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अब क्या रहेंगी चुनौतियाँ और समाधान ??

अब क्या रहेंगी चुनौतियाँ और समाधान ??

दोस्तों देश में एक बार फिर लॉकडाउन का समय अगले 14 दिन बढ़ाया जाने की सहमति लगभग होगई है , इसी के साथ सरकार और जनता के लिए भी कई नई चुनौतियाँ बढ़ गयी हैं .

आपको पता होगा दिल्ली में आज 11 April 2020 तक 30 हॉट स्पॉट सुनिश्चित किये गए हैं जहाँ सख्त निगरानी राखी जा रही है उन इलाक़ों में आने जाने पर पूर्णतया पाबंदी है ,, यहाँ के उन लोगों कप कुछ दिक़्क़त होसकती है जिन्होंने अपने राशन का प्रबंध नहीं किया है या उनके पास कोई प्रबंध नहीं होसका है .

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अगर आप कोरोना वायरस के हॉटस्पॉट वाले इलाक़े में नहीं रहते हैं और ज़रूरी सामान राशन की दुकान से ख़रीदते हैं तो बहुत मुमकिन है कि आपको अपने पसंदीदा ब्रैंड का सामना न मिलें . कई लोगों की brand को ही लेकर शिकायत होगी जैसा कि मैगी ग़ायब है, पंसदीदा बिस्किट नहीं मिल रहे हैं , लेकिन ज़रा उस ग़रीब का भी सोचें जो एक हफ्ते से पेट भर रोटी नहीं जुटा पा रहा है

गुज़िश्ता 21 दिन के लॉकडाउन में ज़रूरी सामान पर तो कोई रोक नहीं थी, लोगों को सामना मिलता भी रहा है. लेकिन चिंता जताई जा रही है कि अगर लॉकडाउन बढ़ा तो आने वाले दिनों में आटा, दाल, Packed फूड जैसी ज़रूरी चीज़ों की किल्लत हो सकती है.

दुकानदारों यानी रीटेलर्स का कहना है कि उनके पास फ़िलहाल चार से पाँच दिन का स्टॉक है. हालांकि कुछ ब्रैंड्स की चीज़ें ख़त्म भी हो चुकी हैं. वहीं इन रिटेलर्स को सामान सप्लाई करने वाले डिस्ट्रिब्यूटर्स का कहना है कि उनके पास दस से पंद्रह दिन का स्टॉक है. लेकिन ट्रांसपोर्ट की दिक़्क़त की वजह से कई जगह डिस्ट्रिब्यूटर्स, रिटेलर्स तक सामान नहीं पहुंचा पा रहे हैं.

अब सप्लाई चैन को समझ लेते हैं आपका भी समझना ज़रूरी है

दरअसल किसानों से फ़सलें मंडियों तक पहुंचती हैं. वहां से फैक्ट्रियों , Godouwns या Processing Units में जाती हैं. फिर वहां से सामान बनकर पैक होकर होल सेलर के पास पहुंचता है.Whole Sellers से डिस्ट्रिब्यूटर और फिर रिटेलर के पास जाता है. इसे कहते हैं सप्लाई चेन.

लेकिन कई फैक्ट्रियों में उत्पादन रुका हुआ है , उसकी वजह यह है की Labour अपने घरों को लौट गयी है , लेबर की कमी के कारण Production शुरू नहीं हो पा रहा . जिसका सीधा असर आगे चलकर ग्राहकों यानी आम जनता पर पड़ेगा .फिर इसके बाद आप सरकारों को ही इसका उत्तरदाई बनाएंगे और बना भी चाहिए लेकिन इस बीच आपका अपनी ज़िम्मेदारी को कितना निभा रहे हैं इसपर भी नज़र रखिएगा , मगर आप कहेंगे घर बैठकर क्या ज़िम्मेदारी निभाएं , बात सही है मगर घर बैठना भी फिलहाल आपकी ज़िम्मेदारी में ही शामिल है .

अब कुछ लोगों का यह मानना है की ऐसे समय सरकार को समर्थन देने की ज़रूरत है , इससे किसका इंकार हो सकता है ,किन्तु यह बात उन्ही के लिए उपयुक्त या मुनासिब है जिनके पास कम से कम 2 टाइम की रोटी चाय , दूध और मूल भूत सुविधाएँ उपलब्ध हैं मगर ज़रा उस परिवार के दिल से पूछो जिसकी रात और दिन भूक और खौफ के साये में कट रही हैं और आगे भविष्य भी अँधेरे में नज़र आरहा है , मगर आप कहेंगे ऐसा तो कुछ नज़र नहीं आरहा सब चंगा है , लेकिन धरातल पर तस्वीर कुछ और है .

