नहीं है ना-उमीद ‘इक़बाल’ अपनी किश्त-ए-वीराँ से
ज़रा नम हो तो ये मिट्टी बहुत ज़रख़ेज़ है साक़ी
IICC President Candidates ध्यान दें , बहुत काम की है आपके लिए यह Report , खरी खोटी सुनने को आप तैयार हैं ?तो जीत सकते हैं
India Islamic Culture Centre Presidential Election 2024
इंडिया इस्लामिक कल्चर सेंटर (IICC) लोधी रोड नई दिल्ली स्थित मुसलमानों का ऐसा मरकज़ है जिसको राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हिंदुस्तानी मुसलमानो के इक़बाल ,सम्मान और संस्कृति से जोड़कर दिखाया जाता है . हालाँकि Practicaly यह बात सच्चाई से बहुत परे है .
इक़बाल तेरी क़ौम का इक़बाल खो गया ,माज़ी सुनेहरा है मगर हाल खो गया
इमामे हरम या अमेरिकी प्रेजिडेंट ओबामा के Centre आजाने से इसको इस्लामिक या मुसलमानो की पहचान से कैसे जोड़ा जा सकता है . देश को छोड़ें दिल्ली के भी सिर्फ 10 से 12% लोग ही इस सेंटर से आशना हैं या जानते हैं .
लेकिन यह सही है अगर सेंटर में मुख्लिस , दयानतदार और दर्दमंद टीम आजाये तो यहाँ से बड़े बड़े काम मुल्क और मिल्लत की फ़लाह और कामयाबी के हो सकते हैं। हमारे इदारे और मरकज़ बहुत हैं मगर ज़्यादातर आपसी इनतशार और ज़ाती मफ़ादात के शिकार हैं। मगर फिर भी कुछ उम्मीद है कि फिर यहीं से नया सूरज निकलेगा और सुबह होगी।
न हम-सफ़र न किसी हम-नशीं से निकलेगा
हमारे पाँव का काँटा हमीं से निकलेगा
मैं जानता था कि ज़हरीला साँप बन बन कर
तिरा ख़ुलूस मिरी आस्तीं से निकलेगा
बुज़ुर्ग कहते थे इक वक़्त आएगा जिस दिन
जहाँ पे डूबेगा सूरज वहीं से निकलेगा
Centre के Aims And Objectives (अग़राज़ो मक़ासिद ) या इसकी तारीख़ के बारे में मुश्किल से ही लोग बता पाएंगे . खुद कई मेंबर्स को नहीं पता कि IICC का मक़सद क्या है ? क्योंकि यहाँ से कोई भी ऐसा काम नहीं हो पाया है जिससे यह लगता हो कि भारत के मुसलामानों के मसाइल का यहाँ हल है या इस्लाम की नश्रो इशाअत और इमानो अमल की मज़बूती का काम यहाँ से होता तब यह मुसलमानों की शनाख़्त का मरकज़ कहलाया जाता।
बदक़िस्मती से दुनिया में इस्लाम के ख़िलाफ़ एक परसेप्शन ऐसा बनाया गया है कि मुस्लमान अगर शरीअते रसूल SAW को अपनाये तो उसको कट्टरवाद , आतंकवाद , जिहाद और fundamantalism जैसे अलक़ाब से पुकारा जाता है।
हालाँकि भारत में जिहाद मुस्लमान को छू कर भी नहीं गुज़रा है। गोया लफ़्ज़े जिहाद को भी बदनाम किये जाने की साज़िश चल रही है।और जो संस्थाएं या जमातें मुल्क , मुस्लमान और इंसानियत को बर्बाद करने की साज़िशें रच रही हैं उन्ही के नुमाइंदों को इस्लामिक सेंटर की बागडोर दिए जाने की Planning चल रही है।
यह किस क़दर अल्मनाक बात है कभी सोचा आपने ? और जो खुद को Secular कहने वाली जमातें या लोग हैं वो भी इस्लाम दुश्मनी में कम नहीं हैं। जहाँ पाला बदला बस अपनी असलियत पर उतर आते हैं।
सच्चाई यह है की CENTRE में आने वाले लोग इस्लाम और मुसलमानों के बारे में नकारात्मक (Negative) सोच ही लेकर जाते होंगे .इसकी बाहरी चमक धमक और VIP Culture की वजह से कुछ लोगों की दिलकशी और आकर्षण का केंद्र होगा इससे इंकार नहीं मगर यहाँ से इंसानियत को कोई फ़ैज़ पहुँच रहा है ऐसा हरगिज़ भी नहीं है .
