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क्या अब मंदिरों में भी पढ़ी जायेगी नमाज़ ?

क्या अब मंदिरों में भी पढ़ी जायेगी नमाज़ ?

Ali Aadil Khan 
Edtor’s Desk 

हज़रत निज़ामुद्दीन रह ० की दरगाह में मनाई गयी दीवाली , क्या अब मंदिरों में भी पढ़ी जायेगी नमाज़ ?

 

एक दुसरे के त्योहारों पर मज़हबी रहनुमाओं के ज़रिये मुबारकबादी का आदान प्रदान एकजुट समाज की मज़बूती की अलामत है ,,,,,मगर ……….

हज़रत निज़ामुद्दीन रहमतुल्लाह अलैह की दरगाह में RSS की संस्था मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के मुख्य संरक्षक भाई इंद्रेश कुमार ने अपने साथियों के साथ दीपावली के अवसर पर दिए जलाये | दरगाह पर दीए जलाने के बाद RSS नेता ने कहा कि किसी को भी धर्म परिवर्तन और हिंसा करने के लिए मजबूर नहीं किया जाना चाहिए। 

मुझे याद है इस मौके पर भाई इंद्रेश ने 2021 में कहा था सूफिज़्म और मुस्लिम राष्ट्रीय मंच को आपस में जोड़ना चाहिए |उन्होंने कहा था देश के अंदर समृद्धि , तालीम , रोज़गार और स्वास्थ्य  को बढ़ावा दिया जाना चाहिए | इंद्रेश ने कहा था देश को प्रदूषण , ग़रीबी और भुखमरी से मुक्त करना हमारा लक्ष्य होना चाहिए . देश का मुसलमान इन सभी मुद्दों पर आपके साथ आ सकता है भाई इंद्रेश .

किन्तु यहाँ कथनी और करनी में ज़मीन आसमान का फ़र्क़ है .उदाहरण के लिए बता दें | देश में तालीमी स्तर गिरा है . विक्किपीडिया के अनुसार भारत में संसार की सबसे अधिक अनपढ़ जनसंख्या निवास करती है।और यह भी सही है इनमें अधिक संख्या मुसलमानों की है |जिसके लिए वो खुद ज़िम्मेदार हैं | सिवाए हिजाब की घटना के , जिसके बाद 200 से अधिक बच्चियां इम्तहान में नहीं बैठीं थीं | स्वास्थ्य के मैदान में हम पिछड़े हुए हैं .भारत 195 देशों में से 66 वें स्थान पर है, जिसका समग्र सूचकांक स्कोर 42.8 है | 2020 में 45 % मौतें दवा या इलाज न मिलने के कारण हुई थीं जो अबतक का Highest Rate है |

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बेरोज़गारी का स्तर चरम पर है | ग्लोबल हंगर Index में हम 107 वे पायदान पर आ गिरे हैं , यानी पाकिस्तान , बांग्लादेश , श्रीलंका , अफ्रीका के सूडान , रवांडा , इथोपिया जैसे देश भी हंगर इंडेक्स में भारत से बेहतर हालत में हैं .रहा सवाल सूफिज़्म और मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के बीच गठजोड़ का तो इस बारे में हमारे पास कोई समाचार नहीं है |इन दोनों के बीच क्या गठजोड़ हुआ , हुआ भी कि नहीं हुआ |

ज़ाहिर है मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के संरक्षक का निज़ामुद्दीन औलिया की दरगाह पहुंचकर दीये जलाने का यह अमल लोगों को बज़ाहिर तो गंगा जमुनी तहज़ीब का ही प्रतीक नज़र आता होगा | और इस जैसे कार्यक्रम किसी भी लोकतांत्रिक देश के लिए बेहतर हो सकते हैं . इंद्रेश कुमार ने कहा कि हमें कट्टरता, द्वेष, नफरत, दंगे या युद्ध नहीं चाहिए। इस देश के लोग शांति, सद्भाव और भाईचारा चाहते हैं।

लेकिन यहाँ देश के शुभचिंतकों के ज़ेहन में यह सवाल भी उठते हैं कि मज़ारों में दीये जलाने और मदरसों में हाज़िरी देने वाले RSS के संचालक और संरक्षक अपने ही दूसरी शाखाओं के सर फिरे बेरोज़गार और निरक्षर उन युवकों को आज़ाद छोड़ देते हैं . जो मज़ारों में तोड़ फोड़ करते हैं , नमाज़ के समय मस्जिदों के सामने DJ पर रक़्स करते हैं , मीनारों पर भगवा झंडा फेराने जैसे जुर्म करते रहते हैं |

मवेशियों की ख़रीदो फ़रोख़्त करने वाले विशेष समुदाय के लोगों को आये दिन क्यों परेशान करते रहते हैं बजरंगदल जैसी संस्था के युवक ? गौ तस्करी का बहाना करके उनके नकदी और मोबाइल छीन लिए जाते हैं . यहाँ तक के इन व्यापारियों की जान ले ली जाती हैं . इनको क्यों खुल्ला छोड़ देते हैं आप ? क्या इससे एकता और अखंडता आएगी ? क्या इसी को गंगा जमनी तहज़ीब कहते हैं आप ?

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मज़हबी तौर से एक दुसरे की ख़ुशी और ग़मी में शरीक होना यक़ीनन देश को मज़बूत करने में मदद करेगा . मगर एक समुदाय दुसरे समुदाय के धार्मिक स्थलों या संस्थानों पर भगवा झंडे लगाकर या उनको नुकसान पहुंचकर कैसे एकता और अखंडता को मज़बूत कर सकता है ? दीवाली पर मज़ारों में दीये जलाये अच्छी बात है अगर शबरात पर मंदिरों और मठों में चराग़ रोशन कराये जाएँ तो और भी अच्छी बात होगी .

इसी तरह मंदिरों और मठों के पुजारी और उनकी प्रबंधक कमेटियां भी मुसलमानों को इबादत करने की इजाज़त दें . तब न देश में आएगी एकता और अखंडता | हमारा भारत समृर्द्ध और विकसित और शक्तिशाली उसी वक़्त होगा जब दोनों समुदायों के रहनुमा दिल खोलकर एक दुसरे के साथ शामिल हों .

मगर यहाँ तो मामला ही उल्टा है कि अगर ख़ास धर्म का ग़रीब बच्चा मंदिर में जाकर पानी पी ले तो उसको मार मार कर अधमरा कर दिया जाता है .किसी ख़ास मज़हब के कुछ युवक अगर दुर्गा पंडाल में मेला देखने चले जाएँ तो उनपर लाठियां भांजी जाएँ . एक सांसद ख़ास मज़हब का बहिष्कार करने के लिए जनता को उकसाये , आप और आपकी पार्टी की सरकार खामोश तमाशाई बानी रहे | यह कैसी गंगा जमुनी तहज़ीब और कैसी एकता अखंडता है इंद्रेश भाई ? हमारी नज़र में तो यह धोखा है देश और अल्पसंख्यकों के साथ .

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