इसलिए जो लोग सक्षम हैं याद रखें इंसान तब तक ही सब्र कर पाता है जब तक उसके पेट में रोटी और प्यास बुझाने को पानी है जैसे ही इनका अकाल होता है अब इसको कोई क़ानून या नियम अच्छा नहीं लगता , और ऐसे लोगों की संख्या देश में अब बढ़ती जा रही है . और आगे लॉडोन में यह स्थिति खतरनाक हो सकती है , लिहाज़ा सप्लाई चैन Maintain रखने के लिए पहले planning कर लेनी चाहिए .

हमारी दुआ है की हम और हमारा देश और दुनिया किसी भी ऐसी मुसीबत में न फस जाएँ जिससे जिससे इंसान अपनी मानवता से गिरने पर मजबूर होजाये . हालाँकि मानवता से गिर जाने का नतीजा ही आज दुनिया के सामने है .

इस सम्बन्ध में आगे जानकारी देने के लिए हम आपको लिए चलते हैं गुड़गांव चैंबर ऑफ़ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री के अध्यक्ष विकास जैन की तरफ , वो चिंता जताते हैं कि अगर लॉक डाउन दो या तीन हफ़्ते बढ़ता है तो ज़रूरी सामान की दिक़्क़त पैदा होजायेगी .

वो कहते हैं, “FMCG यानी Fast Moving Consumer Goods में डिस्ट्रिब्यूटर से लेकर रीटेलर तक भी एक पूरी सप्लाई चेन होती है, जिसमें आम तौर पर तीन-चार हफ्ते का गैप होता है, जिससे उनके पास स्टॉक रहता है. इसलिए तीन हफ्ते के अब तक के लॉकडाउन में कोई दिक़्क़त नहीं आई. लेकिन इसके आगे अब चुनौतियां आएंगी.”

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FMCG को आम तौर पर Consumer Packaged Goods भी कहा जाता है. जिसमें साबुन, डिटर्जेंट, शैम्पू, टूथपेस्ट, शेविंग प्रोडक्ट, जूते की पॉलिश, पैकेज्ड खाना, स्किन केयर का सामान शामिल हैं. यह सब सामान इंसान की ज़रूरत का है लेकिन अगर यह नहीं मिलता या कम मिलता है तो काम चलाया जा सकता है किन्तु आता दाल चावल तेल नमक , मसाले , सब्ज़ी तथा gas प्राइमरी ज़रुरत के सामान हैं जिनकी आपूर्ति अत्यंत आवश्यक है

विकास जैन के मुताबिक, अगर फैक्ट्रियों से डिस्ट्रिब्यूटर तक माल नहीं पहुंचा, तो आगे की राह मुश्किलों से भरी हो सकती है , खुदा ऐसा न करे .

फैक्ट्री मालिकों को सरकार से ज़रूरी सामानों की फैक्ट्री चलाने की अनुमति मिली हुई है, वो फैक्ट्री चलाना भी चाह रहा है लेकिन फैक्ट्रियों के पास लेबर ही नहीं है. प्रवासी मज़दूर अपने घरों को लौट गए हैं. वहीं परमानेंट वर्कर भी फैक्टियों में नहीं आ रहे हैं. उनको बुलाया जा रहा है तो भी नहो आरहे हैं , कोरोना के संक्रमण से ज़्यादा उनको पुलिस और QUARANTINE का डर सता रहा है , कह रहा है अगर Qarantine में जाना पद गया तो हम बर्बाद होजाएंगे हालाँकि यह जानकारी के अभाव में होरहा है , लेकिन मीडिया में आने वाले समाचार से वो भयभीत हैं की अस्पतालों मैं टी डॉक्टर और नर्स ही बीमार पड़ रही हैं तो हमारा क्या होगा , किसी हद तक सही है किन्तु ऐसा अधिकतर नहीं है , इसके चलते सिर्फ़ 10 या 15 प्रतिशत वर्कर ही काम पर आ रहे हैं.

सूत्रों के अनुसार पीएचडी चैंबर ऑफ कॉमर्स में रिटेल कमिटी के चेयरमैन साकेत डालमिया कहते हैं, “अगले 10 से 15 दिन और काम चल जाएगा, क्योंकि जो ब्रैंड पहले कम बिकते थे, अब वो इसकी पूर्ती कर देंगे .

आपको किसान कैचअप नहीं मिलेगा तो , मैगी केचअप खरीदेंगे , मैगी का नूडल नहीं मिलेगा तो आप दूसरा खोजेंगे. आपको शक्तिभोग आटा नहीं मिलेगा तो दूसरा विकल्प देखेंगे. लेकिन उसके बाद चुनौती खड़ी हो जाएगी. इसलिए ज़रूरी है कि फैक्ट्रियों को चलाने के लिए मज़बूत क़दम उठाए जाएं.”

