अदालतों के राजनीतिकरण और सियासी दबाव के बावजूद अगर कहीं इंसाफ़ बचा है तो वो अदालतें ही हैं , इसलिए हर ज़ुल्म के ख़िलाफ़ अदालत का दरवाज़ा एक बार ज़रूर खटखटाना चाहिए
दिल्ली पुलिस के 3 पुलिस कर्मियों द्वारा 2 मुस्लिम लड़को को बीफ की सप्लाई करने के लिए, ग़ैर क़ानूनी तरीके से अपहरण करके बुरी तरह मारपीट व चाकू से घायल करने व पैसे छीनने तथा रिश्वत लेने के आरोप में एन्टी करप्शन एक्ट व अन्य धाराओं में केस दर्ज किया गया है.
केस दर्ज होने के बाद तीनों पुलिसकर्मी फरार हो गए, और मुस्लिम युवकों को डरा धमका कर कंप्लेंट वापस लेने का दवाब बनाया . पीड़ित मुस्लिम युवकों से एक एप्पलीकेशन भी थाने में केस वापस लेने के लिए दिलवाई गयी । गिरफ्तारी से बचने के लिए तीनो पुलिसकर्मियों ने अग्रिम ज़मानत (एंटीसिपेटरी बैल) की अर्ज़ी राऊज़ एवेन्यू कोर्ट में दाखिल की ।
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लेकिन पुलिस कर्मियों की तमाम ताक़त और धौंस के बावजूद मुस्लिम युवक ज़मानत की अर्जी को चुनौती देने कोर्ट में पहुँच गए . जहां स्पेशल जज श्री दिग विजय सिंह ने, मुस्लिम युवकों के बयान को गंभीरता से सुना .
स्पेशल जज ने पुलिस के दबाव , केस की गंभीरता और पुलिसकर्मियों द्वारा आगे गवाहों व सबूतों से छेड़छाड़ करने की संभावना के चलते पुलिसकर्मियों की अग्रिम ज़मानत की अर्ज़ी को ख़ारिज कर दिया।
इस पूरे मामले को प्रकाशित करने का तातपर्य यह है कि इस प्रकार के पुलिस द्वारा दबाव बनाने के केस में खामोश नहीं बैठना चाहिए . इन्साफ लेने के लिए अदालतों से ज़रूर संपर्क करना चाहिए . लेकिन शर्त एहि है कि मुद्दई हक़ पर होना चाहिए .
क्योंकि अदालतों में अभी भी इंसाफ़ की उम्मीद बची है . और कई जज तो इंसाफ़ दिलाने में बहुत ही दिलचस्पी रखते हैं बशर्ते ज़ुल्म के ख़िलाफ़ पर्याप्त सुबूत मौजूद हों .