3 राज्यों में खिला कमल , एक पर लगी पंजे की मोहर
दोनों ही दलों के सामने सबसे बड़ी चुनौती बागियों से पार पाना भी था . टिकट वितरण के बाद, जहां कांग्रेस ने बगावत कर चुनाव लड़ने वाले 39 नेताओं को पार्टी से निष्कासित किया था, वहीं भाजपा में ऐसे बागियों की संख्या 35 रही
मध्य प्रदेश की कुल 230 विधानसभा सीटों में से भाजपा खबर बनाये जाने तक 101 पर जीत चुकी है . 63 सीटों पर आगे है. वहीं कांग्रेस ने 31 सीटें जीती हैं और 34 पर बढ़त बनाए हुए है. एक सीट पर भारत आदिवासी पार्टी आगे है.
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अपने विधानसभा क्षेत्र बुदनी और केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर दिमनी सीट से जीत चुके हैं. इंदौर-1 सीट से पार्टी के महासचिव कैलाश विजयवर्गीय जीत के करीब हैं.
बता दें प्रदेश में 77.15 फीसदी मतदान दर्ज किया गया था, जो कि 2018 विधानसभा चुनावों की अपेक्षा करीब 2 फीसदी अधिक रहा .
जैसा की ज्ञात है वर्तमान में मध्य प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की सरकार है और उसके पास 127 विधायक और कांग्रेस के 96 विधायक थे .2018 में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के दो, समाजवादी पार्टी (सपा) के एक और 4 निर्दलीय उम्मीदवारों ने भी जीत दर्ज की थी.
राज्य में मुख्य मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के ही बीच रहा , जबकि इन दोनों ही दलों के कई बागी बसपा, सपा और आम आदमी पार्टी के टिकट पर मैदान में थे . कई बड़े चेहरे निर्दलीय भी मैदान में उतरे और भाजपा एवं कांग्रेस दोनों के लिए ही सिर दर्द का कारण बन सकते थे . लेकिन इसका वास्तविक असर फ़िलहाल कांग्रेस पर दिखाई दिया .
बता दें भाजपा ने इस बार अपना मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित नहीं किया था, जबकि कांग्रेस से प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ ही चेहरा रहे . भाजपा ने चुनाव सभी राज्यों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे पर लड़ा था, वहीं पार्टी ने 3 केंद्रीय मंत्रियों समेत 7 सांसदों को भी चुनावी मैदान में उतारा था .
राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय समेत केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और प्रहलाद पटेल के नाम उम्मीदवारों की सूची में होने के चलते मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के मुख्यमंत्री चेहरे को लेकर चुनाव प्रचार के दौरान कई प्रकार के कयास का दौर चला .
पार्टी ने ज्योतिरादित्य सिंधिया के गुट के भी 16 नेताओं को टिकट दिया है. पार्टी को महिला मतदाताओं से अधिक उम्मीद है, जिनको ध्यान में रखकर चुनाव से ऐन पहले ‘लाडली बहना योजना’ शुरू की गई थी. पिछले दो साल से पार्टी की नीतियां आदिवासी समुदाय के इर्द-गिर्द घूमती रहीं, इसलिए आदिवासियों के लिए आरक्षित राज्य की 47 सीटें निर्णायक भूमिका में रह सकती हैं.
भाजपा के लिए यह चुनाव पिछले चुनावों से अलग इसलिए रहा क्योंकि इस बार प्रदेश की डोर केंद्र ने थाम रखी थी, अत: पार्टी को उम्मीद है कि ‘मोदी फैक्टर’ भी उसके पक्ष में काम करेगा. जबकि मामा को मुख्यमंत्री पद के दौड़ से दूर रखने की भी कोशिश थी . अब मध्य प्रदेश में बीजेपी की यह भारी जीत मामा को नज़र अंदाज़ करने की वजह से हुई , केंद्र की LEADERSHIP को राज्य में उतारने या फिर EVM के बलबूते , कहना मुश्किल है .
दूसरी ओर, कांग्रेस को उम्मीद थी कि भाजपा के चार कार्यकाल से उपजी सत्ता विरोधी लहर, शिवराज सरकार में हुए व्यापम जैसे कई दुसरे घोटाले और भ्रष्टाचार के खिलाफ प्रदेश की जनता वोट करेगी . चुनावी वचन-पत्र में प्रदेश की जनता को दी गईं उसकी गारंटियां जैसे कि किसान कर्ज माफी, मुफ्त बिजली, सस्ता गैस सिलेंडर, महिलाओं को 1500 रुपये मासिक भत्ता आदि कांग्रेस को सत्ता में ला सकती है .
