भारत के पड़ोसियों में बांग्लादेश का नाम गुड बुक में आता है . हमारे रिश्ते बांग्लादेह के साथ दुसरे पड़ोसियों के मुक़ाबले मुस्लिम देश होने के बावजूद अच्छे हैं . ज़ाहिर है किसी भी देश की विदेश नीति में इस बात का ख़्याल रखा जाता है कि उसके रिश्ते हमेशा अपने पड़ोसियों से ख़ास तौर से दोस्ताना हों . वैसे भी भारत ने बांग्लादश के जन्म में बड़ा किरदार अदा किया था आपको मालूम होगा .
लेकिन बांग्लादेश में पैदा होने वाले वर्तमान हालात के बाद वहां हसीना की पार्टी के सदस्यों , मंत्रियों और सहयोगियों पर जिस तरह हमले हुए वो स्वाभाविक थे .हमलावरों ने जाती धर्म देखकर नहीं बल्कि शेख हसीना कि पार्टी से जुड़ा होने के नाम पर उनको निशाना बनाया जिसमें 2 हिन्दू नेता भी शामिल थे .
किन्तु उसको हमारी मीडिया और Trollers ने जिस तरह से पेश किया वो भारत के न तो अंदरूनी मामलों के लिए और न ही विदेश नीति के पक्ष में हैं . हालाँकि इसके लिए भारत को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कई बार शर्मिंदगी का सामना करना पड़ा है .
ये नफ़रती trollers और मीडिया संसथान देश में बार बार हर वो साज़िश रचते हैं जिससे मुल्क कमज़ोर होता हो . और साथ ही पडोसी देशों से भी रिश्ते खराब होते हों . विदेश नीतियों के सुधार के लिए सरकार काफी म्हणत और कोशिश करती है और भारी रक़म भी इसके लिए देश की खर्च होती है .
इसलिए सबसे पहले इन नफ़रती Trollers को सुधारना हमारी सरकारों की प्राथमिकता में शामिल होना चाहिए . जबकि देश के नफ़रती और दुश्मन चिंटुओं के कृत्यों पर सरकारों की ख़ामोशी खुद सरकारों पर ही कई सवाल खड़े कर देती है .
2023 में श्रीलंका , 2024 में बांग्लादेश में सरकारों के तख्ता पलट होने के बाद पाकिस्तान ख़ुफ़िया एजेंसी ISI के पूर्व प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल फैज़ हामिद को पाकिस्तानी सेना ने अचानक गिरफ़्तार कर लिया है. खबर है कि कोर्ट मार्शल किया जा सकता है !
इसके बाद वहां भी सरकारी नीतियों के विरुद्ध जनता का ग़ुस्सा फूटकर सड़कों पर आने की आशंका जताई जा रही है . और विशेषज्ञों का मानना है कि 2025 या उससे पहले ही पाकिस्तान में भी वर्तमान सरकार का तख़्तापलट हो जाने की सम्भावना है .
इमरान खान के शासनकाल में पाकिस्तान आर्मी के सबसे ताकतवर लोगों में से गिने जाने वाले ISI के पूर्व प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल फैज़ हामिद को कहा जाता है. इमरान खान की सरकार गिरने के बाद से ही लेफ्टिनेंट जनरल फैज़ के ऊपर सियासी ख़तरे के बादल मंडराने लगे थे .
फैज़ पर आरोप है उन्होंने अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान की सरकार को Stablish करने में मदद की थी . अगर यह सही है तो देखना है कि आज उनकी गिरफ़्तारी के बाद तालिबान सरकार उनके इस अहसान का बदला किस शक्ल में चुकाती है ??
पाकिस्तान के पूर्व ISI चीफ़ पर लगाया गया आरोप अत्यंत बोगस और हास्यास्पद दिखाई पड़ता है परंतु बांग्लादेश में हालिया विद्रोह के फ़ौरन बाद पाकिस्तान आर्मी की जानिब से हुई यह कार्यवाई किसी गंभीर संकट की ओर इशारा करती है.
याद रहे पाकिस्तान में हमेशा फ़ौज की बालादस्ती रही है . और उसने जब चाहा है पाकिस्तान की जम्हूरी सरकार को बरतरफ़ करके अपना Control किया है . लेकिन यहाँ देखना यह भी ज़रूरी है कि क्या फ़ौज मुल्क में सियासी , आर्थिक या मज़हबी इस्तेहकाम दे पाई है ? अगर नहीं तो फिर फ़ौज का यह किरदार क्यों अमल में आता है ?
देखना यह भी होगा की पाकिस्तानी जम्हूरी हुकूमत अमेरिकी सहयोनि विचारधारा को मुल्क में लागू करवाना चाहती है या फिर फ़ौज अमरीकी Causes को सहयोग देती है . इसके बारे में ज़्यादा कुछ कहने की ज़रुरत नहीं है . दुनिया में बढ़ते कोलोनियल system पर नज़र दाल लेना काफी होगा .
इस बात का इमकान है की फ़ैज़ हामिद फ़ौज में इस बात का माहौल बना रहे थे कि इमरान ख़ान की रिहाई को यक़ीनी बनाकर उनको मुल्क की बागडोर दुबारा देदी जाए … और जिस तरह उनके साथ ना इंसाफ़ी हुई है उनकी जम्हूरि और अवामी हुकुमत को Sebotage किया गया है वो मुल्क की अवाम का अपमान है .
फ़ैज़ हामिद की गिरफ़्तारी के बाद पाकिस्तान में सरकारी बग़ावत के इमकान बढ़ गए हैं , जबकि इमरान ख़ान की गिरफ़्तारी के बाद से ही वहां जनता में भयानक ग़ुस्सा देखने को मिल रहा था . इमरान सहयोगी रोज़ाना उनके पक्ष में हज़ारों पोस्ट डालरहे हैं .
ऐसे में बांग्लादेश के बाद पाकिस्तान में हालिया सरकार के ख़िलाफ़ जनता सड़कों पर न आजाये इसका ख़तरा जताया जा रहा है .और हमारे देश में इसका क्या प्रभाव पड़ेगा इसके बारे में हमसे बेहतर आप जानते हैं .
लेकिन हम सब मिलकर इस बात की कोशिश कर सकते हैं की देश में इंसाफ़ व् इंसानियत के साथ लोकतंत्र और संविधान का बोलबाला हो. तानाशाही निज़ाम को नकारा जाए . देश के हर वर्ग , समुदाय , जाती , धर्म और क्षेत्र के अधिकारों और मर्यादाओं का सम्मान सुनिश्चित करने के लिए सरकारें अपनी संवैधानिक ज़िम्मेदारी निभाएं .
देश की जनता तख्ता पलट करने की बजाये सरकारों को समय समय पर सड़कों पर आकर अलर्ट दे. जनविरोधी नीतियों के ख़िलाफ़ जनता के प्रदर्शन को सरकार डेमोक्रॅटिकल्ल्य Control करे तानाशाह वाले अंदाज़ से जनता को नफ़रत है . सरकारें वक़्त रहते इसको समझ लें तो बेहतर है .
देश में बुलडोज़र वाली एकतरफ़ा नीति के बजाये नफ़रती चिंटुओं पर सरकारें तत्काल पाबंदी लगाएं .सद्भावना और सौहार्द के प्रोग्रामों का आयोजन कराये एहि देश , जनता और सरकारों के हक़ में होगा . . साथ ही मीडिया को अपने Programmes देश तथा जनहितकारी बनाने होंगे . अन्यथा जब आंधी चलेगी तो बख़्शे वो भी नहीं जाएंगे और ये भी नहीं जाएंगे .