यूरोपीय संसद के पूर्व सदस्य निक ग्रिफिन ने खोले इब्राहिम रईसी के मौत के राज़
कई अरब देशों पर यहूदी औरतों का क़ब्ज़ा?
Irani President Ebrahim Raisi :ईरानी सदर इब्राहीम रईसी की मौत हादसे ने पाकिस्तानी सदर ज़िआउल हक़ के हादसे की याद ताज़ा करदी . वो हादसा भी पाकिस्तान के लिए बड़ा नुकसान था , जिसमें सदर के साथ टॉप आर्मी Officers शामिल थे . ईरानी सदर की हेलीकाप्टर Accident के बाद रहस्य्मय मौत के लिए इसराइल को ज़िम्मेदार ठहराने की बात कितनी उचित है यह अभी Research का विषय है .
लेकिन ईरान – इसराइल के तल्ख़ रिश्तों के चलते प्रथम दृष्टया यही सोच बनती है कहीं इसराइल ने तो हमलों का बदला नहीं लिया , ख़ास तौर से ऐसे मैं जब इसराइल इस तरह की साज़िशों में पहले से लिप्त रहा हो . आपको बता दें israel ने पूरी दुनिया के 100 मुस्लिम शहरों की तरफ अपनी Atomic मिसाइलें नस्ब की हुई हैं . इसराइल अब तक ईरान के 5 एटॉमिक मिसाइल साइंसदानों को भी हलाक कर चूका है . और ग़ज़ा पर हालिया इस्राइली हमलों में 40 हज़ार से ज़्यादा फलस्तीनि शहीद हो चुके हैं , जिनमें ज़्यादातर मासूम बच्चे हैं .
ऐसे में ईरान के ज़रिये इजराइल पर किये गए ड्रोन और मिसाइलों के १०० से ज़्यादा हमलों को फ़लस्तीन की हिमायत में की गयी जवाबी कार्रवाई के रूप में देखा जा रहा था . हालांकि इन हमलों में किसी भी इस्राइली की मौत की खबर नहीं थी . इतने बड़े हमलों के बाद किसी एक भी इस्रइली नागरिक की मौत न होने को ईरान के हमलों को फेक हमलों से ताबीर किया जाने लगा था . हालाँकि अमेरिका और इस्रइल की ईरान से बज़ाहिर दुश्मनी जग ज़ाहिर है .बाक़ी सच्चाई तो रब ही जानता है , क्योंकि ईरान पर सुन्नी दुनिया के दुश्मन होने का भी आरोप लगता रहा है जबकि इसराइल की पैदाइश ही इस्लाम दुश्मनी से हुई है , इसलिए दुश्मन का दुश्मन दोस्त भी हो सकते हैं .वल्लाहु आलम
वाज़े रहे यह नज़रयाती क़यास है . इसी बीच इसराइल की सऊदी अरब के साथ दोस्ती के चर्चों पर भी नज़र रहनी चाहिए .इसको सऊदी अरब की सियासी और Diplomatic मजबूरी का नाम दिया जाता है क्योंकि इजराइल और अमेरिका की सबसे बड़ी अंदरूनी थ्रेट सऊदी अरब को ही है .
दूसरी वजह अक्सर अरब शेह्ज़ादों के घर में यहूदी औरतें हैं , इसलिए हुकूमतों पर भी इन्ही का क़ब्ज़ा है . या यूँ कहें की यहूदी औरतों को अरब नौजवानो के यहाँ साज़िश के तहत भेजा गया है .
ईरान के इसराइल पर मिसाइल हमलों के बाद खबर यह थी की बहरीन और जॉर्डन की ज़मीन पर अमेरिकन और बर्तानवी फ़ौज के ज़रिये 70 से ज़्यादा ईरानी मिसाइल नाकाम कर दिए गए थे .यानी जॉर्डन और बहरैन की ज़मीन ईरान के ख़िलाफ़ इस्तेमाल हो रही थी .
याद रहे यहूदी zionist पूरी दुनिया में इस्लाम के ख़िलाफ़ साज़िशें रचते रहे हैं और बर्तानवी पूर्व प्रधानमंत्री टोनी ब्लेयर कह चुके हैं की मैं खुद Zionist हूँ .Zionist का मतलब होता है इंतहा पसंद या अलगाववादी .चुनांचे बर्तानिया आजतक इस्राइली Causes और मफ़ादात के समर्थन में रहा है .
लेकिन इसराइल में अमन पसंद नौजवानों का भी एक बड़ा ग्रुप है जो फ़लस्तीन और ग़ाज़ा या दुनिया में कहीं भी इंसानियत पर होने वाले ज़ुल्म के ख़िलाफ़ एहतजाज करता रहा है .यह सही है कि अमनपसंद और अच्छे लोग हर जगह मौजूद हैं , मगर इनके पास हुकूमतें नहीं हैं .
