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महा पंचायतों में जाटों और मुस्लिमों की एकता के बाद नफरत की सियासत

महा पंचायतों में जाटों और मुस्लिमों की एकता के बाद नफरत की सियासत

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बनते सियासी नए समीकरण के संकेत किसको होगा लाभ , और कौन रचेगा साज़िश

किसान आंदोलन से कई नए शाहकार निकले हैं , और कुछ सियासी समीकरण बने हैं .भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय अध्यक्ष नरेश टिकैत ने कहा कि ,”2013 में हमसे ग़लती हुई थी.जिसकी वजह से मुसलमानों से रिश्ते खराब हुए, और हमें उसका ख़मयाज़ा भुगतना पड़ा ,उससे हमारा बहुत नुकसान हुआ.अब हमारा प्रयास है कि ये दूरियां नज़दीकियों में बदली जायें .हमारा यह प्रयास सफल हो रहा है.”

कृषि क़ानूनों से पैदा हुए इस आंदोलन ने देश की सामाजिक , राजनितिक तथा कूटनीतिक परिस्थितियों को भी किसी हद तक बदला है . लेकिन इस सब में जो सबसे अच्छी बात रही वो यह की देश में सांप्रदायिक सौहार्द का माहौल बना है . लेकिन यह देश की नफरत और डिवाइड एंड रूल वाली विचार धरा को किसी सूरत भी बर्दाश्त नहीं .

और ज़ाहिर है ऐसा क्यों हो . जिस पार्टी या विचार धारा का मक़सद ही नफरत और साम्प्रदायिकता को बढ़ावा देकर देश में कट्टरवाद का राज स्थापित करना हो तो भला प्यार और सद्भाव का माहौल उसे क्यों भायेगा . और इसके लिए वो भी अपने पूरे हर्बे सत्ते उपयोग करेगी .

आपको याद होगा यूपी में 2013 के मुज़फ्फरनगर के सांप्रदायिक दंगों के बाद पश्चिमी यूपी का माहौल खराब हुआ था जिसके चलते प्रदेश की पुरानी जाट और किसान हितेषी पार्टी लोक दल को भारी नुकसान हुआ था .उस वक़्त भले जाट leadership इसको नहीं समझ पाई किन्तु रफ्ता रफ्ता लोकदल की सियासी साख घटने से उसको अक़्ल आई और आज किसान पंचायतों में हिन्दू मुस्लिम एकता से जाट नेताओं को भी रहत मिल रही है किन्तु वहीँ दूसरी ओर देश के सांप्रदायिक सोहाद्र के दुश्मनो के सीने पर सांप भी लौटने लगा है .

कई किसान पंचायतों में “हर हर महादेव ” और ” अल्लाह-ओ-अकबर ” के नारे भी लग रहे हैं.इससे दंगों से पैदा हुई दूरियां भी कम हो रही हैं.2013 में हुए मुज़फ्फरनगर दंगों ने जाटों और मुसलमानों के बीच बड़ी साम्प्रदायिक खाई पैदा की थी.लेकिन सात साल बाद फिर पश्चिमी यूपी में जाटों और मुसलमानों का साथ आना क्या किसी नए राजनीतिक समीकरण का संकेत है? हाँ है किन्तु 100 वर्ष पुरानी संस्था इसको जब चाहे सांप्रदायिक बयानों के ज़रिये नफरत में बदल सारे अरमानो पर पानी फेर सकती है .

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भारतीय किसान यूनियन की पंचायतों में “हर हर महादेव” और “अल्लाह-ओ-अकबर” के नारे चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत के वक़्त से लगते रहे हैं.लेकिन अब मुज़फ्फरनगर दंगों के सात साल बाद फिर सुनाई पड़ने लगे हैं.कुछ पंचायतों में तो आधे किसान मुसलमान हैं.

भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय अध्यक्ष नरेश टिकैत कहते हैं कि ,”पश्चिमी यू पी में जाट और मुसलमान ग्रामीण अर्थव्यवस्था का अटूट हिस्सा रहे हैं.यहां मुस्लिम आबादी भी काफी है.इनमें मुसलमानों के अलावा मुले जाट भी शामिल हैं.यूपी में लगभग 21% मुसलमान हैं जबकि पश्चिमी यू पी में इनकी तादाद 28 फीसद है .पश्चिमी यू पी के दस जिलों में तो उनकी आबादी 35 से 50 फीसद फीसद तक है .रामपुर में 52 .65 फीसद,मुरादाबाद में 49.12 फीसद,संभाल में 48 फीसद,बिजनोर में 46.03 फीसद,सहारनपुर में 44.95 फीसद,अमरोहा में 41 फीसद,हापुड़ में 39.14 फीसद और शामली में लगभग 39 फीसदी मुस्लिम हैं.ऐसे में इस पूरी बेल्ट में मुस्लिम वोट बड़ी अहमियत है जिसको हासिल करने में सभी पार्टियों की दिलचस्पी रहती है , और एक पार्टी मुस्लिम वोट को विभाजित करने में रूचि रखती है .

