अनोखी बात , हैरत से कौन नहीं देखेगा ??
पिछले दिनों पूरी दुनिया में कुछ घंटों केलिए इंटरनेट Break Down किया गया था , जिसको एक तजर्बे के तौर पर देखा जा रहा है अगर दुनिया से अचानक इंटरनेट सेवाएं बंद कर दी जाएँ तो आप दुनिया का भविष्य सोच सकते हैं कितना भयावय होगा . दुनिया का तकनीकी निज़ाम एक दम ठप्प होजायेगा , गोया सारी दुनिया रुक सी जायेगी … बैंकिंग , Air Services , Rail services , Transpot सुविधाएँ ,Printing , मीडिया ,अख़बारात सब बंद होजायेगा ,,,ऐसे में अगर चलेगा तो सिर्फ मुस्लमान ,,,,जी सिर्फ मुस्लमान … मैं यहाँ मुसलमान क़ौम की बात नहीं कर रहा ,, मैं बात कर रहा हूँ The Musalman अख़बार की जो उर्दू ज़बान में चेन्नई से निकलता है और यह 1927 में शुरू हुआ था ,,,जिसका Inaugration , Indian national Congress के तत्कालीन अध्यक्ष डॉ . मुख़्तार अहमद अंसारी ने किया था .
मुसलमान की क़ीमत महज़ 75 पैसे है। यह कीमत पहले प्रकाशन से लेकर आज तक वही है जिसे बढ़ाया नहीं गया है, और इसके प्रकाशन के 94 वर्ष हो चुके हैं , इसकी कुल 22 ,000 कॉपियां छपती हैं । मुसलमान अखबार की शुरुआत 1927 में सैयद अज़्मतुल्लाह ने की थी उसके बाद उनके बेटे सय्यद फ़ज़्लुल्लाह ने इसकी ज़िम्मेदारी संभाली उनका इंतक़ाल 26 April 2008 को होगया और आज, 94 साल बाद, उनके पोते सैयद आरिफुल्लाह 2018 से मुसलमान के editor हैं और अतीत की याद को ताजा रखते हुए हाथ से लिखे अखबार निकालने का एहतमाम कर रहे है !यह ऐसा शाहकार है जो आज पूरी दुनिया के लिए एक मिसाल और इबरत है , और एक सबक़ भी .
शाम को चार पन्नों में प्रकाशित होने वाले इस अखबार के कार्यालय में एक कोने में 800 वर्ग फुट का एक कमरा है, जिसके एक कोने में ख़त्ताती ( हाथ से लिखा जाना ) किया जाता है। इसमें चार महिलाएं मुलाज़िम हैं।एक कॉलिग्राफर को तीन घंटे में एक पेज लिखना होता है।
मुसलमान के पास सारी सुविधा नहीं है, दीवार पर सिर्फ दो पंखे, तीन बल्ब और एक ट्यूबलाइट है। पिछले साल संपादक के कमरे में एक कंप्यूटर और एक प्रिंटर लगाया गया था। अखबार के Editor का कहना है कि उनके दादा हुज़ूर , अब्बा जान और खुद उनको भी उर्दू calligraphy पसंद है इसलिए वे इस तरीके को जारी रखे हुए हैं।इस अखबार में तीन रिपोर्टर हैं। अगर एक कॉलिग्राफर बीमार है, तो दूसरे को डबल शिफ्ट में काम करना होता है ।हर एक Calligrapher को एक Page 60 रुपये का भुगतान किया जाता है।
“मुसलमान” के लगभग 21,000 सब्सक्राइबर हैं इसके chief reporter चिन्नास्वामी बालसुब्रमनियम हैं , जो 20 बरसों से अपनी सेवाएं मुसलमान को दे रहे हैं । पेपर की कीमत 75 पैसे है। अखबार के प्रबंधन का कहना है कि इस डिजिटल युग में हस्तलिखित अखबार चलाना एक बड़ी चुनौती है , और दिलचस्प भी ।
ज़ाहिर है Computer क्रांति से पहले सभी अखबार हाथ से ही लिखे जाते थे जिसको Calligraphy कहते हैं ,,,, लेकिन इस अखबार की ख़ास बात यह है की यह आज तक हाथ से ही तैयार होता है … अब अगर दुनिया में कुछ कैलिग्राफर बचे हैं तो वो मुसलमान के साथ ही रहने का वचन दे चुके हैं . Internet के failure के बाद इस तरह सिर्फ मुसलमान ही बचेगा , यानी मुसलमान अख़बार ही बचेगा … लेकिन ज़रुरत ईजाद की माँ है विकल्प और अखबार भी ढूंढ ही लेंगे , लेकिन वो अपने आप में एक बड़ी चुनौती होगी .
है न अजूबा बात , और दिलचस्प भी …..दोस्तों आपको यह रिपोर्ट कैसी लगी कमेंट बॉक्स मैं जाकर अपनी राये ज़रूर दीजियेगा शुक्रिया .
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