अलबत्ता सेह्युनि ,बूढ़ी कारोबारी और सरमायेदार इस्राइली अवाम नितिन याहू के इस जाबिराना अमल को सपोर्ट करती है . उनका मानना है कि यही वो हाकिम है जो हमारे आख़री messaanger यानी मसीही दज्जाल को येरुशलम में नाज़िल करवा सकता है .
इसी तरह जैसा हमारे मुल्क में भी एक तब्क़ा है जो कहता है कि मोदी शिव का अवतार है वही हमारी हिफाज़त कर सकता है , और राम को भी वही लाये हैं .
फिलहाल ईरानी सदर की मौत के राज़ को जानने के लिए हमें कुछ और राज़ जान्ने होंगे . यूँ तो इस्लामी अक़ीदे के मुताबिक़ किसी की मौत उसके वक़्त से पहले और अल्लाह के हुक्म के बग़ैर नहीं आती . मगर दुनिया में कई ऐसे नामवर लोगों की मौत आजतक mistry बनी हुयी है ….जैसे खुद अमेरिकन Prezident John Kannedy की मौत भी उसी का हिस्सा रही है .
54 साल पहले नवंबर के महीने में हुयी दुनिया के सबसे ताक़तवर सदर John Kannedy के मर्डर की गुत्थी आजतक नहीं सुलझ सकी है .Keneddy Murder के कयास लगाते हुए एक पूरी पीढ़ी निपट गई है . दरअसल सट्टा और सच में बड़ा फ़र्क़ होता है,इसको समझना ज़रूरी है .
दुनिया में यहूद के अलावा कई दुसरे सत्ता के लिए इंसानियत के दुश्मन रहे हैं . इंसानी तारीख़ में ज़्यादातर जंगें सत्ता के लिए ही हुई हैं .पूँजी और Power को यहूद अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझते रहे हैं. इसके लिए उन्होंने दुनिया के हज़ारों हुक्मरान का क़त्ल करा दिया .
Kaneddy मर्डर की थ्योरी ब्यान करते हुए कई अमेरिकी नागरिक ,जांच एजेंसी CIA को ज़िम्मेदार ठहराते हैं . तो कुछ इसके पीछे रूसी ख़ुफ़िया Agengy KGB का हाथ बताते हैं .
दुनिया के इस बड़े हत्याकांड कि सच्चाई को खोजने का सिलसिला अभी भी जारी है. कहा जाता है कि क्यूबा और वामपंथ यानी (Leftism) को लेकर कैनेडी के रुख से CIA खुश नहीं थी. North America Continent में द्वीपों यानी iceland के समूह क्यूबा को फिडेल कास्त्रो ने पहला साम्यवादी राज्य यानी Communist State बना दिया था . जो रूसी विचारधारा यानी Communism को अमेरिका में एक बड़े challenge के रूप में देखा जा रहा था .
जॉन केनेडी मर्डर के पुख्ता सुबूत आज भी सामने नहीं आये हैं , मगर सबूत न मिलने से क्या होता है? ताज महल को तेजोमहालय और काशी में मस्जिद के नीचे शिवलिंग होने का कौन सा सबूत मिला ? या राम मंदिर को तोड़कर बाबरी मस्जिद तामीर की गयी थी सुबूत तो इसका भी कोई नहीं था , मगर इंसाफ को आस्था की भेंट चढ़ा दिया गया और ऐसा अक्सर होता रहा है .
लेकिन यह भी याद रखना चाहिए कि यह सब उसी सुप्रीम पावर की हिकमत और मंशा का हिस्सा है जिसके हुक्म के बिना एक पत्ता भी नहीं हिलता . लेकिन जो क़ौम रब की मंशा को नहीं समझती उसको रुस्वा होने से रब भी नहीं बचाता . याद रहे खुद इस्राइल के पांचवें प्रधानमंत्री Yazhak Rabin को भी रह्स्य्मय तरीके से क़त्ल किया गया था .
