
दुनिया आगे बढ़ रही है लेकिन हम थोड़ा पीछे चलते हैं , ज़्यादा नहीं बस 2015 बिहार विधान सभा चुनाव पर चलते हैं . मोदी जी की रैली थी ,मैं और मेरे साथ 6 चुनाव विशेषज्ञों की टीम थी , मोदी जी अपने निराले अंदाज़ में जनता से उस रैली में पूछ रहे थे ,बताओ भाइयो , बहनो… बिहार को कितने का पैकेज दूँ ? 70 हज़ार करोड़ ? 80 हज़ार करोड़ ? 90 हज़ार करोड़ ? उसके बाद बोले चलो मैं सवा लाख करोड़ का पैकेज बिहार को देता हूँ , बस फिर क्या था पूरा रैली मैदान मोदीमय होगया ,और बिहार के विकास की बोली ख़त्म …. stop !
बिहार की जनता आज तक उस सवा लाख करोड़ का इंतज़ार कर रही है .वो वादा भी 2014 के चुनावी वादों की तरह धरातल से ग़ायब है जिसमें हर साल 2 करोड़ बेरोज़गारों को रोज़गार , 15 लाख हर एक नागरिक के खाते में आजायेंगे, वग़ैरा …..अब देश मुंगेरी लाल के हसीन सपनो से नहीं चलता…
मुंबई के RTI कार्यकर्ता अनिल गलगली ने दिसंबर 2016 में केंद्रीय वित्त मंत्रालय से PM मोदी द्वारा विभिन्न राज्यों को दिए गए वित्तीय सहायता या डेवलपमेंट पैकेज के आश्वासन के बारे में जानकारी मांगी थी.
वित्त मंत्रालय के उप निदेशक आनंद परमार ने इस RTI का सीधा उत्तर देने की बजाए गोलमोल जवाब देकर स्थिति स्पष्ट करने की कोशिश की. आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली ने कहा, “18 अगस्त 2015 को प्रधानमंत्री ने बिहार के लिए 1,25,000 करोड़ रुपये के विशेष पैकेज की घोषणा की थी. लेकिन, RTI के उत्तर में कहा गया है कि ‘परियोजनाओं/कार्यों को चरणबद्ध तरीके से पूरा किया जाएगा’, हालांकि आज तक कोई पैसा जारी नहीं किया गया है.”
बस 5 वर्ष गुज़रे हैं ,अब बिहारियों को फ्री कोरोना Vaccine की प्रधानमंत्री की चुनावी घोषणा , मानो Corona चुनावी मुद्दा बांके आया हो .यह फ्री Vaccine की घोषणा उलटी पड़ी या सीधी चुनावी नतीजे बताएँगे , वैसे कुछ नेताओं की यह कला होती है की वो बीमारी का टीका हो या ज़ख्म पर नमक बड़े सलीक़े से लगाते हैं . और हमारे प्रधान म्नत्री की बात ही कुछ और है ,इसके लिए विपक्ष भी उनकी तारीफ करता है .वैसे भी राष्ट्रवाद और धार्मिक आस्था की गोली हमारे देश और पड़ोस के देश की जनता के मुंह में काफी लम्बी चलती है .चूसे जाओ ख़त्म ही नहीं होती , वैसे कुछ लोग ज़बान पे रखते ही थूक देते हैं .
दामन पे कोई छींट न ख़ंजर पे कोई दाग़
तुम क़त्ल करो हो कि करामात करो हो
2015 बिहार विधान सभा चुनाव के दौरान हमलोग 200 से ज़्यादा गाँवों में जनता के views लेने पहुंचे थे , अक्सर नितीश के विकास कार्यों की बात जनता कर रही थी ,और लालू ,कांग्रेस तथा नितीश के महा गठबंधन के पक्ष में अवाम का रुझान दिख रहा था , गॉंव गांव हमारे सफर के दौरान बिजली , सड़क इत्यादि अक्सर ठीक ठाक दिख रही थीं .यानी विकास दिख रहा था , और उन दिनों नितीश की छवि सेक्युलर नेता की भी थी , इसलिए नतीजा महागठबंधन के पक्ष में गया , नितीश दूसरी बार CM बने .यह अलग बात है बिहार आज भी अपनी ग़रीबी के लिए ही प्रसिद्ध है .भले विधान सभा और लोक सभा चुनावों में बिहार की हालत को सुधारने की चर्चा होती रहे या Packages का ऐलान .
