भारत की विदेश नीतिओं की भले ही देश में सकारात्मक चर्चा हो रही हो लेकिन अमेरिका और यूरोपीय देशों से भारत के बढ़ते आर्थिक संबंधों को कुछ आलोचक अच्छा शगुन नहीं मान रहे , हालांकि वाइब्रेंट गुजरात के विषय पर गाँधी नगर में आयोजित भव्ये संगोष्ठी में वर्ल्ड बैंक के अध्यक्ष ”जिम यांग किम ” ने यह माना की भारत की तरक़्क़ी में ज़ात बिरादरी की बुन्याद पर भेदभाव एक बड़ी रुकावट बन सकता है .मगर वो यह भूल गए की सांप्रदायिक माहौल उससे भी बड़ा खतरा है जो सरकार चलाने वाली पार्टी का मुख्य गुप्त मुद्दा रही है . हालांकि प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र भाई मोदी इस बात की कोशिश अपने बयानों में करते रहे हैं की धर्म के आधार पर बढ़ती खाई को पाटा जाए किन्तु ज़मीनी सतह पर वो इसको कितना लागू कर पाएंगे यह उनके अतीत पर और उनकी नीयत पर भी काफी निर्भर करेगा .
दरअसल किसी भी देश की तरक़्क़ी का राज़ वहाँ की राजनितिक स्थिरता पर निर्भर करता है I ,राजनितिक स्थिरता आर्थिक मज़बूती पर निर्भर करती है और आर्थिक मज़बूती का आधार साम्प्रदायिक एकता पर तिकी होती है . दुनिआ की तारीख इस बात की साक्षी (गवाह ) है की जिन देशों में नस्ली या मज़हबी फसादात (दंगे ) होते रहे हैं वो देश आजतक तरक़्क़ी नहीं कर पाए हैं ,
आप देखेंगे की वाइब्रेंट गुजरात के विषय पर कांफ्रेंस में दुनिआ की जानी मानी हस्तिओं के बीच वर्ल्ड बैंक के अध्यक्ष की एक बहुत हम बात को देश की मूल धरा मीडिया ने LAGBHAG नकार दिया , जिसमें उन्होंने कहा था की देश की तरक़्क़ी में नस्ली भेद भाव बरही रुकावट है , शायद हमारी सर्कार में शामिल लोगों की विचार धरा से यह बात मेल नहीं खाती , वैसे भी हमारे मीडिया हाउसेस का व्वसायिकरण हो जाने की वजह से इस बात पर ख़ास ध्यान रहता है की बात वही की जाए जिसमें मीडिया हाउस का आर्थिक लाभ हो सके हालांकि कुछ अखबार या टीवी चैनल अभी इस बात का ध्यान रखते हैं की देश और मानव हित की बात हो .वाइब्रेंट गुजरात संगोष्ठी वाले दिन मुझे ठाकरे ब्रोठेर्स की बात याद आरही थी जो उन्होंने महाराष्ट्र असेंबली चुनाव के समय कही थी की ”नरेंद्र मोदी भारत के नहीं गुजरात के प्रधान मंत्री हैं ” यह कॉन्फ्रेंस यदि गुजरात वीब्रांट की जगह भारत विदरांत के नाम से होती तो उचित होता . कुल मिलकर बात यह है की देश की तरक़्क़ी जाती , प्रदेश , धर्म या वर्ग विशेष की तरक़्क़ी से नहीं बल्कि हर एक नागरिक की तरक़्क़ी में ही देश की तरक़्क़ी मुमकिन है . साम्प्रदायिकता , साज़िशें और नफरत की राजनीति देश को अपाहिज बनाने के सिवा कुछ नहीं . भारत की आर्थिक और राजनितिक स्थिरता से देश के दुश्मन भयभीत हैं साथ ही ईर्ष्या के भी शिकार हैं वो देश के भीतर अपने एजेंटों के माध्यम से नफरत और साम्प्रदायिकता का माहौल बनाये रखना चाहते हैं जिससे समय समय पर हमारी आर्थिक स्तिथि डगमगा जाती है अगर देश में सम्प्रायिक सोहाद्र का माहौल साज़गार रहे तो यक़ीनन भारत देश की विश्व शक्तियों में गिना जाने लगे. EDITOR’S DESK
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