताया गया है कि कैसे आज़ाद और संप्रभु देश की हैसियत से हॉन्गकॉन्ग में आज़ादी के कुछ पहलुओं की 50 सालों तक इन हालात में रक्षा की जाएगी.याद रहे हांगकांग 1997 में चीन से आज़ाद हुआ था ******
आलमी मंज़र नामे को देखते हुए विशेषज्ञों का मानना है की कोरोना के बाद चीन के द्वारा हांगकांग के नागरिकों के अधिकारों और उनकी स्वायत्ता तथा आज़ादी को छीने जाने की खिलाफ विश्व में जो माहौल बना है इससे विश्व युद्ध के खतरे बढ़ गए हैं , यदि चीन अपनी हठ धर्मी के चलते राष्ट्रीय सुरक्षा क़ानून के नाजाइज़ इस्तेमाल पर रोक नहीं लगाता है तो यह दुनिया में जंग के खतरों और आज़ादी के लिए लड़ने वालों के तेवर को और भड़का देगा TOP Views
हालांकि इस प्रकार के TADA , POTA , UAPA तथा NSA जैसे क़ानून का दुरूपयोग भारत में भी एक ख़ास वर्ग और जाती के लोगों के खिलाफ भी पिछले कई दशकों से होता रहा है , मगर उसके खिलाफ विश्वस्तरीय या कम से कम राजकीय स्तर पर नाराज़गी का इज़हार नहीं किया गया , इसलिए वो आज भी भारत में लागू है ,जबकि इस प्रकार के क़ानून उनपर ज़रूर लागू होने चाहियें जो वास्तव में देश और इंसानियत के दुश्मन हैं , मगर अफ़सोस ऐसा नहीं होता TOP VIEWS
विशेषज्ञ मानते हैं की जिन देशों में भी राष्ट्रीय सुरक्षा क़ानून के नाम पर बेगुनाहों पर ज़ुल्म किया जा रहा है वो एक रोज़ आंदोलन की शक्ल में देशों की सड़कों पर आएगा फिर खून बहेगा ,एहि चाहता है शैतान . और धरी रह जायेगी सारी विकास की योजना .इसलिए जो देश भी राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर अपने ही नागरिकों को पराया और बेगाना बना रहे हैं वो इस क़ानून के निफाज़ से बाज़ आएं . वरना हाल वही होगा जो अब तक आप देखते आ रहे हैं , जिस देश या समाज में भी अन्याय ,पक्षपात , भेदभाव और साम्प्रदायिकता घुस गयी फिर उसको तबाह होने से कोई नहीं रोक सकता , अब ज़रा अपने देश पर भी नज़र डाल लेना . TOP VIEWS
<<<<<<<<<<<<<<<<<<<<<<<<<<
******* बोरिस जॉनसन ने कहा कि इससे हॉन्गकॉन्ग की उच्च स्तर की स्वायत्ता का उल्लंघन होता है और संयुक्त घोषणापत्र में जिन अधिकारों और स्वतंत्रताओं का ज़िक्र है, उस पर ख़तरा पैदा हो गया है.जबकि ब्रिटेन के विदेश मंत्री डोमिनिक राब का कहना है कि चीन ने अपना वादा तोड़ा है.
“हमने स्पष्ट कर दिया था कि अगर चीन इस रास्ते पर चलता रहा, तो हम ब्रिटेन के प्रवासी नागरिकों के ब्रिटेन में आने के लिए नया रास्ता लेकर आएँगे. हम उनके ब्रिटेन में सीमित समय तक रहने, काम करने का अधिकार देंगे और फिर बाद में वे नागरिकता के लिए आवेदन कर पाएँगे. और अब हम यही कर रहे हैं.” : बोरिस जॉनसन
अमेरिका ने भी उठाये कई कड़े क़दम
अमेरिकी प्रतिनिधि सभा (अमेरिकी सदन ) में पेश हॉन्गकॉन्ग ऑटोनॉमी एक्ट बनाया गया है जो बैंकों पर प्रतिबंध की बात करता है, इसके मुताबिक़ उन चीनी अधिकारियों के साथ बिजनेस करेंगे, जो हॉन्गकॉन्ग में लोकतंत्र समर्थक प्रदर्शनकारियों पर कार्रवाई में शामिल हैं.