लेकिन 2020 बिहार के विधान सभा चुनाव की ताज़ा राजनीती का जायज़ा लेने से पता चला कि अकाली दल , शिवसेना के बाद JDU और LJP को BJP अलग अलग करके अपनी ताक़त को मज़बूत करना चाहती है , इस बार चुनाव रैलियों में जहाँ एक ओर चिराग पासवान मोदी के गुणगान करते नज़र आरहे हैं वहीँ नरेंद्र मोदी भी बिहार के दिवंगत नेता रामविलास पासवान को बतौर ए ख़ास याद करते दिखाई दिए , जिससे BJP की राजनितिक सूझबूझ का बखूबी अंदाज़ा लगाया जासकता है .
एक तरफ भाजपा , NDA के मुख्यम्नत्री कैंडिडेट की हैसियत से नितीश के नाम का भले ऐलान कर चुके हों किन्तु अंदर की बात यह है कि बिहार के बेगूसराय से आने वाले BJP के हिन्दू कट्टरवादी नेता गिरिराज सिंह को मुख्यमंत्री बनाये जाने की बात BJP संगठन को अंदरखाने बताई जा रही है , यही कहलाती है आज की राजनीती जिसमें सच कुछ नहीं बस झूट ही सच है , और वादों में जाता ही किया है वो करते चलो .
अगर जनता का एक तब्क़ा सवाल पूछे तो उसपर राष्ट्रद्रोह का मुक़द्दमा लगाओ और बंद करदो , गिरिराज सिंह वर्तमान में केंद्र में मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय का कलमदान रखते हैं ..सच यह है कि , जनता को अगर ईमानदार विपक्ष मिल जाए तो सत्ताधारी को धराशाही बनाने में ज़्यादा समय नहीं लगता , मगर विडंबना यह है की यहाँ चेहरे बदलते हैं चरित्र नहीं ……यहाँ ईमानदारी की परिभाषा भी झूट के अलफ़ाज़ में लिपटी होती है .
बिहार की जनता corona और lockdown के बाद बेरोज़गारी की मार झेलकर सैकड़ों मील के लम्बे सफर करके भूके प्यासे भले अपने वतन बिहार वापस लौट गयी है , एक आंकड़े के मुताबिक़ बिहार के 12 लाख से ज़्यादा मज़दूर , कारीगर और किसान सड़क पर आ गए हैं किन्तु नेताओं के लच्छेदार भाषण और झूठे वादे एक बार फिर उनके वोट के अधिकार को अपनी जागीर समझ कर लूट लेने के लिए बेचैन नज़र आते हैं .नजीजा चुनावों का जो भी हो किन्तु वहां की अवाम को वही भुकमरी , ग़रीबी , बेबसी , और बेरोज़गारी ही हाथ लगने वाली है .
आज भी हो जो इब्राहीम सा इमां पैदा
आग कर सकती है अंदाज़ ए गुलिस्तां पैदा
ये गीत भी पढ़ लें शायद कुछ यादें ताज़ा होजाएंगी
कसमें वादे प्यार वफ़ा सब
बातें हैं बातों का क्या
कोई किसी का नहीं ये झूठे
नाते हैं नातों का क्या
कसमें वादे प्यार वफ़ा…
होगा मसीहा सामने तेरे
फिर भी न तू बच पायेगा
तेर अपना खून ही आखिर
तुझको आग लगायेगा
आसमान में उड़ने वाले
मिट्टी में मिल जायेगा
कसमें वादे प्यार वफ़ा…
सुख में तेरे साथ चलेंगे
दुख में सब मुख मोड़ेंगे
दुनिया वाले तेरे बनकर
तेरा ही दिल तोड़ेंगे
देते हैं भगवान को धोखा
इन्सां को क्या छोड़ेंगे
कसमें वादे प्यार वफ़ा…
काम अगर ये हिन्दू का है
मंदिर किसने लूटा है
मुस्लिम का है काम अगर ये
खुदा का घर क्यूँ टूटा है
जिस मज़हब में जायज़ है ये
वो मज़हब तो झूठा है
कसमें वादे प्यार वफ़ा…