गज़ल
इंसानियत निभाता इंसान क्यों नहीं । ये जिंदगी भी इतनी आसान क्यों नहीं ।।१
जाता है छूट मुजरिम कानून है लचीला । फिर जेल में ही क़ैदी शैतान क्यों नहीं ।२
हम स्वार्थ में हैं डूबे सर से वो पांव तक । फिर ये गिला है रब से, सम्मान क्यों नहीं ।३
विश्वास डगमगाया कश्ती भॅवर में डूबी। केवल यही है कारण, अभिमान क्यों नहीं ।४
भटके हैं लोग सारे राहें न दीखती हैं । है बस यही हकीक़त संधान क्यों नहीं ।५
सब लोग ही बॅटे हैं एकमत नहीं है कोई । एक दूसरे से कोई अनजान क्यों नहीं ।६
लगता है मिल गया है ऐसा कोई रफ़ीक़ (दोस्त)। दुश्मन मेरा जहां में अब तक कोई नहीं ।७
अटल मुरादाबादी
ओज व व्यंग्य कवि
9650291108
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