अब्दुल रशीद अगवान
अंग्रेज़ी में एक जुमला है, “टेक इट इज़ी”।
यानी इसे सहजता से ले !
इतिहास के बारे में भी हमारा रवैया यही होना चाहिये।
इतिहास आगे की ओर बढ़ती एक ऐसी सनातन कहानी है जिसमें तेज़ी से किरदार बदलते रहते हैं, जो आज हीरो है वह कल खलनायक भी समझा जा सकता है और जो आज खलनायक है वह कल का नायक भी हो सकता है।
या यूं कहें कि जो एक तबक़े के लिए हीरो है वह दूसरे के लिए खलनायक है। जिन्हें हम जानते नहीं हैं उनको हीरो या ज़ीरो ठहराना शायद बहुत सही तरीक़ा न हो, जबकि जिन्हें हम जानते हैं उनके बारे में भी अकसर हम ग़लत होते हैं।
इतिहास का असल मक़सद उसका हासिल है यानी हमने उससे क्या सीखा? मोरल ऑफ द स्टोरी क्या है? वह प्ररेणा और पाठ क्या है जो हमारे आज के सोच को बदल सकता है?
इसीलिए इतिहास लेखन के सबसे बड़े नाम इब्ने ख़ल्दून ने इतिहास पर अपनी कई वोल्यूम में लिखी किताब का नाम “किताबुल इबार” रखा यानी इतिहास एक सबक़ सिखाने वाली किताब है, एक नसीहत लेने वाली कहानी है।
दादी-नानी की कहानियों में उसका आख़िरी हिस्सा ही सबसे अहम हुआ करता था कि कहानी के हीरो में ऐसा क्या था कि वह कामयाब हुआ? वही जानने का फायदा है।
महाभारत एक बहुत लंबी कहानी है मगर उसका निचोड़ यही है कि इतिहास में फैसले सेना की ताक़त पर नहीं सच्चाई और इंसाफ के लिए लड़ने वालों के लिए लिखे जाते हैं और यह कि युद्ध और हिंसा किसी के सगे नहीं होते, महाभारत के बाद सिर्फ सात लोग पांडवों की ओर से बचते हैं और चार कौरवों की ओर से।
इतिहास एक ऐसा चक्र है जो ज़ुल्म को ख़त्म करता है और कमज़ोर को ताक़त देता है, यह बात और है कि वह ‘कमज़ोर’ भी जब ताक़त हासिल करके ज़ुल्म करना शुरू कर देता है तो उसके मुक़ाबले में एक और कमज़ोर तबक़ा उठता है और इतिहास उसकी भी मदद करता है।
इसलिए इतिहास को हमें सहजता से लेने का तरीक़ा सीखना चाहिये न कि इतिहास को दोहराने की भूल करनी चाहिये क्योंकि फिर इतिहास भी वही करेगा जो पहले हो चुका है – वह भी अपने आप को दोहराएगा।
नवजवान शायर सलीम सरमद ने क्या ख़ूब लिखा है:
“बातें न जाने किस ज़माने की
उलझा रही हैं इस ज़माने में।”
//अब्दुल रशीद अगवान
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