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ए एंड यू तिब्बिया कॉलेज को हकीम अजमल खां आयुष विश्वविद्यालय के रूप में विकसित करने की मांग.

ए एंड यू तिब्बिया कॉलेज को हकीम अजमल खां आयुष विश्वविद्यालय के रूप में विकसित करने की मांग.

स्वतंत्रता सेनानी हकीम अजमल खां द्वारा देश के विकास में दिए गए योगदान को याद करने के लिए सोमवार को दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग (डीएमसी) में एक सेमिनार का आयोजन किया गया। सेमिनार के बाद सर्वसम्मति से एक प्रस्ताव पारित किया गया, जिसमें दिल्ली सरकार से यह मांग की गई कि हकीम अजमल खां द्वारा करोलबाग में स्थापित ए एंड यू तिब्बिया कॉलेज को हकीम अजमल खां आयुष विश्वविद्यालय के रूप में विकसित किया जाए। क्योंकि तिब्बिया कॉलेज के पास 33 एकड़ से ज्यादा जमीन है और वह 102 वर्ष पूरे कर चुका है। इसलिए उसका यह अधिकार बनता है कि उसे विश्वविद्यालय के रूप में तरक्की दी जाए।

आयुर्वेद और यूनानी दो बहुत ही प्रमुख चिकित्सा पद्धतियां हैं जो प्राकृतिक तरीकों का उपयोग करती हैं। यूनानी चिकित्सा आमतौर पर हर्बल दवाओं, आहार संबंधी सलाह और नियमित उपचार का उपयोग करती है। अस्थमा और जोड़ों के दर्द जैसी बीमारियों को ठीक करने में यूनानी दवाओं का रिकॉर्ड बेहद कारगर रहा है। कुछ अध्ययनों से यह भी पता चलता है कि त्वचा के लिए यूनानी दवाएं गंभीर चिकित्सा स्थितियों जैसे कि सोरायसिस और ल्यूकेमिया को एक हद तक ठीक कर सकती हैं, जिन्का इलाज एलोपैथी में भी नहीं है, इसके अलावा यह हृदय संबंधी समस्याओं, पेट की बीमरियों और मानसिक रोगों के लिए भी काफी मददगार रहा है।
चिकित्सकों की माने तो यूनानी दवाएं विशेष रूप से हमारी त्वचा और बालों को सूट करती हैं, क्योंकि इसके इंग्रीडियंट्स से कोई साइड इफेक्ट नहीं है। प्राकृतिक उत्पाद विषाक्त पदार्थों को आसानी से बाहर निकालने के लिए त्वचा की क्षमता को बढ़ावा देती हैं।

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यूनानी चिकित्सा पद्धति का भारत में एक लंबा और शानदार रिकार्ड रहा है। यूनानी चिकित्सा ने कई बड़े इलाज किए, और भारत में अपनी जड़ जमाई लेकिन अफ़सोस की बात है की आज भी यूनानी को वो जगह नहीं मिल पाई है जो आयुर्वेद ने हासिल की है.

भारत में यूनानी चिकित्सा पद्धति की शुरूआत 10 वी शताब्दी से मानी जाती हैं, भारत में यूनानी चिकित्सा को पुनर्जीवित कर आधुनिक रूप देनें का श्रेय हकीम अजमल खान को जाता हैैं । हकीम अजमल खान के प्रयासो से ही दिल्ली में यूनानी चिकित्सा में पढा़ई हेतू “तिब्बतिया कालेज” की स्थापना हुई और वो भारतीय मुस्लिम राष्ट्रवादी राजनेता एवं स्वतंत्रता सेनानी थे। उन्हें बीसवीं शताब्दी के आरम्भ में दिल्ली में तिब्बिया कॉलेज की स्थापना करके भारत में यूनानी चिकित्सा का पुनरुत्थान करने के लिए जाना जाता है.

यूनानी की किताब उर्दू या फारसी में लिखी होती है है जबकी आयुर्वेद की संस्कृत में, दावाओं को भी धर्म के नाम पर अलग किया जा रहा है. दिल्ली सरकार से यह मांग की गई कि हकीम अजमल खां द्वारा करोलबाग में स्थापित ए एंड यू तिब्बिया कॉलेज को हकीम अजमल खां आयुष विश्वविद्यालय के रूप में विकसित किया जाए, ये बात या मांग यूनानी के इतिहास और फायदो को देखते हुए काफी हद तक ठीक है।

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सरकार को यूनानी चिकित्सा को आगे बढ़ने के लिए ज्यादा से ज्यादा यूनानी अस्पताल या कॉलेज खोलने की ज़रुरत है ताकी यूनानी केवल इतिहास न रह जाए और अपने इलाज के लिए जानी जाने वाली अखंड चिकित्सा आगे तक बड़े और लोगो के खातिर काम आए जिस्की वजह से मरीजो को फायदा पहुंचे. यूनानी हिंदुस्तान की शान है, और इसमे कोई शक नहीं की ये आगे भी बरकरार रहेगी.

सेमिनार में दिल्ली वक्फ बोर्ड के चेयरमैन अमानतुल्लाह खान मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रहे। जबकि दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग के चेयरमैन जाकिर खान के साथ आयोग के मेंबर एपीएस बिंदा और नैंसी बार्लो ने विशेष योगदान दिया। सेमिनार के दौरान लम्बे वक्त तक यूनानी में विशेष योगदान और वक्त तक लोगों की सेवा करने के लिए डॉक्टर सैयद अहमद खान को सम्मानित किया गया। इसके साथ ही तिहाड़ जेल के सीएमओ आयुष प्रोफेसर डॉक्टर इदरीस को भी उनकी सेवाएं के लिए सम्मानित किया गया।

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