हालांकि, दोनों ही दलों के सामने सबसे बड़ी चुनौती बागियों से पार पाना भी था . टिकट वितरण के बाद, जहां कांग्रेस ने बगावत कर चुनाव लड़ने वाले 39 नेताओं को पार्टी से निष्कासित किया था, वहीं भाजपा में ऐसे बागियों की संख्या 35 रही.मगर बीजेपी को फिलहाल पूर्ण बहुमत राज्य में मिल गया आउट पांचवी बार बीजेपी ने MP की सत्ता पर क़ब्ज़ा बार क़रार रखा .
राजस्थान:
राजस्थान नतीजों की बात करें तो सरकार बदलने का रिवाज इस बार भी क़ायम रहा . नतीजों में बीजेपी के बहुमत हासिल करने के बाद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अपना इस्तीफ़ा राजयपाल को सौंपा दिया .
राजस्थान की इस बार 199 विधानसभा सीटों पर 25 नवंबर को मतदान हुआ था. चुनाव आयोग के अनुसार, रविवार शाम साढ़े सात बजे खबर बनाये जाने तक भाजपा को कुल 115 सीटों पर जीत मिल चुकी है और 1 सीट पर इसने बढ़त बनाई हुई है. जबकि कांग्रेस 67 सीट जीत चुकी हैं और 02 पर यह आगे चल रही थी .
गहलोत सरकार ने सामाजिक कल्याणकारी योजनाओं पर काफी खर्च किया था,जिससे राज्य की जनता को लाभ भी हुआ . लेकिन बुनियादी ढांचे के विकास और रोजगार पर ध्यान केंद्रित करने के लिए बहुत कम जगह छोड़ी. इसलिए भारतीय जनता पार्टी ने इन मोर्चों पर गहलोत की विफलताओं को उजागर करने पर ध्यान केंद्रित किया.
साथ ही, भाजपा का चुनाव अभियान भ्रष्टाचार विरोध और हिंदुत्व पर केंद्रित रहा. BJP ने महिलाओं के खिलाफ अपराधों को रोकने में कांग्रेस की कथित विफलता और सरकारी नौकरियों के लिए आयोजित प्रवेश परीक्षाओं में लगातार पेपर लीक के लिए गहलोत के खिलाफ प्रचार किया.
भारतीय जनता पार्टी ने कांग्रेस के खिलाफ अल्पसंख्यक तुष्टिकरण के भी आरोप लगाए, जिसमें उदयपुर में दर्जी कन्हैयालाल की नृशंस हत्या को लगातार उठाया जाता रहा . जबकि कांग्रेस सांप्रदायिक मुद्दों और बीजेपी के Polarisation जैसे Issues को आक्रामकता से जनता के सामने रखने से बचती दिखाई दी .प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी अपने अधिकांश चुनावी भाषणों में कन्हैया लाल की हत्या पर बात करने का हर संभव प्रयास किया. और धुर्वीकरण की नीति पर भी उनकी नज़र रही .
हालांकि, दोनों ही दल अपने-अपने संगठनों के दरमियान पनप रही समस्याओं से भी जूझते दिखाई दिए . मोदी-शाह की जोड़ी और पूर्व मुख्यमंत्री एवं राज्य में भाजपा की सबसे कद्दावर नेता वसुंधरा राजे सिंधिया के बीच चल रहे विवाद के बीच भाजपा मुख्यमंत्री का चेहरा पेश नहीं कर पाई. बीजेपी के अंदर गुजरात बनाम राजस्थान की सार्ड जंग देखि गयी उसके बावजूद कांग्रेस अंतरकलह भारी पड़ा और बीजेपी को सत्ता मिल गयी .
तेलंगाना :
बीआरएस ने स्वीकारी हार, कांग्रेस अध्यक्ष ने मतदाताओं का किया धन्यवाद
निर्वाचन आयोग के अनुसार, खबर लिखे जाने तक कांग्रेस को स्पष्ट बढ़त मिल चुकी है. आंकड़ों के अनुसार, कांग्रेस 56 सीटें जीत चुकी है और 08 पर आगे बनी हुई है. भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) 32 सीटें जीत चुकी है और 07 सीटों पर आगे चल रही है.एआईएमआईएम को 7 सीटें जीतकर अपने पिछले Record को बनाये रखने में कामयाब रही है .
अधिकांश चुनाव-पूर्व सर्वेक्षणों और एग्ज़िट पोलों में तिलंगाना की बीआरएस और कांग्रेस के बीच कड़ी टक्कर की बात की जा रही थी , जिसमें कांग्रेस को बीआरएस की तुलना में थोड़ी बढ़त मिलती बताई गई थी. ऐसा भी बताया जा रहा था कि भाजपा बीआरएस-विरोधी वोटों में सेंध लगाकर कांग्रेस का खेल बिगाड़ सकती है . और किंगमेकर बनकर उभर सकती है.
ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) को हैदराबाद के पुराने शहर में अपना आधार बनाए रखने में कामयाब रही है .
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