प्रेस विज्ञप्ति
पक्षपाती मीडीया के खि़लाफ़ दाखि़ल जीमअत उलमा की अहम याचिका पर अंतिम बहस सितंबर में
हम अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के खिलाफ नहीं, उपद्रव और नकारात्मक रिपोर्टिंग के खि़लाफ़ हैं:मौलाना अरशद मदनी

नई दिल्ली, 16 जुलाई 2021
कोरोना वाइरस को मर्कज़ निज़ामुद्दीन से जोड़ कर तब्लीग़ी जमात से संबंधित लोगों और विशेषकर मुसलमानों की छवि खराब करने और हिदूओं व मुसलमानों के बीच नफरत फैलाने की साज़िश करने वाले टीवी चैनलों और प्रिंट मीडीया के खि़लाफ़ मौलाना सैयद अरशद मदनी अध्यक्ष जमीअत उलमा-ए-हिन्द के आदेश पर सुप्रीमकोर्ट में दाखि़ल याचिका पर पिछले कई महीनों से सुनवाई नहीं हो रही थी, याचिका पर शीघ्र अति शीघ्र सुनवाई होने के लिए सुप्रीमकोर्ट से अनुरोध किया गया जिस पर जस्टिस एल. नागेश्वर राव और जस्टिस अनिरुद्ध बोस ने इस मामले की अंतिम बहस सितंबर में किये जाने का आदेश दिया, जमीअत उलमा-ए-हिन्द की ओर से एडवोकेट ऑन-रिकार्ड एजाज़ मक़बूल ने अदालत से शीघ्र अति शीघ्र सुनवाई किये जाने का अनुरोध किया था।
आज सुप्रीमकोर्ट के आदेश के बाद अध्यक्ष जमीअत उलमा-ए-हिन्द मौलाना सैयद अरशद मदनी ने बेलगाम मीडीया पर शिकंजा कसने की अपनी प्रतिबद्धता दोहराते हुए कहा कि पक्षपाती मीडीया पर लगाम कसने का हमारा क़ानूनी संघर्ष सकारत्मक परणिम आने तक जारी रहेगा। हमारा शुरू से यह सिद्धांत रहा है कि अगर कोई मसला आपसी बातचीत से हल नहीं होता तो सड़कों पर उतरने के बजाए हम अपने संवैधानिक अधिकार का प्रयोग करते हुए अदालत जाते हैं और हमें वहां से न्याय भी मिलता है। दुर्भाग्य से जब सांप्रदायिक मीडीया ने अपनी सांप्रदायिक रिपोर्टिंग की शैली नहीं छोड़ी तो हमें अदालत जाने पर मजबूर होना पड़ा।

अंत में मौलाना मदनी ने कहा कि संविधान ने देश के हर नागरिक को अभिव्यक्ति की पूर्ण स्वतंत्रता दी है, हम पूर्ण रूप से इस से सहमत हैं लेकिन अगर अभिव्यक्ति की इस आज़ादी से जानबूझ कर किसी को आहत किया जाता है, किसी समुदाय की छवि खराब करने का प्रयास होता है या उसके द्वारा उपद्रव फैलाया जाता है तो हम उसके घोर विरोधी हैं, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता संविधान में पूर्ण रूप से परिभाषित है, लेकिन इसके बावजूद मीडिया का एक बड़ा वर्ग अल्पसंख्यकों और कमज़ोर वर्गों के मामले में जज बन जाता है और उन्हें दोषी बनाकर प्रस्तुत करना साधारण बात हो गई है जैसा कि पहले तब्लीगी जमात को लेकर इसी प्रकार का व्यवहार अपनाया गया था, लेकिन अफसोस जब बाद में अदालतें उन्हें निर्दोष घोषित करती है तो उसी मीडिया को सांप सूंघ जाता है। मीडिया का यह दोहरा चरित्र देश और अल्पसंख्यकों के लिये अति चिंताजनक है। मौलाना मदनी ने प्रश्न उठाते हुअए कहा कि क्या अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर संविधान की धज्जियां उड़ाने वाले और एक तरफा रिपोर्टिंग करने वाले देश के वफादार हो सकते हैं?
स्पष्ट रहे कि जमीअत उलमा-ए-हन्द की ओर से दाखि़ल याचिका पर जमीअत उलमा क़ानूनी इमदाद कमेटी के अध्यक्ष गुलज़ार आज़मी वादी बने हैं जिस पर अब तक कई सनवाइयां हो चुकी हैं लेकिन पिछले कुछ महीनों से कोरोना के कारण सुनवाई नहीं हो सकी थी और इसी बीच पूर्व चीफ़ जस्टिस आफ़ इंडिया सेवानिवृत्त हो गए। अब जबकि स्थिति में सुधार हो रहा है और चीफ़ जस्टिस आफ़ इंडिया एन.वी रमन्ना ने अपना कार्यभार संभाल लिया है, जमीअत उलमा ने अदालत से शीघ्र अति शीघ्र सुनवाई का अनुरोध किया है, जिसको सुप्रीमकोर्ट ने स्वीकार करते हुए सितम्बर में अंतिम बहस का समय दिया है।
फज़लुर्रहमान
प्रेस सचिव, जमीअत उलमा-ए-हिन्द
09891961134

تبلیغی جماعت معاملہ
متعصب میڈیا کے خلاف داخل جمعیۃعلماء ہند کی اہم پٹیشن پر حتمی بحث ماہ ستمبر میں
ہم اظہاررائے کی آزادی کے نہیں شرانگیزی اورمنفی رپورٹنگ کے خلاف ہیں:مولااناارشدمدنی