दोस्तों हम ईरानी सदर इब्राहीम रईसी की मौत की Mystry के पसमंज़र में बात कर रहे हैं .और कुछ ऐसे राज़ जाननी की कोशिश कर रहे हैं जिससे सच्चाई का पता लगाया जा सके . लेकिन पहले आपको बता दें कि पिछले 70 वर्षों में Head of States के क़त्ल की लिस्ट बहुत लम्बी है इसमें से कुछ का ज़िक्र हम मिसाल के तौर पर ही यहाँ कर पाएंगे ,जैसे
महात्मा गाँधी ,बाबा भीम राव आंबेडकर , इंद्रा गाँधी , राजीव गाँधी ,पाकिस्तानी राष्ट्रपति ज़िआउल हक़ , लियाक़त अली खान , ज़ुल्फ़िक़ार अली भुट्टो , Prime Minister बेनज़ीर भुट्टो ,अफ़ग़निस्ता के , हबीबुल्लाह खान ,मुहम्मद नादिर शाह , हफ़ीज़उल्लाह अमीन , मुहम्मद दाऊद खान , नूर मुहम्मद तरकी , बांग्ला देश के शेख मुजीबुर्रहमान , मुहम्मद मंसूर अली , ज़िआउर्रहमन ,ईरान के Prime Minister हसन अली मंसूर , हाजी अली रज़्मआरा , अब्दुल हुसैन ,मोहम्मद -जव्वाद ,मोहम्मद -अली Razai ,::: मिस्र के Prime minister अहमद माहिर पाशा, मेहमूद फेहमी पाशा ,वसफ़ी ताल ,अनवर सादात , हाफ़िज़ मुहम्मद मुर्सी ,इराक़ के PM इब्राहीम हाशिम ,अब्दल करीम क़ासिर , Prezident सद्दाम हुसैन , और लीबिया के मुहम्मद कद्दाफी ,यहाँ तक के 600 साल तक दुनिया पर हुकूमत करने वाली तुर्किया सल्तनत के आख़री चश्म चिराग़ मुहम्मद शौकत पाशा भी एक साज़िश के तहत क़त्ल किये गए थे . इसके अलावा रोमन और फ्रांस के अक्सर Empires का भी रहस्मय क़त्ल किया गया था . और इन सबके पीछे यहूदी कारोबारी लॉबी (इज़रा ईली मो साद ) का हाथ रहा है .अब ईरानी राष्ट्रपति के पीछे भी उसी का हाथ होने का इशारा मिल रहा है . इसकी सत्यता के लिए बानगी के तौर पर नीचे दिए लिंक पर जाकर जानकारी हासिल कर सकते हैं .
https://www.facebook.com/reel/434864585928195
https://www.facebook.com/reel/343276142038544
यूरोपीय संसद के पूर्व सदस्य निक ग्रिफिन ने खोले इब्राहिम रईसी के मौत के राज़
ईरानी राष्ट्रपति इब्राहीम रईसी कि मौत कारणों को जान्ने केलिए यूरोपीय संसद के पूर्व सदस्य निक ग्रिफिन के ख्यालात को जानना ज़रूरी है , वो कहते हैं , रईसी की मौत के पीछे “मोसाद के शामिल होने को ग़ाज़ा , हिज़्बुल्लाह , ईरान- ज़राइल तनाव के साथ कई दुसरे कारणों को जानना भी ज़रूरी होगा । मो साद इस षड्यंत्र में शामिल है इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी…”
एक्स पर एक पोस्ट में, ग्रिफिन ने कहा कि रईसी और उनके अज़रबैजानी समकक्ष ने अपनी सीमा पर क़िज़ क़लासी जलविद्युत बांध का उदघाटन किया है जो “राजनीतिक मतभेदों के बावजूद दोनों देशों के बीच “दीर्घकालिक सहयोग” (long-term cooperation) व् “दोस्ती और सौहार्द” के प्रतीक के रूप में एक क़ाबिले तारीफ़ और एक मेगाप्रोजेक्ट” है ।
ग्रिफिन ने कहा कि इन दो शिया राज्यों के बीच संबंधों में सुधार से अज़रबैजान और आर्मेनिया के बीच तनाव को भी कम करने में मदद मिल सकती है। ग्रिफिन ने कहा, कि इज़रा इल अर्मेनियाई लड़ाकों को ड्रोन और अन्य जंगी हथियारों को बेचकर बड़ा मुनाफ़ा कमा रहा है।
जबकि ईरान ने अर्मेनियाई अवाम का मज़बूती से समर्थन किया है। ग्रिफिन बताबा चाहते हैं कि, “दुनिया में लड़ाई को जारी रखना इजराय ली हथियार उद्योग के बड़े लाभ का सौदा और ईरान से पुरानी दुश्मनी का मिश्रण है।” वो कहना चाहते हैं कि इस्रा इल किसी भी सूरत दुनिया में अमन नहीं चाहता , और वो अमन कि किसी भी कोशिश को नाकाम बनाना चाहता है , क्योंकि इस्रा इल का व्यापार तो जंग की बुनियाद है यानी हथियार ….
कुल मिलाकर दुनिया में हुकूमत और सल्तनत की इमारत जंग ओ जिदाल , क़त्ल और साज़िशों की बुनियाद पर ही तामीर हुई है . फिलहाल ईरानी Prez और उनके साथियों की मौत के पीछे मो साद का हाथ होने के इशारे मिल रहे हैं . मगर इसपर पाबन्दी कौन लगाएगा क्योंकि दुनिया की तमाम बड़ी संस्थाओं और संस्थानों पर तो इज़रा इल का क़ब्ज़ा है है .