देश दुनिया में सरकारी नातियों और योजनाओं का भले ही प्रचार जमकर होता हो मगर धरातल पर हालात कुछ विपरीत ही होते हैं ,मिसाल के तौर पर बीजू पटनायक द्वारा ओडिशा में ‘महापरायण’ योजना ,जिसके तहत शव को सरकारी अस्पताल से मृतक के घर तक पहुंचाने के लिए मुफ्त परिवहन की सुविधा दी जाती है , ‘बेटी बचाओ’,केंद्रीय सरकार की योजना जिसके लिए देश के बड़े बड़े सेलिब्रटीज़ ,सुपर स्टार्स को विज्ञापन का ठेका दिया जा चूका है और TB (तपेदिक ) को जड़ से ख़तम करने के सरकारी बहुत से वादे किये गए हैं?
आपने कभी किसी सरकार के ”वादा पत्र” में टीबी से मुक्ति का जिक्र सुना है? मगर इससे पहले हम आपको कालाहांडी लिए चलते हैं यह कालाहांडी है क्या? यह वही जगह है जहां अकाल लंबे काल से डेरा डाले रहा है. यह वह जगह है जहां पहुंचने से पहले सरकार की दमदार और स्मार्ट योजनाएं दम तोड़ देती हैं. कालाहांडी की तफ्सीली जानकारी चाहिए तो आलोक तोमर की किताब ‘हरा-भरा अकाल’ से मिल जायेगी . तो ऐसे कई अकालों और वादों की नई मिसाल बनकर सामने आया कालाहांडी का दीना माझी.जिसके कानों में प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री द्वारा बनाई योजनाओं के सजाये सपने और भाषण गूँज रहे थे ,साथ ही लोकतंत्र में आज़ादी का प्रतीक कही जाने वाली ग़रीब द्वारा उड़ते ही काट जाने वाली पतंग जो धीरे धीरे आसमान की बुलंदियों को छू रही थी यानी दीना की पत्नी ‘अमंग’ जो TB की बीमारी से मर जाने के बाद दीना के कन्धों पर वज़नी लाश की शक्ल में आखरी सफर तय कर रही थी ,साथ में 12 साल की बेटी जिसकी आँखों के आंसू मां की लंबी बेमारी के चलते छोटी उम्र में घर की ज़िम्मेदारी के सफर में खुश्क होगये थे ,दीना को ओडिशा सरकार की उस योजना की भी याद आई होगी, जिसे नवीन पटनायक सरकार ने फरवरी में शुरू किया था.. ‘महापरायण’ योजना. जिसके तहत शव को सरकारी अस्पताल से मृतक के घर तक पहुंचाने के लिए मुफ्त परिवहन की सुविधा है. तो यह दीना को क्यों नहीं मिली. क्या यह योजना उस जिला मुख्यालय के अस्पताल तक पहुंचने से पहले अपाहिज हो गई, जहां टीबी से अमंग की मौत हुई. माझी ने बहुत कोशिश की लेकिन इस देश में बहुत सी चीज़ें आपकी हैसियत को देखकर तय होती है.यहाँ तक की इलाज भी , और बाक़ी चीज़ों को तो आप जानते ही हैं !
दीना माझी को अस्पताल के अधिकारियों से किसी तरह की मदद नहीं मिली तो उन्होंने पत्नी के शव को एक कपड़े में लपेटा और कंधे पर लादकर भवानीपटना से करीब 60 किलोमीटर दूर रामपुर ब्लॉक के मेलघारा गांव के लिए पैदल चल पड़े . इसके बाद कुछ स्थानीय मीडिया ने उन्हें देखा. जिला कलेक्टर को फोन किया और फिर शेष 50 किलोमीटर की यात्रा के लिए एक एम्बुलेंस की व्यवस्था की गई.ये वही मीडिया है जिसको अक्सर आलोचनाओं का सामना करना पड़ता है !
सवाल यह पैदा होता है की क्या सरकारी वादों के इसी तरह उजड़े चमन बनते रहेंगे ? और कमज़ोर व ग़रीब दीना मांझी की ऐसे ही परीक्षा ली जाती रहेगी या फिर आज़ादी के मतवालों के भारत में स्वस्थ ,शिक्षा और सामाजिक न्याय के क्षेत्र में इन्साफ की कोई किरण भी जागेगी और भारत का हर वर्ग कहेगा मेरा भारत बदल गया है , या फिर फर्श पर बैठाकर अमीर लोग ग़रीबों से नारा ही लगवाते रहेंगे बोलो , ज़ोर से बोलो “मेरा भारत महान” !!
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दीना मांझी के साथ और भी मांझी याद आगये ,दशरथ मांझी (माउंटेन मैन) .. दशरथ मांझी को गहलौर पहाड़ काटकर रास्ता बनाने का जूनून तब सवार हुया जब पहाड़ के दूसरे छोर पर लकड़ी काट रहे अपने पति के लिए खाना ले जाने के क्रम में उनकी पत्नी फगुनी पहाड़ के दर्रे में गिर गयी और उनकी मौत होगई ।वैसे तो मौत का वक़्त तै है किन्तु उनकी पत्नी की मौत दवाइयों के अभाव में हो गई, क्योंकि बाजार दूर था। समय पर दवा नहीं मिल सकी। यह बात दशरथ मांझी के मन में गड गई। इसके बाद दशरथ मांझी ने संकल्प लिया कि वह अकेले दम पर पहाड़ के बीचों बीच से रास्ता निकलेगा और अतरी व वजीरगंज की दूरी को कम करेगा।आखिर उन्होंने अपने हौसले से पहाड़ को मनुष्य की शक्ति का लोहा मनवाया .
तीसरे महाराष्ट्र के वाशिम जिले में एक और बापूराव मांझी की कहानी भी दिलचस्प है ,उनकी पत्नी एक दिन सवर्णों के कुएं से पानी भरने गईं तो गांव के लोगों ने उन्हें अपमानित कर भगा दिया गया और तभी बापूराव ने तय किया कि वह अपनी पत्नी के लिए कुआं खोदेंगे। बापूराव मांझी ने अपनी पत्नी की बे इज़्ज़ती को चुनौती मानकर रोज़ाना 6 घंटे की कड़ी मेहनत कर तब तक पथरीली ज़मीन को काटते रहे जब तक पानी नहीं निकल आया वो पथरीली ज़मीन के सीने को चीरकर इंसानी अज़्म ओ होंसले की मिसाल बने ।बापूराव को भी दशरथ मांझी की तरह उनके परिवार वालों ने इसे उनकी सनक समझा , क्योंकि वहां जमीन पथरीली और उसपर सूखे के कारण आसपास के तीन कुएं पहले ही सूख चुके थे।
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