किसी भी क़ौम में एक वर्ग को ऐसे Uncultured Cultural centres की ज़रुरत होती है ,लिहाज़ा उस वर्ग की ज़रुरत यहाँ पूरी हो जाती है .भारत के 99.95% मुसलमानों और इस्लाम से इसका कोई सरोकार नहीं है . ………
भारत एक लोकतान्त्रिक देश है और यहाँ कई निजी संस्थान लोकतान्त्रिक प्रणाली के आधार पर ही चलते हैं . जिसमें आवामी राय को सर्वोपरि माना जाता है .
क्या वाक़ई सेंटर इस्लामिक है ?
लेकिन जब संस्थानों को सामूहिक लाभ से हटकर निजी लाभ और शानो शौकत के लिए इस्तेमाल किया जाने लगे तो इसके लिए वो सारे हथकंडे इस्तेमाल होते हैं जो पूँजीवाद और तानाशाही के चलन को बढ़ावा देते हैं . कुछ ऐसा ही IICC के साथ भी हुआ है .
तथाकथित इंडिया इस्लामिक कल्चर सेंटर में पिछले 20 वर्षों से चलने वाले कार्यक्रमों के आधार पर लोगों का मानना है कि इसको या तो शादी घर बना देना चाहिए या मॉडर्न मुस्लिम मुसाफ़िर ख़ाना .
मस्जिद जो इस्लाम का बुनियादी मरकज़ है वो बेसमेंट में ,जबकि सांस्कृतिक प्रोग्राम जैसे नाच गाने और दीगर Activities के लिए Auditorium को नमाज़ियों के सर पर बैठाया गया है . इसका कुछ लोग विरोध करते हैं तो कई इसका समर्थन इसलिए करते हैं कि Revenue Generation का माध्यम यही सब है .
क्या ऐसा नहीं हो सकता की मस्जिद और Auditorium के बीच फ़ासला रहे . हालांकि इन फ़ासलों से कोई ख़ास फ़र्क़ पड़ने वाला नहीं है .
एक राय यह भी है कि सेंटर का मरकज़ी हॉल जो गुम्बद के नीचे और एकदम सेंटर में है वहां मस्जिद क़ायम की जाए . और वहीँ से मुल्क में अम्न शान्ति, ख़ैर सगाली और भाईचारे का पैग़ाम आम होना चाहिए .
बिला तफ़रीक़ (without distinction) मुल्क में इंसानियत की ख़िदमत का यह मरकज़ बने, जो इस्लाम की असल तस्वीर और किरदार को पेश कर सके. यह भारतीय मुस्लमान और सरकारों के बीच राब्ते और information का Centre भी हो.
कई लोग इस बात से ही संतुष्ट हैं कि मुसलमानों को कम से कम दिल्ली के VIP इलाक़े में बैठकर बात करने या प्रोग्राम करने का मौक़ा तो मिल जाता है .
यह बड़े अफ़सोस का मक़ाम है कि इस्लामिक सेंटर को सिर्फ गॉसिप करने या शादी ब्याह के मंडप सजाने का अड्डा समझ लिया गया है .कुछ लोग इसको मुग़लई खानों का सेंटर भी बोलते हैं .
