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तालिबान का क़ब्ज़ा अफ़ग़ान सेना में भ्रष्टाचार और धोखेबाज़ी का नतीजा?

तालिबान का क़ब्ज़ा अफ़ग़ान सेना में भ्रष्टाचार और धोखेबाज़ी का नतीजा?

तालिबान क़ब्ज़े पर अमेरिकी राष्ट्रपति से BBC के नुमाइंदे की बात और वर्तमान हालात

सवाल: क्या अफगानिस्तान पर तालिबान का क़ब्ज़ा होना अब तय है?

जवाब: नहीं, ऐसा नहीं है.

सवाल: ऐसा क्यों?

जवाब: क्योंकि अफ़ग़ान सरकार के पास तीन लाख की संगठित फ़ौज है, एक वायु सेना है जबकि तालिबान की संख्या क़रीब 75 हज़ार है. क़ब्ज़ा होना तय नहीं है .

इसी पत्रकार वार्ता में बाइडन से पूछा गया कि क्या वे तालिबान पर भरोसा करते हैं? बाइडन ने जवाब में पूछा कि क्या यह गंभीर सवाल है? जब पत्रकार ने कहा कि ये बिलकुल गंभीर सवाल है तो बाइडन ने कहा, “नहीं, मैं नहीं करता.”

जब पत्रकार ने पूछा कि क्या आप तालिबान को देश सौंपने पर भरोसा करते हैं, तो बाइडन का जवाब था–“नहीं, मुझे तालिबान पर भरोसा नहीं है.”

कुछ अन्य सवालों के जवाब में बाइडन ने ये माना था कि 2001 के बाद से तालिबान सैन्य रूप से सबसे मज़बूत स्थिति में है, लेकिन साथ ही यह भी कहा था कि इस बात की संभावना बहुत कम है कि तालिबान हर ओर हावी हो जाए और पूरे देश पर काबिज़ हो जाए.

क़रीब एक महीने बाद जिस तरह तालिबान ने अफ़ग़ानिस्तान की राजधानी काबुल पर क़ब्ज़ा कर लिया है, ज़ाहिर है, अमेरिका को तालिबान की ताक़त और अफ़ग़ान सेनाओं की कमज़ोरी का रत्ती भर भी अंदाज़ा नहीं था.

अब बाइडन ही नहीं, दुनिया भर के नेता, यहाँ तक कि तालिबान भी मान रहे हैं कि किसी को अंदाज़ा नहीं था कि देश पर क़ब्ज़ा इतना आसान होगा.

हाल ही में लीक हुई एक अमेरिकी खुफ़िया रिपोर्ट में यह अनुमान लगाया गया था कि काबुल पर हफ़्तों के भीतर हमला हो सकता है और सरकार 90 दिनों के भीतर गिर सकती है. दुनिया भर के देशों में भी यही कयास लगाए जा रहे थे कि आने वाले कुछ महीनों में तालिबान पूरे अफ़ग़ानिस्तान पर क़ब्ज़ा कर सकता है.

लेकिन अफ़ग़ानिस्तान में जो घटनाक्रम पिछले दिनों देखा गया, शायद ही किसी को भी कोई अंदाज़ा था कि ये सब इतनी जल्दी और इतनी आसानी से होगा.

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नौ जुलाई और 15 अगस्त के बीच की अवधि को क़रीब से देखने पर पता चलता है कि तालिबान कितनी तेज़ी से अफगानिस्तान में क्षेत्रों पर क़ब्ज़ा करने के लिए आगे बढ़ा.

नौ जुलाई को अफ़ग़ानिस्तान के कुल 398 ज़िलों में से तालिबान का नियंत्रण केवल 90 ज़िलों तक सीमित था. बाक़ी बचे ज़िलों में से 141 अफ़ग़ान सरकार के नियंत्रण में थे और 167 ज़िलों पर अफ़ग़ान सेना और तालिबान में संघर्ष जारी था.

तालिबान के नियंत्रण में होने का मतलब यह है कि प्रशासनिक केंद्र, पुलिस मुख्यालय और अन्य सभी सरकारी संस्थान तालिबान के हाथों में थे.

नौ जुलाई को ही तालिबान ने पूरे उत्तरी अफगानिस्तान में किए गए बड़े हमले में ईरान और तुर्कमेनिस्तान के साथ लगे अहम बॉर्डर क्रॉसिंग्स पर क़ब्ज़ा कर लिया. ये बॉर्डर क्रॉसिंग्स थीं- ईरान सीमा के पास इस्लामकलां और तुर्कमेनिस्तान की सीमा से लगी तोरग़ुंडी.

