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वो सितारा जो टूट गया, कमाल का था वो बा कमाल

वो सितारा जो टूट गया, कमाल का था वो बा कमाल

Ali Aadil khan ,Editor’s Desk

वो सितारा जो टूट गया, कमाल का था वो बा कमाल

रूठके बज़्म से ,सवाल करते हो
तुम भी नादाँ हो ,कमाल करते हो

सवालों का बादशाह सोगया

पत्रकारिता की Galaxy (आकाशगंगा ) में चमकता हुआ सितारा टूट गया .एक्चुअल पत्रकारिता का एक सूर्या अस्त होगया . में कमाल खान से कभी रू बरु न हो सका लेकिन उनकी पत्रकारिता के ज़रिये में उनकी शख्सियत को रोज़ महसूस करता था | वो कठिन समय में मुख़ालिफ़ हवाओं के बावजूद पत्रकारिता की कश्ती को बहुत हिम्मत और सलीक़े से खेते रहे .

लखनऊ में रहकर अयोध्या बाबरी मस्जिद वर्डिक्ट के फैसले पर जिस सहजता और निष्पक्षता और बहादुरी से अपने एहसास को अलफ़ाज़ में पिरोया वाक़ई एक कारनामे से कम न था . जिस वक़्त में Main stream मीडिया में ज़मीर बेचने की होड़ लगी हो उस वक़्त में तमाम तरह के Offers के बावजूद ईमानदारी , निष्ठां , और कर्मठता से अपने फ़राइज़ को बड़ी खूबी और शाइस्तगी से अंजाम देते रहे थे कमाल खान .

यूँ तो लखनऊ कई मानो में ख़ास रहा है मगर पत्रकारिता के मैदान में लखनऊ को एक नई पहचान दे गए कमाल खान . उनकी रिपोर्टिंग में अल्फ़ाज़ और अंदाज़ का ताना बाना उनके दर्शकों को एक दिलकश और आकर्षक चादर में ढांप लेता था गोया कमाल कह रहे हों अभी जायेगा नहीं में आपके साथ हूँ . उनका लहजा खबर से मुतास्सिर नहीं होता था बल्कि खुद खबर को अपना मोहताज बना लेता था , क्या खूब था कमाल का अंदाज़ . दिल चाहता था की कमाल खान बस बोलते ही रहे … मुद्दा या मोज़ू चाहे जितना भयानक या गंभीर हो मगर उनके अंदाज़ और आवाज़ से मुद्दा दिलसोज़ होने के बावजूद दिलकश लगने लगता था.

कमाल खान दरअसल सहाफत को अपना मज़हब समझते थे , जिसमें सच्चाई , ईमानदारी , और इन्साफपरस्ती होती थी , कोई मसाला नहीं होता था कमाल खान की Reports में … PTC यानी peace to camera पर वो बाक़ायदा मेहनत करते थे , महीनो और हफ़्तों को रिपोर्टिंग को कैमरे के सामने सेकेंडों में समेटने का हुनर जानते थे कमाल . वाक़ये की मालूमात के साथ उसका Context और नज़रियों को परखने की कला थी उनके पास . अपने पेशे में लगभग मुकम्मल थे कमाल .ख़बरों को अदब से खेलने की कमाल की महारत रखते थे ख़ान .वो क्या क्या थे , सब कुछ थे .क्या नहीं थे ???

वो ऋचा के शोहर और अमन के अब्बा होने के साथ एक अच्छे मुस्लमान भी थे . अपने मज़हब के पासदार थे . लेकिन जब मज़हबी मक़ामात की रिपोर्टिंग करते थे तो अंदाज़ा लगाना मुश्किल होता था की रिपोर्टर कमाल ख़ान हैं या कमल कुमार , यह जर्नलिज्म की ख़ासियत हुआ करती है , मगर सबकी नहीं . लेकिन कमाल इससे परिपूर्ण थे .

आखिर में आपको कमाल खान की एक तारीखी रिपोर्ट के साथ छोड़े जा रहा हूँ जो बाबरी मस्जिद राम जन्म भूमि पर आने वाले फैसले से कुछ पहले की है आपको कमाल ख़ान में कभी रहीम तो कभी रसखान नज़र आएंगे .ज़िंदगी भर दिग्गजों से सवाल करने वाले कमाल अब खुद भी फरिश्तों के सवालों से गुज़र चुके और उम्मीद है कामयाब रहे होंगे इंशाअल्लाह .

लेकिन कमाल भाई आपके लिए मेरे पास एक सहाफी की हैसियत से इससे बेहतर कोई ख़िराज ए अक़ीदत या श्रद्धा सुमन नहीं कि मैं आपके मिशन को ज़िंदा रखूँ ,मेरा वादा है कमाल ख़ान

 Kamaal Khan’s Wife Ruchi kumar

मगर
थी ज़रुरत अभी दुनिया को तुम्हारी ऐ कमाल
कौन पूछेगा इन अरबाब से वो तीखे से सवाल
यूँ तो बाक़ी हैं सुख़नवर अभी और जहाँ में
पर बे मिसाल थे और तुम थे बा कमाल

 

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