نئی دہلی 16 جولائی2021
کروناوائرس کو مرکز نظام الدین سے جوڑ کر تبلیغی جماعت سے وابستہ لوگوں اور بالخصوص مسلمانوں کی شبیہ کو داغدار کرنے اور ہندوؤں اورمسلمانوں کے درمیان منافرت پھیلانے کی دانستہ سازش کرنے والے ٹی وی چینلوں اور پرنٹ میڈیاکے خلاف مولانا سید ارشدمدنی صدرجمعیۃ علماء ہند کی ہدایت پر سپریم کورٹ میں داخل پٹیشن پر گذشتہ کئی ما ہ سے سماعت نہیں ہورہی تھی، پٹیشن پر جلداز جلد سماعت ہونے کے لیئے سپریم کورٹ سے درخواست کی گئی جس پر جسٹس ایل ناگیشوراراؤاور جسٹس انریدھ بوس نے اس معاملے کی حتمی بحث ماہ ستمبر میں کیئے جانے کا حکم دیا.
جمعیۃ علماء ہند کی جانب سے ایڈوکیٹ آن ریکارڈ اعجاز مقبول نے عدالت سے جلد از جلد سماعت کیئے جانے کی درخواست کی تھی۔آج سپریم کورٹ کے آرڈرکے بعد صدرجمعیۃعلماء ہند مولانا سید ارشدمدنی نے بے لگام میڈیا پر شکنجہ کسنے کے اپنے عہد کا اعادہ کرتے ہوئے کہا کہ متعصب میڈیا پر لگام کسنے کی ہماری قانونی جدوجہد مثبت نتیجہ آنے تک جاری رہے گی، ہماراشروع سے یہ اصول رہا ہے کہ اگر کوئی مسئلہ باہمی گفت وشنیدسے حل نہیں ہوتاتوسٹرکوں پر اترنے کے بجائے ہم اپنے آئینی حق کا استعمال کرتے ہوئے عدالت جاتے ہیں اورہمیں وہاں سے انصاف بھی ملتاہے.

لیکن افسوس جب فرقہ پرست میڈیا نے اپنی فرقہ وارانہ رپورٹنگ کی روش ترک نہیں کی توہمیں عدالت کا رخ کرنے پرمجبورہونا پڑا، اخیر میں مولانا مدنی نے کہا کہ آئین نے ملک کے ہر شہری کو اظہاررائے کی مکمل آزادی دی ہے، ہم کلی طورپر اس سے اتفاق کرتے ہیں لیکن اگر اظہاررائے کی اس آزادی سے دانستہ کسی کی بھی دلآزاری کی جاتی ہے، کسی فرقہ یاقوم کی کردارکشی کی کوشش ہوتی ہے یا اس کے ذریعہ اشتعال انگیزی پھیلائی جاتی ہے تو ہم اس کے سخت خلاف ہیں، آزادی اظہاررائے کی آئین میں مکمل وضاحت موجودہے،لیکن اس کے باوجودمیڈیا کا ایک بڑاحلقہ اقلیتوں اورکمزورطبقات کے معاملہ میں جج بن جاتاہے اور انہیں مجرم بناکر پیش کرنا ایک عام سی بات ہوگئی جیساکہ ماضی میں تبلیغی جماعت کو لیکر اسی طرح کا رویہ اختیارکیا گیا تھا،لیکن افسوس جب بعد میں عدالت انہیں بے قصورقراردیتی ہیں تو اسی میڈیا کو سانپ سونگھ جاتاہے.
میڈیا کایہ دوہرارویہ ملک اوراقلیتوں کے لئے انتہائی تشویشناک ہے،مولانا مدنی نے سوال اٹھاتے ہوئے کہا کہ کیا آزادی اظہاررائے کے نام پر آئین کی دھجیاں اڑانے والے اور یکطرفہ رپورٹنگ کرنے والے ملک کے وفادارہوسکتے ہیں؟۔واضح رہے کہ جمعیۃ علماء ہندکی جانب سے داخل پٹیشن پر جمعیۃ علماء قانونی امداد کمیٹی کے سربراہ گلزار اعظی مدعی بنے ہیں جس پر ابتک متعدد سماعتیں ہوچکی ہیں لیکن گذشتہ چند ماہ سے کرونا کی وجہ سے سماعت نہیں ہوسکی تھی اور اسی سابق چیف جسٹس آف انڈیا سبکدوش ہوگئے۔ اب جبکہ حالات میں سدھار ہورہا ہے اور چیف جسٹس آف انڈیا این وی رمنا نے اپنا چارج لے لیا ہے، عدالت سے جلد از جلد سماعت کی درخواست کی گئی تھی۔جس کو سپریم کورٹ نے منظورکرتے ہوئے ستمبر میں بحث کا حتمی وقت دیا ہے۔ تبلیغی جماعت اور مسلمانوں کوبد نام کرنے کے خلاف جمعیۃ علماء ہند کی جانب سے سپریم کورٹ آف انڈیا پٹیشن داخل کرنے کے بعد اور صارفین کی شکایت پر نیوز براڈ کاسٹنگ اسٹینڈرڈ اتھاریٹی (NBSA) نے تین چینلوں ٹائمس ناؤ، ٹی وی 18اورسوارنا نیوز چینل پر ایک لاکھ کا جرمانہ عائد کیا تھاجبکہ زی نیوز، آج تک اور دیگر چینلوں نے معافی مانگی تھی۔
فضل الرحمن قاسمی: پریس سکریٹری جمعیۃعلماء ہند
9891961134