सिद्दीक़ कप्पन केस: सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार से पूछा “हाथरस की लड़की के लिए न्याय” मांगना कैसे अपराध है?
माननीय Supreme Court के मुताबिक़ नयाय माँगना , न्याय दिलवाना या न्याय की बात करना किसी भी हालत में जुर्म नहीं हो सकता , और जो अमल जुर्म नहीं उसको जुर्म बताना ये बड़ा जुर्म हुआ .
पत्रकार कप्पन और उस जैसे दर्जनों फ़र्ज़ी आरोपियों को ज़मानत के बाद घर वापसी पर मिली वीरानी , सब कुछ बर्बाद हो चुका होता है उनका , तब होती है रिहाई , इसकी कैसे होगी भरपाई ? ज़िम्मेदारी सरकारों की है , फ़र्ज़ी धाराओं के लगाने वाले पुलिस अधिकारीयों को हो सजा , और इंसाफ करने वालों का होना चाहिए राष्ट्रीय स्तर पर अवामी सम्मान .
New Delhi/// TOP Bureau :सुप्रीम कोर्ट ने हाथरस मामले में हिंसा भड़काने की साज़िश रचने के फ़र्ज़ी आरोप में 6 अक्टूबर, 2020 को यूपी पुलिस द्वारा गिरफ्तार पत्रकार सिद्दीक कप्पन (केरल ) को शुक्रवार को ज़मानत दे दी। अदालत ने कप्पन को अगले 6 सप्ताह के लिए दिल्ली में रहने के लिए कहा और उसके बाद उन्हें अपने पैतृक स्थान केरल वापस जाने की अनुमति होगी । साथ ही वह हर हफ्ते स्थानीय पुलिस स्टेशन और अन्य शर्तों के साथ अपनी उपस्थिति दर्ज करेंगे ।फ़िलहाल विदेश यात्रा पर भी अंकुश रहेगा |
भारत के चीफ जस्टिस यू.यू. ललित और जस्टिस एस. रवींद्र भट की पीठ ने इस मामले की सुनवाई की। सुप्रीम कोर्ट जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए उत्तर प्रदेश राज्य के इस तर्क से सहमत नहीं हुआ कि कप्पन के पास से कथित रूप से जब्त किए गए दस्तावेज उत्तेजक प्रकृति के थे। CJI यूयू ललित की अगुवाई वाली पीठ ने देखा कि दस्तावेज हाथरस पीड़ित के लिए न्याय की मांग के लिए विरोध प्रदर्शन करने वाले पर्चे थे। इस पर पीठ ने कहा कि प्रत्येक व्यक्ति को स्वतंत्र अभिव्यक्ति का अधिकार है और यूपी सरकार से पूछा कि क्या एक ऐसे विचार का प्रचार करना जिसकी , पीड़ित या उसके परिवार को आवश्यकता है तो क्या यह इंसाफ दिलाना कानून की नजर में अपराध है?
जस्टिस एस रवींद्र भट ने बताया कि 2012 के दिल्ली बलात्कार-हत्या मामले के बाद, इंडिया गेट पर लोगों द्वारा विरोध प्रदर्शन किया गया, जिसके कारण कानून में बदलाव हुआ। अदालत में यह चर्चा तब शुरू हुई जब उत्तर प्रदेश राज्य की ओर से पेश हुए सीनियर एडवोकेट महेश जेठमलानी ने कप्पन के खिलाफ राज्य को मिली सामग्री को सूचीबद्ध किया। इसमें एक आईडी कार्ड, कथित तौर पर कप्पन को पीएफआई (जिसे जेठमलानी द्वारा एक आतंकवादी अंग के रूप में पेश किया गया) के साथ जोड़ा गया था और कुछ पम्फ्लेट्स , जो कथित रूप से उत्तेजक और संभावित खतरा बताये गए थे ।
CJI ललित ने पूछा कि जो साहित्य कप्पन से मिला उस की प्रकृति (Nature) वास्तव में क्या थी ? कप्पन की ओर से सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल ने बताया कि वे “जस्टिस फॉर हाथरस गर्ल” टाइटल वाले पर्चे थे। पीठ ने फिर से सीनियर एडवोकेट जेठमलानी से पूछा कि साहित्य में कौन सी सामग्री संभावित रूप से खतरनाक मानी गई। इस पर जेठमलानी ने जवाब दिया- ” साहित्य इंगित करता है कि इस तरह का साहित्य या पर्चे दलित समुदाय के बीच बांटने जा रहे थे हाथरस …
UP सरकार के वकील महेश जेठमलानी ने कहा मैं पूरी बात पढ़ूंगा।” जेठमलानी ने तब पैम्फलेट पढ़ा जिसमें कहा गया कि “भारत के हाथरस गांव की एक 19 वर्षीय लड़की पर चार लोगों ने बेरहमी से हमला किया और दिल्ली के सफदरजंग में उसकी मौत हो गई और पुलिस ने भयानक रूप से शव का अंतिम संस्कार कर दिया। वीडियो में दिखाया गया है कि गरीब लड़की की मां रो रही है और अपनी बेटी को घर ले जाने के लिए भीख मांग रही है। पुलिस ने परिवार को उनके घर के अंदर बंद कर दिया और बिना किसी को बताए शव को जला दिया” (पम्फलेट से )
परचा पढ़ने के बाद UP सरकार के वकील ने आरोप लगाया कि इसका मकसद दलितों की भावनाओं को भड़काना था । यह काम दलित खुद नहीं कर रहे हैं बल्कि पीएफआई कर रहा है… जेठमलानी ने यह भी बताया की पर्चे में यह बताया गया है कि अधिकारियों को ईमेल कैसे भेजें, सोशल मीडिया पर अभियान कैसे चलाएं ,इसे विभिन्न प्लेटफार्मों पर कैसे फैलाएं इत्यादि ।
जेठमलानी के इन तर्कों के बाद CJI की अध्यक्षता वाली पीठ इस तर्क से सहमत नहीं थी और कहा कि सभी को खुद को व्यक्त करने की स्वतंत्रता है।
सीजेआई ललित ने कहा कि- ” देखिए हर व्यक्ति को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार है और इसलिए वह इस विचार का प्रचार करने की कोशिश कर रहा है कि यह पीड़ित है जिसे न्याय की आवश्यकता है और इसलिए हम एक आम आवाज उठाएं। क्या यह कानून की नजर में अपराध जैसा कुछ है?
