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क्या बड़े बड़े शहरों में ये सब होता रहना चाहिए ?

क्या बड़े बड़े शहरों में ये सब होता रहना चाहिए ?

Ali Aadil Khan

Editor’s Desk

अपनी रहनुमाई पर अब ग़ुरूर मत करना ………..

फ़ुज़ूल आप पे इलज़ाम क़त्ल है साहिब |
जो मर चूका है दोबारा मर नहीं सकता ||

हमारी क़ौम तो मुर्दा है एक ज़माने से |
मरे हुए को कोई क़त्ल कर नहीं सकता || Manza Bhopali 

देश में बढ़ते अपराध , भ्रष्टाचार , नफरत और भय के माहौल में आये दिन सैकड़ों ऐसी घटनाएं घटित हो जाती हैं जो वास्तव में नहीं होनी चाहिए थीं . जो देश कि सरकारों के लिए Concern का विषय होना चाहिए थीं .लेकिन बड़े देश में ऐसी घटनाएं होती रहती हैं .

यह कहकर सभ्य समाज को Demoralise कर दिया जाने का काम लगातार होता रहता है . Law Enforcing Agencies के अधिकारीयों और कर्मचारियों कि तरफ से ग़ैर ज़िम्मेदार और असंवैधानिक बातें हों आम बात हो गया है . गंभीर से गंभीर घटना और जघन्य अपराध सिर्फ़ एक संचार और फिर TV Debate का का मुद्दा बनकर रह गया है |जो इंतहाई चिंता का विषय है .

गुजरात पुलिस का तालिबानीकरण , यह Tittle हमारा नहीं NDTV के एक प्रोग्राम में लगाया गया था ,हालाँकि अगर आप तालिबानियों से यह पूछेंगे कि आपको भारत में ला क़ानूनियत ,ज़ुल्म और बर्बरियत के मौके पर एक नज़ीर के तौर पर पेश किया जाता है |

तो यह उनको एक गाली जैसा लगेगा क्योंकि तालिबानियों का मानना है कि उनकी लड़ाई ज़ुल्म और ना इंसाफ़ी ग़ैर बराबरी और कोलोनियल सिस्टम के खिलाफ है और इन्साफ व् इस्लामी शरिया को लागू करने के लिए है .जबकि दुनिया के साथ भारत में भी तालिबानीकरण का मतलब बर्बरता और क्रूरता माना जाता है . और इसको एक गाली समझा जाता है .

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A Gujrat Police Officer in civil dress beating a Youth in Gujrat

 

रामनवमी के शोभायात्रा और दीगर हिन्दू धार्मिक जुलूसों पर हमले की घटनाएं सुनते ही रहते हैं , अब गरबा ,दशहरा और दुर्गा पूजा में भी हमलों और पथराव के समाचार आने लगे हैं .

गुजरात के खेड़ा जिले के उंधेला गांव में गरबा में मुस्लिम युवकों के साथ मार पीट और फिर सिविल कपड़ों में गुजरात पुलिस द्वारा खम्बे से बांधकर पहले कोड़े बरसाना और फिर सरे आम लाठियों से पीटना , दरअसल यह किसी तै शुदा मुजरिम को किसी इस्लामिक मुल्क में दी जाने वाली सजा के रूप में ही देखा जा रहा है .

हालाँकि निर्भया के बाद से हमारे दश में सऊदी के क़ानून यानी इस्लामिक क़ानून के लागू करने की मांग भारत में भी होती रही है . और इस खबर को कई गुटों ने गंभीरता से भी लिया है कि आखिर क्या वजह है भारत में भी इस्लामिक क़ानून के नाफ़िज़ करने की बात हुई .

दरअसल लोकतान्त्रिक देशों में एक बड़ी खराबी यह आगई है की अब हर घटना को सियासी रंग देने के लिए सभी राजनितिक पार्टियां उग्र दिखाई देने लगी हैं .

जबकि कुछ सियासी पार्टियां कई घटनाएं को खुद अंजाम दिलाती हैं . बल्कि कोसनि घटना किस ग्रुप से अंजाम दिलानी है यह भी तय कर दिया जाता है . और विडंबना यह है की अपराधियों को सरकारी संरक्षण रहता है |

जब सरकारें अलगाववादी घटनाओं की स्पांसर हो जाएँ तो अब आप वहां इन्साफ की उम्मीद भी कैसे कर सकते हैं . हालांकि यह भी सच है कई ईमानदार और अहले ज़मीर अधिकारी अपनी ड्यूटी को इन्साफ से अंजाम देने को अपना फ़र्ज़ समझते हैं और अपराधियों को सजा होती और पीड़ितों को इन्साफ भी मिलता है .

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लेकिन इसके लिए अधिकारीयों को कई तरह के जोखिम उठाने पड़ते हैं . कभी कभी जान से भी हाथ धोना पड़ जाता है |

आज जब देश में हर तरफ़ ख़ौफ़ और नफ़रत का माहौल है | देश का अल्पसंख्यक और SC , ST ,OBC तथा मूलनिवासी समाज अपने को असुरक्षित , उपेक्षित (Neglected ) और पीड़ित महसूस कर रहा हो .

ऐसे में अल्पसंख्यक समाज की ही तरफ से बहुसंख्यकों पर हमले किये जाने और पथराव किये जाने जैसी कोई खबर पहली ही नज़र में Fabricated समझी जाती है .

कुल मिलकर किसी भी देश या समाज का विकास उसमे रहने वाले सबसे निचले पायदान पर रहने वाले व्यक्ति , वर्ग या समुदाय से ही लगाया जाएगा . और जिस समाज में कमज़ोर , पिछड़ों और वंचित वर्ग को नज़र अंदाज़ किया जाएगा वो समाज कभी विकसित हो ही नहीं सकता .

हालाँकि यह भी सच्चाई है की अल्पसंख्यक और दलित समाज का बड़ा तब्क़ा निरक्षर और अनपढ़ होने की वजह से देश की मैन स्ट्रीम में नहीं आ पा रहा है और यह भी सच्चाई है की वो इस सम्बन्ध में संजीदा नहीं है , अपनी हालत को सुधारने के लिए फिक्रमंद नहीं है .

बस ज़िंदगियाँ गुज़र रही हैं वो चाहे जैसे भी हो .देश के 60 % लोगों को नागरिक अधिकारों और कर्तव्यों का पता ही नहीं है . और यह भी विडंबना है कि देश कि बड़ी राजनितिक पार्टियों को फिलहाल यही सूट कर रहा है .

 

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