देश के कामयाब सियासतदां और नाकाम प्रधानमंत्री कौन ? पाक को लव लेटर लिखना बंद हुआ और ना क्रॉस बॉर्डर टेररिज्म अलबत्ता दोस्ती के रिश्तों की सर्जरी शुरू हो गई ।सोशल मीडिया पर बैठे लोगों को पता नहीं कितनी तान्खुआह मिलती होगी ? जो भी मिलती हो या ना मिलती हो मगर अपनी ड्यूटी को बड़ी ज़िम्मदारी से निभाते हैं ये लोग ।देश में नफरतों का बीज बोना, समाज को वर्गों में बाटना,और उनके प्रिये नेता के बारे में यदि किसी का नकारात्मक बयान आ जाए तो उसके ऊपर गालियों की बरसात करना तथा जान से मार देने तक की धमकियां देना इन लोगों की ड्यूटी में शामिल है शायद ।अभिव्यक्ति की आज़ादी और लिखने के अधिकार को छीनने का मानो इन लोगों को ठेका दे दिया गया हो।यदि आप उनके मन की बात कह रहे हैं तो ठीक अगर कोई बात उनके नेता के खिलाफ आपने कही तो आपकी सोशल मीडिया पर तो कम से कम खैर नहीं है ।
अच्छा आप ये जानते हैं की देश में क्या घटा है और क्या बढ़ा है ।देश में आमजन की खरीदारी क्षमता (BUYING POWER) घटी ,एक्सपोर्ट घटा ,कारोबार घटा,रूपये की कीमत घटी,रोज़गार के अफसर घटे ,अमन चैन घटा मगर असहिष्णुता बढ़ी ,साम्प्रदायिकता बढ़ी, टेंशन बढ़ी ,बेरोज़गारी बढ़ी ,IMPORT बढ़ा ,डॉलर की रूपये के मुक़ाबले कीमत बढ़ी,अराजकता बढ़ी ,समाज में ख़ौफ़ और ह्रास बढ़ा और महँगाई बढ़ी ।
इसके लिए किसको ठहराओगे ज़िम्मेदार ? मोदी जी के अलावा कोई नाम बताना क्योंकि उनके बारे में कुछ भी नकारात्मक नहीं सुन पाएंगे वो लोग और में भी क्यों सुनूँ?आखिर प्रधानमंत्री हैं हमारे।मगर क्या करूँ मेरे कांधों पर भी ज़िम्मेदारी है पत्रकारिता की ,सच लिखने और इन्साफ दिलाने की।तो सच्चाई ये है कि उपरोक्त घटा और बढ़ा के लिए देश कि सत्ता धारी पार्टी ही ज़िम्मेदार होती है , देश में सामाजिक और सांप्रदायिक माहौल विकास की राह में एक बढ़ी रूकावट है जिसको दूर करने के लिए देश में सोहाद्र और सदभाव के माहौल की ज़रुरत हे जिसका लंबे समय से अकाल है ।देश में तीन तलाक़,यूनिफार्म सिविल कोर्ट,कश्मीर में लगातार अनरेस्ट,देश में जगह -जगह साम्प्रदायिकता का माहौल इन सब के चलते मेक इन इंडिया,डिजिटल इंडिया, स्वच्छ भारत अभियान, सब का साथ सब का विकास जैसे नारे बिलकुल बेमानी लगते हैं।देश में बढ़ता भगवाकरण मेक इन इंडिया के सपने को कभी साकार ना होने देगा मोदी जी को पहले इसपर सख्ती से पाबंदी लगानी होगी ।
उधर मियाँ की नवाज़िशों की बारिश कश्मीरियों पर है ,जब की बलूचिस्तान में बग़ावत का अलम बुलंद हो रहा है।पहले उसको संभालो मियां फिर कश्मीर को संभालना ,वैसे तो पाक की हमदर्दी की ज़रुरत फलस्तीनी मुसलमानो को कहीं ज़्यादा है जो 35 वर्षों से अपने ही मुल्क में आज़ादी की लड़ाई पत्थरों से लड़ रहे हैं और अब तो सहयोनि फ़ौज ने मुसलमानो को बेतुल मक़्दस में भी दाखिल होने पर पाबंदी लगा दी है पाक वहां अपनी ताक़त का इस्तेमाल करें उसके बाद सभी राहें खुल जाएंगी ।
इधर कश्मीर में अलहदगी पसंदों का झंडा बुलंद किया जा रहा है और भाई नरेंद्र मोदी जी बलूचिस्तान की आज़ादी का पहाड़ा पढ़ने में रुचि रखते हैं ,हमारे ख्याल से दोनों ही देश के रहनुमा अपने अपने मुल्कों की अवाम को बुनयादी सहूलतें देने तथा विकास और उन्नति की राह को हमवार करने में अपनी शक्ति लगाएं तो देशों का विकास भी होगा साथ ही क्षेत्र में भी अम्न आएगा और दोस्ती का माहौल बनेगा ,जितना हम समझे हैं हिन्द पाक की लड़ाई या टेंशन की वजह धार्मिक कट्टरपंथ नहीं है यह तो राजनैतिक है ,दोनों तरफ की जनता को जज़्बाती करके जिसका फायदा दोनों ही मुल्कों के रहनुमा उठाते रहे हैं ।आजके हालात में हिन्द को अंदरून मुल्क सोहाद्र और सांप्रदायिक एकता का माहौल बनाने की आवश्यकता है वहीँ पाक को भी अपने घरेलू मसलों को निमटाने की ज़रुरत है ।रहा सवाल हमारे देश में मुसलमानो के मसाइल का उसके लिए अभी भारत में ही सेक्युलर शक्तियां मौजूद हैं जो किसी भी असंवेधानिक कार्रवाई को ना होने देने केलिए सक्षम हैं अगर देश के मुसलमानो को लगा की ज़ुल्म के खिलाफ कोई नहीं बोल रहा ,सब कुछ असंवेधानिक और लोकतंत्र के खिलाफ होरहा है तब खुद बखुद ज़ालिम की बांह मरोड़ने के लिए क़ुदरत का डमरू घूमेगा और वो कहीं से भी शुरू होसकता है फिलहाल दोनों देश अपनी जनता को बुनयादी सहूलतें मोहय्या कराने का इंतज़ाम करें यही सच्चा राज धर्म होगा, और जनता भी अपने देशों के हुक्मरानों के तीन वफादार रहे और अपनी ज़िम्मेदारी को समझें अफवाहों से बचें और बचाएं ।editor’s desk