एक जमाना था, जब देश के लाल, की त्याग तपस्या और बलिदान के नाम पर, जनता के बीच जाकर स्वाभिमान जगाया जाता था, और जनता न्याय कर, पार्टी के अस्तित्व को बचाती थी !
अजीब राजनीतिक विडंबना है की, विश्व की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी भाजपा और देश की सबसे पुरानी पार्टी कॉन्ग्रेस, अपनी अपनी पार्टियों के महान नेताओं के देश के प्रति त्याग तपस्या और बलिदान को भूलॉकर अन्य मुद्दों पर स्वाभिमान जगा कर अपना अस्तित्व बचाने की जद्दोजहद करती दिखाई दे रही है !
बिहार में भाजपा सुशांत सिंह राजपूत और पश्चिम बंगाल में कॉन्ग्रेस रिया चक्रवर्ती के नाम को भुनाने का प्रयास कर रही है !मजेदार बात यह है कि इन दोनों ही राज्यों में दोनों ही पार्टियों की सरकार नहीं है !
खास बात यह है कि बिहार और पश्चिम बंगाल में देश की प्रमुख पार्टियों भा ज पा और कांग्रेस को क्षेत्रीय दलों से लड़ना और समझौता करना पढ़ रहा है !
जहां तक बिहार और पश्चिम बंगाल की बात करें तो यह दोनों राज्य एक दूसरे के पड़ोसी राज्य हैं, और दोनों ही राज्यों का राजनीतिक इतिहास भी अजीब है, पश्चिम बंगाल में मुख्यमंत्री सुश्री ममता बनर्जी ने कांग्रेस से निकलकर, संघर्ष कर वामपंथियों की सियासत को धरा शाही किया वही बिहार में लालू प्रसाद यादव की सत्ता को नीतीश कुमार ने धरा शाही किया !
ऐसा भी नहीं है कि इन दोनों राज्यों में कांग्रेस कभी सत्ता में नहीं रही बल्कि दोनों ही राज्यों में एक समय कांग्रेश भी सत्ता में रही है हां इन दोनों राज्यों में भाजपा स्वयं कभी सत्ता में नहीं रही लेकिन अब भाजपा प्रयास में है कि वह इन दोनों राज्यों में अपनी सरकार बनाएं लेकिन सवाल उठता है कि क्या भाजपा सुशांत सिंह राजपूत जैसे नामो को उछाल कर स्वाभिमान के नाम पर इन दोनों राज्यों में अपनी सरकार बना लेगी.
याद करने वाली बात तो यह है कि भाजपा ने बिहार में पिछले चुनाव में सत्ता में आने के लिए बड़ा प्रयास किया था, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिहार के विकास के लिए मंच पर खड़े होकर बोली भी लगाई थी इसके बाद भी भाजपा बिहार में सत्ता के करीब भी नहीं पहुंच पाई वह बात अलग है कि आज भाजपा बिहार में नीतीश कुमार को समर्थन देकर सत्ता का उपभोग कर रही है लेकिन वह स्वयं सरकार नहीं चला रही जिसका सपना भाजपा लंबे समय से देख रही है !
सवाल फिर वही है, एक तरफ विश्व की सबसे बड़ी पार्टी केंद्र की सत्ता सीन भा ज पा और दूसरी तरफ देश की सबसे पुरानी पार्टी और देश पर सबसे ज्यादा राज करने वाली पार्टी कांग्रेश दोनों के पास जनता के सरोकार से संबंधित मुद्दे खत्म हो गए या चुनाव में अब जनता के सरोकार के मुद्दे जीत में कोई मायना नहीं रखते यह एक बड़ा सवाल है जिसका जवाब बिहार और पश्चिम बंगाल के चुनावों से पता चलेगा !
टाइम्स ऑफ़ पीडिया की अपने पाठकों और दर्शकों से अपील एवं अस्वीकरण :
निष्पक्ष और मुंसिफाना रिपोर्टिंग तथा पत्रकारिता करते हुए हम देश में अम्न और शान्ति तथा सद्भाव और विकास के लिए आपकी दुआओं और प्रेरणा से लगातार आगे बढ़ रहे हैं , हम अपने फ़र्ज़ के प्रति वचनबद्ध हैं , साथ ही अपने मानवाधिकार और संवैधानिक अधिकारों के ज़रिये हम निडर और मुखर होकर सभ्य सांस्कारिक और नैतिक अंदाज़ से पत्रकारिता को आगे बढ़ाना चाहते हैं .
दरअसल Times Of Pedia का मक़सद देश और जनता के हित के लिए विधायिका , कार्यपालिका और न्यायपालिका की सकारात्मक योजनाओं और नीतियों के क्रियान्वयन में समर्थन करना , साथ ही सरकारी योजनाओं और नीतियों से अवगत कराना और जनता की आवाज़ तथा समस्याओं और मुद्दों को सरकार के समक्ष रखने के अपने कर्तव्य को पूरा करने में टाइम्स ऑफ़ पीडिया ग्रुप अपनी वचनबद्धता को निभाने में यक़ीन रखता है . ऐसे में हम आपसे आशा रखते हैं कि आप टाइम्स ऑफ़ पीडिया को अपना सहयोग देकर जनता में देश के प्रति प्रेम और क़ुरबानी के जज़्बे को भी बढ़ावा देंगे .Times of Pedia (TOP) News Group आपके हर प्रकार के सहयोग की आशा करता है . शुक्रिया का मौक़ा दें
Disclaimer
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण ) आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं। इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति टाइम्स ऑफ़ पीडिया उत्तरदायी नहीं है। इस आलेख में सभी सूचनाएं और आंकड़े ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं। इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार टाइम्स ऑफ़ पीडिया के नहीं हैं, तथा टाइम्स ऑफ़ पीडिया उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है।