इसमें अगर ख़ास तौर पर खाने के सामान की बात करें तो विकास जैन के मुताबिक, फूड factories लगातार नहीं चलने से बहुत नुकसान झेल रही हैं.जो Ultiamtely देश का ही नुकसान है .

वो बताते हैं, “किसी भी फूड फैक्ट्री की लाइन लगातार चलानी पड़ती है, क्योंकि फैक्ट्री में हाइजीन, स्टैंडर्ड MAINTAIN रखकने के लिए उसका चालू रखना ज़रूरी होता है. उसके साथ ही उसे माइक्रो बायोलॉजी भी MAINTAIN करनी होती है. लेकिन अगर लाइन स्टार्ट और स्टॉप पर चलती है तो फैक्ट्री की कॉस्ट बहुत बढ़ जाती है, क्योंकि उसे बार-बार साफ करके चलाना और फिर उसे सेनेटाइज़ करना पड़ता है. स्टार्ट – स्टॉप की वजह से बीच-बीच में प्रोडक्ट ख़राब होने का ख़तरा भी रहता है.”

साकेत डालमिया का कहना है की फैक्ट्रियों को इसलिए अपना उत्पादन बीच-बीच में रोकना पड़ रहा है क्योंकि ट्रक ड्राइवर भी कम हैं, इसलिए बहुत कम चक्कर लगा रहे हैं.

आटा, दाल, चावल

इस बीच एक अच्छी खबर यह है की , दिल्ली फूड ग्रेन एसोसिएशन के अध्यक्ष नरेश गुप्ता कहते हैं कि फिलहाल दिल्ली और आस-पास के इलाक़ों में आटा, दाल, चावल, तेल जैसे ज़रूरी सामानों की किल्लत तो नहीं है. लेकिन आने वाले वक्त में इस किल्लत से तभी बचा जा सकता है, अगर फूड ग्रेन की ट्रांसपोर्टेशन का फ्लो बना रहे.जिसके आइंदा LOCDOWN की वजह से प्रभावित होने की आशंका है , इसको समय रहते ही MANAGE करना होगा , और उम्मीद है सर्कार इसपर काम कर रही होगी .

नरेश गुप्ता ने कहा कि ज़रूरी सामान की चेन कमज़ोर होगी तो सामान लोगों तक कहां से पहुंचेगा? उनकी भी यही चिंता है की दिल्ली आउट metro cities से लेबर अपने घरों को चली गई है. ट्रक ड्राइवर नहीं हैं.यह एक समस्या है इसको ठीक करना बहुत ज़रूरी होगा .

वो कहते हैं, “ट्रक वालों को रास्ते में ना कहीं चाय-पानी मिलता और ना कहीं खाना मिलता है. कुछ सामान का ट्रांसपोर्टेशन हो भी रहा है तो किराए ज़्यादा हो गया हैं. जैसे मध्य प्रदेश से आने वाला चने का भाड़ा पहले 150 रुपए प्रति क्विंटल था जो अब प्रति क्विंटल ढाई सौ रुपए होगया है , आइंदा लॉडोन की वजह से और भी बढ़ सकता है .” ऐस मानना है नरेश गुप्ता का

लेबर की कमी की वजह से फूड ग्रेन की ज़्यादातर पैकेजिंग इंडस्ट्री बंद हैं, जिन्हें वो खोले जाने की मांग करते हैं. वो कहते हैं कि अगर मिल में आटा बना तो उसे पैक भी तो करना पड़ेगा. इस सब पर कोई ठोस योजना नहीं बानी जिसकी वजह से यह खतरे मंडरा रहे हैं , खुदा करे सब ठीक रहे यही दुआ है हमारी .

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यह ज़रूर है ऐसे में METRO CITIES से लौटे लाखों प्रवासी मज़दूरों की एहमियत का भी अंदाज़ा होजायेगा .जिनको अभी तक सिर्फ मज़दूर से ज़्यादा कुछ नहीं समझा जाता था , जबकि यह हमारे लिए श्रम दूत होते हैं

आगे चलते हैं , इसी तरह अगर चावल तैयार है, लेकिन उसे पैक करने के लिए थैला नहीं मिलेगा तो कैसे काम चलेगा. गेहूं तैयार है और गेहूं का बोरा नहीं मिलेगा तो कैसे काम चलेगा.ऐसे में packaging labour के महत्व का भी अंदाजा हो रहा है , कितना महत्व है हमारी ज़िन्दिगियों में लेबर का

लेबर और ट्रांस्पोर्टेशन असल दिक़्क़त

व्यापारियों के शीर्ष संगठन कॉन्फेडरेशन ऑफ आल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) ने कहा है कि देश भर में ज़रूरी सामान की आपूर्ति को बनाए रखना एक बड़ी चुनौती बनकर उभरेगा .इस सबके लिए LABOUR का ज़िंदा रहना ज़रूरी है , शायद क़ुदरत ने मज़दूर के महत्व को भी बताना ज़रूरी समझा हो .