लोगों का मानना है कि यहाँ बैठकर Liasoning और ठेकेदारी होती है . निजी लाभ के लिए लोगों ने इसको मीटिंग point बनाया है . जो भी होता हो मगर यह तय है कि भारत के मुसलमानो का सार्थक लाभ यहाँ से नहीं हुआ है .
इसकी फिक्रें नहीं हुई अगर फ़िक्र हुई हो तो अमल नहीं हुआ। क़ौम लगातार ज़वाल पज़ीर है ,मज़हबी शनाख़्त ख़त्म की जा रही है। हालाँकि इसके लिए पहले खुद मुस्लमान ही ज़िम्मेदार हैं। अपनी मज़हबी पहचान के साथ हमें शर्म आती है।
क़ुव्वते फ़िक्रो अमल पहले फ़ना होती है –
फिर किसी क़ौम की शौकत पे ज़वाल आता है Allama Iqbal
मुस्तक़बिल क़रीब में भी कोई उम्मीद नज़र तो नहीं आती . इसपर अलग से Observation के बाद तफ़्सीली रिपोर्ट जल्द बनाएंगे , फ़िलहाल IICC के चुनावी माहौल पर एक नज़र डालते हैं .
गौरतलब है कि इस बार अध्यक्ष पद के लिए 7 उम्मीदवारों में पूर्व केंद्रीय मंत्री सलमान ख़ुर्शीद, पूर्व IRS अधिकारी एडवोकेट अबरार अहमद , कैंसर सर्जन डॉ माजिद तालिकोटी , रिटायर्ड IAS अधिकारी अफ़ज़ल अमानुल्लाह , दिल्ली के कारोबारी आसिफ़ हबीब , खुद को बीजेपी का फाउंडर कहने वाले सुहैल हिंदुस्तानी , और वसीम अहमद गाज़ी के नाम शामिल हैं। इन सबके अपने अपने पैनल हैं जिसमें 7 बोर्ड ऑफ़ ट्रस्टी , 1 Vice president और 6 Executive मेंबर्स रहेंगे .
आपको याद दिला दें IICC 2024 इलेक्शन में Dr. सय्यद ज़फर महमूद (ज़कात फाउंडेशन और IAS Coatching Academy )चला रहे हैं , Mr. यामीन कुरैशी , (मशहूर Chartered accountant) हैं , मुदस्सिर हयात अनुभवी उद्यमी हैं ये तीनों आज़ाद उम्मीदवार की हैसियत से मैदान में हैं .
कैंडिडेट में क्या खूबी होनी चाहिए ?
Candidates की मेरिट के बारे में भी ज़िक्र होना ज़रूरी है , दरअसल IICC President Candidate बनने के लिए उसके आदाबो अख़लाक़, सादगी , दीनदारी , नरम मिज़ाजी और dedication के नंबर भी होने चाहिए.
अपनी मज़हबी शनाख़्त के साथ सेंटर के पैनल की टीम में IAS , IRS , IPS , IIS ,Active Politician , Educationist और बड़े कारोबारी हों तो सोने पे सुहागा . आम तौर पर लोगों की डिग्रियां और ओहदे क़ौमो मिल्लत के इज्तेमाई फ़ायदे के लिए काम नहीं आते .
Candidates के लिए यह इलेक्शन रफ़्ता रफ़्ता उनकी अना का हिस्सा बनता जा रहा है इसलिए हर एक की कोशिश है की ज़्यादा से ज़्यादा मेंबर्स का Vote और Support हासिल किया जाए . लिहाज़ा कई Candidates काफ़ी पैसा ख़र्च कर रहे हैं तो कई दावतों का एहतमाम कर रहे हैं . Corner meetings की जा रही हैं . बड़े level पर Conferences भी Organise की जा रही हैं .और यह लोकतान्त्रिक प्रणाली का हिस्सा तो है ही .
मज़े की बात यह है की हर एक इस सेंटर को भारतीय मुसलमानों के मज़हबी ,सियासी ,समाजी और आर्थिक विकास से जोड़कर पेश कर रहा है …..
