अफ़ग़ानिस्तान में 2009 से 2013 के बीच ऑस्ट्रेलिया के सैनिकों ने 39 अफ़ग़ान नागरिकों की हत्या सिर्फ इसलिये कर दी क्योंकि ‘जिन जूनियर सैनिकों ने कभी किसी की हत्या नहीं की थी, उनसे कहा गया कि वो क़ैदियों को गोली मारकर अपना हाथ साफ़ कर सकते हैं।’
ऑस्ट्रेलियाई डिफ़ेंस फ़ोर्स (एडीएफ़) ने अपनी एक बहुप्रतीक्षित जाँच-रिपोर्ट में लिखा है कि ‘उन्हें इस बात के पुख़्ता सुबूत मिले हैं कि अफ़ग़ान युद्ध के दौरान कुछ ऑस्ट्रेलियाई सैनिकों ने ग़ैर-क़ानूनी ढंग से 39 अफ़ग़ान लोगों की हत्या की।’ ऑस्ट्रेलियाई डिफ़ेंस फ़ोर्स जाँच के अनुसार पॉल ब्रेरेटन के नेतृत्व में इन सभी वारदातों की जाँच की गई जिसके लिए क़रीब 400 चश्मदीदों के बयान दर्ज किये गए।
ध्यान दीजिये ऑस्ट्रेलियाई सैनिकों ने कुल 39 अफग़ान नागरिकों को अपना ‘हाथ साफ’ करने से मक़सद से मौत के घाट उतार दिया। यह संख्या पेरिस में तथाकथित आतंकी हमलों में मारे गए फ्रांसीसी नागरिकों की संख्या से कहीं अधिक है।
लेकिन पूरी दुनिया में आतंकवाद के लिये एक ही शब्द प्रचलित है, और वह है इस्लामिक आतंकवाद, इसके लिये दुनिया में कहीं भी जनसंहार हो जाए, हिंसा हो जाए, उसके लिये किसी धर्म का नाम नहीं दिया जाता है। ऐसा क्यों है? सिर्फ प्रशिक्षण के तौर पर 39 इंसानों की हत्या कर देना क्या आतंकवाद नहीं है? इसे आतंकवाद कौन कहेगा? और कौनसा आतंकवाद कहेगा?
क्या इसे सैन्य आतंकवाद कहा जाएगा? या फिर आरोपियों के धर्म के पता करके इन हत्याओं का ज़िम्मेदार उनके धर्म को माना जाएगा? नहीं, इस पर ऐसा कुछ नहीं होगा। मगर क्यों? यही वह सवाल है जिसका जवाब नहीं मिल पाता।
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देखते-देखते पश्चिमी दुनिया ने एक धर्म विशेष को आतंकवाद से जोड़ दिया गया, उसके लिये दुनिया की डिक्शनरी में इस्लामिक आतंकवाद शब्द भी इज़ाद कर लिया गया। उल्टे आतंकवाद का शिकार पूरी दुनिया में कहते रहे कि वे इस्लाम का आतंकवाद से कोई रिश्ता नहीं है, जिहाद का आतंकवाद से कोई रिश्ता नहीं है।
लेकिन किसने सुनी? किसी ने भी नहीं। बड़े-बड़े ‘उदारवादी सेकुलर’ जब पेरिस में घटित घटना को आतंकवाद का नाम देते हैं, तब उनके “ज्ञान” पर तरस आता है। जो यह भी नहीं पता लगा पाया कि दुनिया में अगर आतंकवाद का कोई सबसे अधिक शिकार हुआ है, तो वह इस्लाम के अनुयायी ही हैं। अफगानिस्तान में ऑस्ट्रेलिया ने जिन अफग़ान नागरिकों की हत्या की उसके लिये कठघरे में कौनसा धर्म,पंथ, संगठन खड़ा किया जाएगा?