29 जुलाई तक तालिबान ने 105 ज़िलों पर नियंत्रण कर लिया था और अफ़ग़ान सरकार के नियंत्रण में केवल 135 ज़िले ही रह गए थे. अभी भी 158 ज़िलों में दोनों के बीच संघर्ष जारी था.

10 अगस्त तक आते-आते स्थिति में कोई बड़ा बदलाव नहीं आया–तालिबान के नियंत्रण में 109 ज़िले, अफ़ग़ान सरकार के नियंत्रण में 127 ज़िले और दोनों के संघर्ष वाले 162 ज़िले थे. पर खास बात यह थी कि तोलोक़ान, कुंदूज़ और शबरग़ान जैसे शहरों पर तालिबान का क़ब्ज़ा हो चुका था.

लेकिन 11 अगस्त से तालिबान के रुख़ में एक तेज़ी आई. ये वो दिन था जब तालिबान ने फ़ैज़ाबाद और पुल-ए-खुमरी पर क़ब्ज़ा जमाया और कुल 117 ज़िलों में अपना परचम लहरा दिया. 11 अगस्त तक अफ़ग़ान सरकार के नियंत्रण में 122 ज़िले ही बच पाए थे और 159 ज़िले ऐसे थे, जिनमें अब भी दोनों के बीच संघर्ष जारी था.

12 अगस्त को तालिबान ने ग़ज़नी और हेरात अपने क़ब्ज़े में कर लिए और 13 अगस्त आते-आते कंधार और लश्कर गाह भी उनके नियंत्रण में आ चुके थे.

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13 अगस्त को तालिबान के क़ब्ज़े में 132 ज़िले, अफ़ग़ान सरकार के नियंत्रण में 114 ज़िले और दोनों के टकराव वाले 152 ज़िले थे.

इस संघर्ष का रुख़ पूरी तरह 15 अगस्त को पलट गया, जब तालिबान ने कुल 398 ज़िलों में से 345 पर अपना क़ब्ज़ा जमा लिया. ये वो दिन था जब तालिबान ने मज़ार-ए-शरीफ और जलालाबाद को भी अपने क़ब्ज़े में ले लिया.

इस दिन अफ़ग़ान सरकार के नियंत्रण में मात्र 12 ज़िले ही बचे और 41 ज़िले अब भी ऐसे थे, जहाँ तालिबान और अफ़ग़ान सरकार दोनों के बीच संघर्ष जारी था.

अफ़ग़ान सेना की वफ़ादारी पर सवाल?

अजमल अहमदी अफ़ग़ान बैंक के गवर्नर होने के साथ अफ़ग़ानिस्तान के राष्ट्रपति के आर्थिक सलाहकार भी रहे हैं.16 अगस्त की शाम उन्होंने ट्वीट्स की एक कड़ी के ज़रिए अपने काबुल से निकल भागने की पुष्टि की और साथ ही अफ़ग़ान सुरक्षा बलों की वफ़ादारी पर सवाल उठाया.

उन्होंने लिखा कि हालाँकि पिछले कुछ महीनों में अधिकांश ग्रामीण इलाक़ों में तालिबान का क़ब्ज़ा हो गया था, लेकिन पहली प्रांतीय राजधानी सिर्फ़ एक हफ़्ते और दो दिन पहले ही तालिबान के क़ब्ज़े में आई थी.

अहमदी ने लिखा कि शुक्रवार 6 अगस्त को जरांज तालिबान के क़ब्ज़े में आया और अगले छह दिनों में कई अन्य प्रांत अफ़ग़ान सरकार के नियंत्रण से निकल गए.

उन्होंने लिखा, “कई अफवाहें थीं कि लड़ाई न करने के निर्देश किसी तरह ऊपर से आ रहे थे. इसे अत्ता नूर और इस्माइल ख़ान ने दोहराया है.”

अत्ता नूर बल्ख़ प्रांत के पूर्व गवर्नर हैं, जो मज़ार-ए-शरीफ पर तालिबान का क़ब्ज़ा होने के वक़्त स्थानीय सेना की कमान संभाल रहे थे. नूर ने ट्विटर पर लिखा, “हमारे कड़े प्रतिरोध के बावजूद दुख की बात है कि एक बड़े संगठित और कायराना साज़िश के नतीजे में सभी सरकारी और #ANDSF उपकरण #तालिबान को सौंप दिए गए.”

Credited bbc

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