कैट, ऑल इंडियन ट्रांसपोर्टर्स वेलफेयर एसोसिएशन से इस बारे में चर्चा कर रही है, जिससे उनके मुताबिक़, पिछले दो-तीन दिन में स्थिति कुछ बेहतर हुई है. लेकिन अभी भी ट्रांसपोर्ट पूरी तरीके से ऑपरेट नहीं हो रहा है.

दअसल सरकार ने पहले ट्रकों से सिर्फ ज़रूरी सामानों के ट्रांसपोर्टेशन को अनुमति दी थी. लेकिन अगर ट्रकों को किसी एक जगह से ज़रूरी सामान उठाना है तो वो वहां तक खाली तो जाएगा नहीं, इस नुकसान के बारे में सोचकर कई ट्रक operators रुक गए. एक हफ्ते बाद सरकार ने कहा कि अब गैर-ज़रूरी सामानों को लेकर भी ट्रक चल सकते हैं, लेकिन तबतक अक्सर drivers , cleaners अपने घरों को लौट चुके थे.

कैट के अध्यक्ष प्रवीण खंडेलवाल ने बताय कि स्पलाई चेन से जुड़े सभी वर्गों की आपसी भागीदारी बहुत ज़रूरी है. उन्होंने कहा कि थोक व्यापारियों/वितरकों, खुदरा विक्रेताओं, निर्माताओं या उत्पादकों, ट्रांसपोर्टरों, कूरियर सेवाओं, आवश्यक वस्तुओं के लिए ज़रूरी कच्चे माल निर्माताओं या उत्पादकों समेत पैकेजिंग Products के उत्पादकों के बीच ज़्यादा तालमेल की ज़रूरत है.

हमारा भी इस सम्बन्ध में एक सुझाव है की केंद्रीय गृह मंत्रालय , श्रम एवं रोज़गार मंत्रालय और वाणिज्य मंत्रालय एक टास्क फोर्स बनायें जिसमें सभी के प्रतिनिधि हों. वो रोज़ वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के ज़रिए मिले, और सप्लाई चेन को सुचारु रूप से चलाने को सुनिश्चित करें तो किसी भी आने वाली परेशानी से निपटने की आशा नज़र आती है .

हालाँकि पीएचडी चैंबर ऑफ कॉमर्स में रिटेल कमिटी के को-चेयरमैनन प्रदीप अग्रवाल का कहना था कि ज़रूरी सामान तैयार करने वाली फैक्टियों के मालिकों से सरकार की बातचीत चल रही है. सरकार इस सम्बन्ध में शायद कोई फैसला जल्द लेसकती है कि ज़रूरी सामान तैयार करने वाली फैक्ट्रियां चलती रहें.

ये सुझाव भी दिए जा रहे हैं कि उन प्लांट्स को प्राथमिकता दी जानी चाहिए, जिनके वर्कर को वहीं रहने की जगह दी जाती है या जिन्हें ज़्यादा दूर तक ट्रेवल नहीं करना पड़ता. साथ ही मालिक, वर्करों को खाना और सही हेल्थकेयर दें और सफाई सुथराई का पूरा ध्यान रखें.

Fast Moving Consumer Goods (FMCG) भारतीय अर्थव्यवस्था में चौथा सबसे बड़ा सेक्टर है. यह आर्गेनाईजेशन ज़रूरी Raw Meterial , सस्ते लेबर और पूरी वेल्यू चेन में मौजूदगी होने की वजह से भारत की मार्केट में इसका बड़ा महत्व है .

हम आप्को बता दें की 2017-18 में FMCG सेक्टर की कमाई करीब तीन लाख 68 हज़ार करोड़ रुपए रही थी, जिसके 2020 तक बढ़कर करीब सात लाख 25 हज़ार करोड़ रुपए होने का अनुमान था. ग्रामीण इलाक़ों का इसमें करीब 45 से 50 प्रतिशत योगदान माना जाता है.

दोस्तों हम आपके लिए हाज़िर हुए थे आइंदा lockdown के बाद चुनौतियों और समाधान के कुछ स्टेटिस्टिक्स लेकर आशा है आपको यह Programme पसंद आया होगा , जल्द हाज़िर होंगे किसी ऐसे ही दुसरे Chapter को लेकर ,आप बने रहें हमारे साथ , और उसके लिए अपने चैनल यानी Times of Pedia को सब्सक्राइब करलें ताकि हर एक नया अपडेट आपके साथ साझा किया जा सके , शुक्रिया

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