” जस्टिस भट ने 2012 में दिल्ली में हुए निर्भया विरोध प्रदर्शन का जिक्र करते हुए इसे और जोड़ा। उन्होंने कहा- ” इसी तरह का विरोध 2012 में इंडिया गेट पर हुआ था, आपको याद रखना चाहिए। उसके बाद, कानून में बदलाव हुआ था। कभी-कभी ये विरोध इस बात को उजागर करने के लिए आवश्यक होते हैं कि कहीं न कहीं कमी है।
जस्टिस भट ने कहा अब तक आपने कुछ भी नहीं दिखाया है जो उत्तेजक हो।इसपर ” जेठमलानी ने बताया कि उस डाक्यूमेंट्स में निर्देश थे कि दंगों के दौरान खुद को कैसे बचाया जाए, पुलिस द्वारा आंसू गैस के गोले से कैसे बचा जाए आदि।इस बात पर तुरंत सिब्बल ने जवाब दिया और कहा कि ” वो दस्तावेज भारत से संबंधित नहीं थे बल्कि , ” अमेरिका की घटना “ब्लैक लाइव्स मैटर” से संबंधित थे । जहाँ फीनिक्स और सैन डिएगो आदि के लिए विरोध प्रदर्शन किये गए थे। ब्लैक लाइव्स मैटर एक तरह का आन्दोलन है जोकि आतंकवाद के खिलाफ शुरू किया गया है. ये आन्दोलन अमेरिका में काले रंग के अफ़्रीकन अमेरिकी के साथ हो रही हिंसा के खिलाफ शुरू हुआ था
सिब्बल ने आगे कहा कि पूरा मामला ” अभियोजन नहीं, बल्कि उत्पीड़न ” था। इसी बीच जब जेठमलानी ने Documents का एक भाग पढ़ा “यदि आप काले लोगों को देखते हैं, तो उनके साथ दौड़ें”,इस पर सीजेआई ललित ने टिप्पणी की, ” यह तो कहीं विदेशी सा प्रतीत होता है”। सीजेआई ने यह भी पूछा कि क्या दस्तावेज स्थानीय प्रसार के लिए अंग्रेजी में होना चाहिए था।
अदालत ने अंततः केरल के पत्रकार सिद्दीकी कप्पन को जमानत दे दी, जो हाथरस षडयंत्र मामले के सिलसिले में 6 अक्टूबर, 2020 से यूपी पुलिस की हिरासत में थे । अदालत ने आदेश में स्पष्ट किया कि उसने जांच की प्रगति और अभियोजन द्वारा एकत्र की गई सामग्री पर टिप्पणी करने से परहेज किया है क्योंकि मामला आरोप तय होने के चरण में है।
केरल के बेगुनाह पत्रकार सिद्दीके कप्पन को लगभग 2 वर्ष के बाद ज़मानत भले मिल गयी है जो देश के न्यायप्रिय समाज के लिए एक अच्छी खबर है किन्तु कप्पन जैसे सैकड़ों cases में जहाँ 20 -20 साल गुजरने के बाद बेगुनाही साबित होती है , जिसमें अदालतों और सरकारी संस्थाओं का वक़्त का वक़्त बर्बाद होता है ,और इस सब कार्रवाई में जनता का पैसा बर्बाद होता है . सिर्फ इस वजह से कि पुलिस द्वारा Ground Reporting Biased होती है या पुलिस पर सियासी दबाव होता है |
आपकी इस पूरी Report पर क्या Comment है हमें ज़रूर भेजें , और आप कप्पन की इस ज़मानत पर क्या राय रखते हैं ?