इस अवसर पर सदन की स्पीकर नैंसी पेलोसी ने कहा है कि चीन के सुरक्षा क़ानून के जवाब में इस क़ानून की सख़्त आवश्यता है.इस विधेयक से पहले ही अमरीका ने हॉन्गकॉन्ग का विशेष दर्जा समाप्त करने को लेकर पहल शुरू कर दी थी. इनमें रक्षा निर्यात पर रोक और उच्च तकनीक उत्पाद के लिए पहुँच पर रोक शामिल है.

याद रहे अमरीका ने पिछले साल ही मानवाधिकार और लोकतंत्र विधेयक को क़ानून का दर्जा दिया है. इस क़ानून में हॉन्गकॉन्ग के लोकतंत्र समर्थकों के सहयोग की बात कही गई थी.
अन्य देशों का क्या है रुख
हांगकांग पर चीनी पाबंदियों के खिलाफ दुनिया भर में चीन विरोधी माहौल बनने लगा है ,अमरीका और ब्रिटेन के अलावा ऑस्ट्रेलिया ने भी प्रतिक्रिया व्यक्त की है. ऑस्ट्रेलिया का कहना है कि वो हॉन्गकॉन्ग के निवासियों को अपने यहाँ पनाह देने पर विचार कर रहा है. ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन ने कहा है कि इस संबंध में कई प्रस्ताव आए हैं, जिन पर हम जल्द ही कैबिनेट में विचार करेंगे
इस बीच ताइवान कि भी हलकी प्रतिकिर्या इस तरह आई है की एक वरिष्ठ अधिकारी ने अपने नागरिकों से कहा है कि वे हॉन्गकॉन्ग की यात्रा से परहेज़ करें और ज़रूरी न हो तो वहाँ का ट्रांजिट वीज़ा भी न लें.ताइवान मेनलैंड अफ़ेयर्स काउंसिल के उप प्रमुख चिव चुई-चेंग ने कहा है कि हॉन्गकॉन्ग में लागू किया गया नया सुरक्षा क़ानून इतिहास का सबसे ज़्यादा अपमानजनक क़ानून है.हालांकि उन्होंने स्पष्ट किया कि हॉन्गकॉन्ग में उसका वास्तविक वाणिज्य दूतावास चलता रहेगा.
जबकि जापान तो पहले से ही उन देशों में शामिल था, जिन्होंने सबसे पहले इस क़ानून के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाई थी. जापान ने इस क़ानून के लागू किए जाने पर खेद जताया है .जापान के विदेश मंत्री तोशीमित्सु मोटेगी ने कहा है कि ये क़ानून हॉन्गकॉन्ग के ‘एक देश दो सिस्टम’ के सिद्धांत की अनदेखी करता है.

उधर यूरोपीय काउंसिल के अध्यक्ष चार्ल्स माइकल ने इस क़ानून की आलोचना की है और कहा है कि इसका न्यायपालिका की स्वतंत्रता और क़ानून के शासन पर हानिकारक प्रभाव पड़ेगा.कनाडा ने भी हॉन्गकॉन्ग की यात्रा को लेकर नई एडवाइज़री जारी की है. उसका कहना है कि अब हॉन्गकॉन्ग में राष्ट्रीय सुरक्षा क़ानून के चलते मनमर्ज़ी से किसी को भी हिरासत में लिया जा सकता है और फिर उन्हें चीन भेजा जा सकता है.
दूसरी ओर चीन ने अपने ऊपर होने वाली आलोचना को पूरी तरह ख़ारिज करते हुए कहा है कि हॉन्गकॉन्ग का मुद्दा किसी अन्य देश का मामला नहीं है और इसमें चीन फैसले लेने के लिए आज़ाद है .