एक और ख़ास बात यह है कि पश्चिमी यूपी का मुसलमान, पूर्वी यूपी के मुसलमानों की तुलना में ज़्यादा सम्पन्न हैं.यहाँ मुस्लिम बड़े किसान हैं साथ ही सहारनपुर में फर्नीचर के कारोबार और मुरादाबाद में पीतल के कारोबार में मुस्लमान बड़े level पर शामिल हैं. पश्चिमी यूपी में पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह ने “मजगर” यानि मुस्लिम, अहीर, जाट, गुर्जर और राजपूत को जोड़ने का नारा दिया था. इसका उन्हें सियासी लाभ मिला.लेकिन 1992 में बाबरी मस्जिद टूटने पर मुस्लिम-जाट रिश्तों में दरार आई .लेकिन कृषि अर्थव्यवस्था पर दोनों की निर्भरता की वजह से वक़्त के साथ दूरियां कम हुईं.लेकिन 2013 में मुज़फ्फरनगर सांप्रदायिक दंगों ने इस पूरे इलाके में जाट-मुस्लिम रिश्ते तोड़ दिए थे , जिसको वापस बनाने में आज जाट मुस्लिम बेस्ड पार्टी लोकदल पूरी दिलचस्पी है . और इसका पूरा सियासी लाभ उसको मिलने का इमकान भी है .

हिन्दू मुस्लिम एकता के बारे में भारतीय किसान यूनियन के एक नेता हरनाम सिंह कहते हैं,”दस साल पहले अगर आप हमारे क्षेत्र में आते तो पहचान नहीं पाते कि आपके लिए दूध , गुड़ या चाय किसके घर से आई है .लेकिन राजनीतिक लाभ के लिए बीजेपी और उसके समर्थक दलों ने माहौल को बहुत खराब किया है.” यह सच है कि मुज़फ्फरनगर दंगों के दौरान अफवाहों ने आग में घी का काम किया.हरनाम सिंह कहते हैं ,”मुज़फ्फरनगर दंगों से हुए ध्रुवीकरण का सबसे बड़ा फायदा बीजेपी को हुआ. २०१७ विधानसभा चुनाव के नतीजे इसके गवाह हैं.पश्चिमी यूपी के 17 जिलों की 93 विधानसभा सीटों में 2012 में बीजेपी सिर्फ 14 सीटें जीती थी, लेकिन 2017 में वो 73 सीटें जीत गई.सिर्फ नफरत की राजनीती से , यह उसको सूट करती है . मुज़फ्फरनगर की शाहपुर बस्ती में क़रीब पांच हज़ार दंगा पीड़ित बसते हैं. यहां परचून की दुकान चलाने वाले साहिल के कुटबा गांव में दंगों में जो आठ लोग मारे गए उनमें 5 उनके घर वाले थे.लेकिन साहिल कहते है,”ऐसे में किसानों की नाराजगी और मुसलमानों के जाटों के क़रीब आने से बीजेपी के माथे पर बल पड़ना स्वाभाविक है.धुर्वीकरण और साम्प्रदायिकता का यह ज़हरीला नाग देश के अम्न और विकास को डसने में लगातार अपना काम कर रहा है और सम्भावना इस बात की है कि यह नफरत और साम्प्रदायिकता के ज़हर से भरा नाग एक रोज़ पालने वालों को भी डस जाएगा .

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मुज़फ्फरनगर से सांसद और मंत्री संजीव बालियान किसानों को मनाने के काम पे लगाए गए हैं , या हिन्दू मुस्लमान को बांटने के काम पर यह आपको जल्द पता चल जाएगा ,और शायद चल ही गया होगा .उनको अपने ही संसदीय क्षेत्र के कई इलाक़ों में किसानों के भारी विरोध का सामना करना पड़ा है.जिससे क्षेत्र में दो तरह की सोच बननी शुरू हो गयी है और अफवाहों का बाजार भी गर्म होगया है , अब देखना यह है कि जाटों और मुसलमानों के बीच सोहाद्र और कम होती दूरियां क्या यहां के नए सियासी और आर्थिक समीकरण की ज़मीन को बनाएगा या चुनाव तक आते आते कोई नया साम्प्रदायिक मुद्दा और नफरत के माहिर नेताओं के भड़काऊ ब्यान और साज़िश सांप्रदायिक मेल जोल को फिर चकना चूर कर देगा ?? अपनी राये कमेंट box में ज़रूर डालें .

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