यह रही हम फूलों की तक़दीर*
किसी के प्यार के इज़हार के तौर पर
किताबों के वर्क़ॊ में घुटते रहने पर मजबूर !
या
किसी की आस्था की मूर्ति या मज़ार
या क़ब्र पर ख़ुद की ज़िंदगी भी क़ुर्बान !
या
किसी के गले की वरमाला या गजरे
के ज़रिये ख़ूबसूरती में चार चाँद से ख़ुश !
या
किसी की जीत,उल्लास,स्वागत में चंद
लम्हों के लिये भेंट चढ़ने पर मजबूर !
***
हम दूसरों को ख़ुशबू और खुशियाँ देने
वाले इसी तरह सड़क पर कुचले जाते
हैं और अधूरी ज़िंदगी ही जी पाते हैं ।
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शेख बहादुर अली
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