कैंडिडेट का ध्यान अपने मेंबर्स को सहूलतें देने पर है , और होना चाहिए मगर iicc के मेंबर्स मुसलमानों की नुमाइंदगी तो नहीं करते . बताया जा रहा है की बस यहीं से मुसलमानो के सारे मसले हल हो जाएंगे . इसको मुसलमानों की बक़ा का सेंटर बताया जा रहा है .
जबकि कुछ अवामी ज़िम्मेदार इस प्रोपगंडे को खुवाबे शर्मिंदा बता रहे हैं ..सभी panels में कई लोग यक़ीनन क़ाबिल हैं तजरबेकार हैं और बहुत अच्छे भी हैं लेकिन चापलूस , ज़मीर फ़रोशी , ग़ुलामाना मिज़ाज और मुनाफ़काना फ़ितरत हर इदारे और संसथान में पाई जाती है . लिहाज़ा यह सेंटर भी इससे ख़ाली कैसे रह सकता है .
इस पूरे इलेक्शन में फ़तह किसी एक ही कैंडिडेट को मिलनी है लेकिन हारे हुए सभी 6 Presidential Candidates और उनका पूरा पैनल अगर वाक़ई भारत के मुसलमानों की फ़लाहो बहबूद अपना मक़सद बनाकर मैदान में उतरे हैं तो अपनी ख़िदमात सेंटर को देते रहने का अज़्म करें , तो यक़ीनन यह अमल दावे में सच्चाई का मज़हर होगा ।
क्या ही अच्छा होता कि चुनाव मैदान में सिर्फ 2 ही पैनल होते। मगर अफ़सोस ऐसा न हो सका। है कोई मर्दे मुजाहिद जो अभी भी यह कहे की मैं फलां के हक़ में सेंटर के मक़ासिद की ख़ातिर बैठ रहा हूँ।
यह बात तय है यह कैंडिडेट ताउम्र जीता हुआ रहेगा , और सेंटर की तारीख़ का हिस्सा बनेगा। और हम साबित करके बताएँगे की सेंटर की बक़ा की ख़ातिर Withdraw करने वाले Candidates ही जीते हुए हैं .
कुछ लोग इस कोशिश में अभी भी लगे हैं और ख़ाकसार भी इसी कोशिश में है कि मैदान में कम से कम पैनल रहें ताकि voters के लिए भी आसानी हो सके और सेंटर अपने मक़सद के हुसूल की तरफ बढ़ सके।
एक मर्दे मुजाहिद है जिसने इसी नीयत के साथ अपना नामांकन Executive Member से वापस लिया , और वो इसी कोशिश में हैं की किसी सूरत से सेंटर अपने मक़ासिद को हासिल कर सके। और मुस्लमान अपने खोये वक़ार को पा सकें। मुल्क में अम्न और शांति क़ायम हो।
हरम-ए-पाक भी अल्लाह भी क़ुरआन भी एक
कुछ बड़ी बात थी होते जो मुसलमान भी एक
हमने इस पूरे चुनाव को एक Observor की हैसियत से देखना शुरू किया है और अलग अलग मीटिंग में खुद जाकर या अपने नुमाइंदों के ज़रिये रिपोर्ट इकठ्ठा करना शुरू कर दी हैं . और अपनी final report हम पोलिंग डेट से पहले जारी कर देंगे .
सभी Presidential Candidates से 6 सवाल पूछे जा रहे हैं उनके जवाब एक साथ प्रसारित किये जाएंगे . थोड़ा सा इंतज़ार करना होगा हमारी आख़री रिपोर्ट में Election की तस्वीर काफ़ी हद तक साफ़ हो जायेगी . जिसके बाद IICC के Members , हमारे नाज़रीन और Readers किसी नतीजे पर पहुँच सकेंगे . हालांकि IICC से मुसलमानों के मसाइल का हल फ़िलहाल मुतवक़्क़े (expected) नहीं है मगर उम्मीद रखनी चाहिए .
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