देश में जिस तरह पिछले 4 वर्षों से जुमले बाज़ी और नफरत की सरकार चल रही है, वो सरकार भी अच्छी है किसके लिए यह आप बताएं !!!!वैसे एक जुमला प्रधान सेवक की ज़बान पर आम है पिछले 60 वर्षों में देश में कुछ नहीं हुआ” , और वो सरकार जिसने लगभग 60 वर्ष देश पर हुकूमत की बहुत अच्छी न थी , यह सच है ….
पिछले 4 वर्षों में जो हुआ वो वास्तव में 60 वर्षों में नहीं हुआ ,जैसे लव जिहाद , गाओ रक्षा के नाम पर मोब लिंचिंग , 3तलाक़ बिल की अधूरी मंज़ूरी,सुप्रीम कोर्ट के जजों का पब्लिक की अदालत यानी मीडिया के सामने अपना दुःख ब्यान करने जैसे कई और नए काम वाक़ई 60 वर्षों में नहीं हुए … यह भी सच है ।
अब इस होने और न होने का श्रय किसको देंगे आप?, आप जाने …..मैं तो देश की जनता को ही दुंगा जिसने इस सरकार को चुना .और उस सरकार को हटाया ,, मगर सरकार बदलने का फायदा या नुकसान क्या हुआ यह भी जनता बताएगी…और अब शायद बताने भी लगी है मगर बटन दबाकर…लेकिन यह बटन ही तो है न जाने कब कहाँ और किस तरफ दब जाए यह भी नहीं पता ….जनता ही बताएगी . यानी आप बताएँगे .
धर्म का रास्ता जो मोहब्बतों और विकास के लिए इस्तेमाल होना चाहिए था वो नफरतों और विनाश के लिए उस समय भी हुआ और आज तो जमकर होरहा .लेकिन जब धर्म का प्रयोग मोह ,माया,सत्ता और लालच के लिए होता है , चाहे वो जोन्स धर्म हो .. तो इंसान अधर्मी होने लगता है .और अधर्म का परिणाम सिर्फ विनाश होता है .
धर्म की परिभाषा समझें
धर्म नाम है पूर्ण समर्पण और विशवास का , उस शक्ति के प्रत्यक्ष (सामने) जिसने पहले रचा तमाम सृष्टि को और फिर बनाया इंसान को बहुत हसीन और अक़्ल वाला .
धर्म नाम है उसकी बनाई सभी मख्लूक़ (Creations) से प्यार करने का और उसके प्रति सहानुभूति (हमदर्दी ) का .
धर्म नाम है खुद तकलीफ उठाकर दूसरों को सुख देने का .धर्म नाम है इन्साफ का , अधिकारों के संतुलन का .धर्म नाम है सम्मान करने और सेवा करने का .
मगर कहीं नहीं मिलता यह वाला धर्म क्या करूँ .कहाँ तलाश करूँ . गूगल बाबा तू ही बतादे …..मगर इसके पास तो वही है जो डाला है पाखंडियों ने . चलो लौट चलें फितरत यानि क़ुदरत की ओर , क़ुदरत की ओर जिसने हमें बनाया ,और सोचने की शक्ति दी . मगर हम उसमें ग़ौर और विमर्श नहीं करते .अरे यह धर्म पर कहाँ आगये , बात तो 60 साल बनाम 4 साल सरकार की चल रही थी , चलो आजकल राष्ट्र भक्त धारक की बाते करने लगे हैं तो उनको समझाना था की धर्म क्या है .मगर राष्ट्र भक्तों को धर्म या भक्ति समझाना टेढ़ी खीर है .चलो लौटें सरकार की तरफ ……
देश की जनता के पास सरकार चुनने का आधार ही ग़लत है , जनता पार्टी या personality के आधार पर सरकारों को चुनती है ,अब इसमें एक नया बिगाड़ यह आया है साम्प्रदायिकता और नफ़रत का आधार है और अब प्रायोजित राष्ट्र भक्ति के आधार पर सरकारों को चुना जाने लगा है .
कितनी ज़्यादा नफ़रत की जाए किसी ख़ास मज़हब या जाति के मानने वालों से , अब इस को ही आधार बनाये जाने को इलेक्शन का मुद्दा बनाया जाने लगा है . कहाँ जा रही है देश की डगर .ज़रा समझो …नफरत ऐसी आग है जो सामने वाले का ही नहीं खुद का घर भी फूँक कर ही बुझती है मिसालें दुनिया की सामने हैं …
असल में सरकार ईमानदारी और नीतियों के आधार (बुन्याद) पर चुनना था नाकि पार्टी या Personality कि बुनियाद पर , पार्टी असल नहीं पालिसी असल है .आज नफ़रत की पालिसी के आधार पर चुनी जाने वाली सरकार से मोहब्बतों और सद्भाव की उम्मीद कैसे की जासकती है ? वैसे रफ्ता रफ्ता देश की जनता सबक़ सिखाने लगी है जिस तरह इससे पहली सरकार को सबक़ सिखाया था . देखना यह है की इस सबक़ से 60 साल वाली सरकार लाभ उठाती है या 4 साल वाली . परीक्षा दोनों की ही होनी है .
सब कुछ लुटाकर भी 60 साल वाली सरकार यानि कांग्रेस या सेक्युलर Parties के मोर्चे को वर्तमान में छुट पुट जीत से खुशफहमी का शिकार होने की ज़रुरत नहीं है , और बहुत सूझ बूझ के साथ नफरतो और खौफ के माहौल का मुक़ाबला करना है चूंकि इसके साथ चौथा पिलर खड़ा था और आज भी खड़ा है हालांकि आज लोकतंत्र के चौथे पिलर की करतूत जो सामने आये हैं वो किसी से छुपे नहीं हैं . मीडिया कर्मी या अधिकारी या मालिकान इस हद तक गिर जाएंगे इससे देश की जनता को अवगत कराने का काम जो कोबरा पोस्ट ने किया है वो देश की दशा को बदलने का काम कर सकता है..Editor’s Desk